भारत में राज्यों और जेंडर के हिसाब से पूरी तरह विभिन्नता देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ में एक पुरुष की औसत आयु को देखें तो ये 63 साल से कम है वहीं हिमाचल प्रदेश में एक महिला के लिए औसत 81 साल की उम्र देखी जाती है।
नई दिल्ली। भारत में पिछले एक दशक का जीवन प्रत्याशा का स्तर देखें तो ये मुश्किल से 0.4 फीसदी बढ़ पाई है। जनगणना और रजिस्ट्रार जनरल ऑफिस के द्वारा के जाने वाले सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के आंकड़े के मुताबिक ये पता चला है। अच्छी खबर ये है कि 2014 से 2018 के बीच ये 69.4 साल थी और ये साल 1970-75 के 49.7 साल की जीवन प्रत्याशा के मुकाबले काफी अच्छी कही जा सकती है।
भारत में राज्यों और जेंडर के हिसाब से पूरी तरह विभिन्नता देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ में एक पुरुष की औसत आयु को देखें तो ये 63 साल से कम है वहीं हिमाचल प्रदेश में एक महिला के लिए औसत 81 साल की उम्र देखी जाती है जो कि सीधा सीधा 18 साल का अंतर दिखाता है।
किसी भारतीय की औसत आयु लगभग 3 साल बढ़ जाती है अगर वो जन्म के पहले साल में जी जाता है तो ये साफ तौर दिखाता है कि किसी नवजात की जीवन प्रत्याशा कैसे देश की औसत आयु के आंकड़े पर असर डालती है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश की बात करें तो इसमें दूसरा सबसे ज्यादा नवजात शिशुओं का मॉरटेलिटी रेट है जो कि 43 है और यहां औसत आयु का स्तर एक साल के पूरे होने के बाद 4.4 साल बढ़ जाता है।
भारत में शहरी महिलाओं की औसत आयु हर राज्य में ज्यादा ऊंची है और केरल और उत्तराखंड में ग्रामीण महिलाओं में औसत आयु ज्यादा है और वो ज्यादा जीती हैं। शहरी महिलाओं के देश में सबसे अच्छे शहर जम्मू और कश्मीर हैं जहां जीवन प्रत्याशा 86.2 साल है और सामान्य तौर पर महिलाओं की औसत आयु पुरुषों से ज्यादा है, बिहार और झारखंड में छोड़कर।
अब बात करें कि एशिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की ये जीवन प्रत्याशा किस स्तर पर है तो सबसे पहले जापान की जीवन प्रत्याशा देखेंगे तो पाएंगे कि बड़े राष्ट्रों में ये सबसे अच्छी यानी 84.5 साल है और भारत की जो मौजूदा स्थिति है वहां पर जापान 1960 में ही पहुंच गया था। वहीं चीन की बात करें तो पाएंगे कि इसका मॉरटेलिटी रेट 76.7 साल है और भारत का मौजूदा मॉरटेलिटी रेट 1990 में ही चीन ने हासिल कर लिया था। यहां तक कि बांग्लादेश का मॉरटेलिटी रेट 72.1 साल, नेपाल का 70.5 साल है जो कि भारत के जीवन प्रत्याशा के स्तर से कहीं अधिक बेहतर है। ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट के आधार पर है जो कि साल 2019 में आई थी।
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