देश में नफरत का बाजार, फासीवादी संगठन मुस्लिमों को झुकाना चाहते हैं: मदनी

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सहारनपुर। मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच शनिवार को यूपी के देवबंद में जमीयत उलेमा ए हिंद की बैठक हुई। दनी ने कहा कि सरकार अखंड भारत की बात करती है लेकिन उसने देश को मुसलमानों के लिए नर्क बना दिया है। मदनी ने कहा कि सत्ता के संरक्षण में सांप्रदायिकता की काली आंधी चल रही है और फासीवादी संगठन मुस्लिमों को झुकाना चाहते हैं।

देवबंद में ईदगाह मैदान में जमीयत उलमा-ए-हिंद के तत्वाधान में दो दिवसीय अधिवेशन आज सुबह 9 बजे से शुरू हो गया। इस अधिवेशन में देशभर के दिग्गज उलेमा और गवर्निंग बॉडी के सदस्य देशव्यापी प्रमुख समस्याओं को लेकर मंथन कर रहे हैं। यहां अधिवेशन की शुरुआत करते हुए मौलाना असद महमूद मदनी ने कहा कि आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता है। प्यार से नफरत को हराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बेइज्जत होकर खामोश रहना कोई मुसलमान से सीखे। कहा कि देश में नफरत का बाजार सजाया जा रहा है।

इजलास का शुभारंभ जमीयत उलमा-ए-हिंद का झंडा लहरा कर किया गया है। तिलावत-ए-कुरान पाक दारूल उलूम के उस्ताद कारी अब्दुल रउफ ने की और नात-पाक कारी अहसान मोहसिन ने पेश की। इसके बाद अधिवेशन में शामिली उलमा ने बारी बारी से मंच पर पहुंचकर अपना वक्तव्य रखा। यहां मंच से बोलते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी भावुक हुए गए।

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि देश में आज हालात मुश्किल हैं। उन्होंने कहा कि देश में अखंड भारत की बात तो होती है, लेकिन हालात ऐसे हो गए हैं कि मुसलमानों को अपनी ही बस्ती में चलना तक मुश्किल हो गया है। देश में नफरत के पुजारी बढ़ गए हैं। उन्होंने शेर पढ़ा- जो घर को कर गए खाली वो मेहमां याद आते हैं। इसके बाद रुंधे गले से कहा कि हमलोग ऐसे मुश्किल हालात में हैं, जिसकी कल्पना नहीं कर सकते।

मौलाना मदनी ने कहा कि आज के हालात काफी मुश्किल हैं। हमारा दिल जानता है कि हम किस मुश्किल दौर में हैं। हमारी स्थिति तो उस व्यक्ति से भी खराब है, जिसके पास कुछ नहीं है। हमारी स्थिति का अंदाजा कोई और क्या लगा सकता है। मुश्किलों को झेलने के लिए हौसला चाहिए, ताकत चाहिए। हम कमजोर लोग हैं। कमजोरी का यह मतलब नहीं है कि हमें दबाया जाए।

मौलाना कहा कि जमीयत उलेमा का फैसला है कि हम अमन और शांति के संदेशवाहक हैं, तो ठीक है। अगर जमीयत उलेमा का यह फैसला है कि हम जुल्म को बर्दाश्त कर लेंगे। अगर जमीयत उलेमा का यह फैसला है कि हम दुखों को सह लेंगे, लेकिन अपने मुल्क पर आंच नहीं आने देंगे। तो जमीयत का यह फैसला कमजोरी की वजह से नहीं, बल्कि हमारी ताकत की वजह से है।

इस जलसे में चर्चा के लिए 3 प्रस्ताव रखे गए थे, प्रस्ताव 1 -देश में बढ़ती नफरत पर विचार, प्रस्ताव 2- इस्लामोफोबिया की रोकथाम पर मंथन, प्रस्ताव 3- सदभावना मंच को मजबूत करना। बता दें इन 3 प्रस्तावों को पास कर दिया गया है।

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