मोदीनगर। संपूर्ण समाधान दिवस के दौरान हाथ की नस काटने के बाद किसान की मौत के मामले में लेखपाल को सस्पेंड कर दिया गया है। लेखपाल पर आरोप है कि उसने अधिकारियों को इस मामले में गुमराह किया और सही जानकारी नहीं दी है।
एसडीएम शुभांगी शुक्ला ने बताया कि प्रथम दृष्टयता जांच में लेखपाल को दोषी पाया गया है। लेखपाल ने गांव डिडोली में मौके पर जाकर भौतिक जांच की थी लेकिन रिपोर्ट संतोषजनक प्रस्तुत नहीं की, जिस कारण उसे सस्पेंड किया गया है। अभी मामले में जांच चल रही है। दोषी कर्मचारियों को नहीं बख्शा जाएगा। डीएम के आदेश पर एडीएम ऋतु सुहास के नेतृत्व में जांच टीम का गठन किया गया।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से होगा खुलासा
बुजुर्ग किसान सुशील की मौत हाथ की नस काटने से हुई या हार्टअटैक पड़ने से, यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट हो जाएगा। कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन अधिकारी भी कहीं ना कहीं इस मौत के लिए जिम्मेदार हैं। 3 साल से पीड़ित शिकायत लेकर अधिकारियों के चक्कर लगा रहा था।
ये था मामला
शनिवार को तहसील मुख्यालय पर संपूर्ण समाधान दिवस में एसडीएम शुभांगी शुक्ला और तहसीलदार हरिप्रताप लोगों की शिकायतें सुन रहे थे। तभी मूलरूप से मुरादनगर के डिडौली गांव निवासी किसान सुशील त्यागी (65) वहां पहुंचे। सुशील कुमार करीब तीन वर्ष से गांव की अपनी जमीन की पैमाइश की मांग कर रहे थे। किसान की कुछ जमीन पर दबंगों ने कब्जा किया हुआ है। समस्या का समाधान नहीं होने से क्षुब्ध किसान ने अपने हाथ की नस काट ली थी, इसी बीच उन्हे हार्ट अटैक आया था। मेरठ मेडिकल कॉलेज में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई थी।
मुजफ्फरनगर में हुआ अंतिम संस्कार
किसान सुशील कुमार काफी समय से परिवार सहित मुजफ्फरनगर की इंद्रा कॉलोनी में रह रहे थे। परिजन मेरठ मेडिकल कॉलेज में पोस्टमार्टम कराने के बाद उनके शव को शनिवार रात ही मुजफ्फनगर ले गए। वहां देर रात उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। परिजनों ने बताया कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद कोई अधिकारी परिवार से मिलने नहीं पहुंचा।
250 गज जमीन पर था कब्जा
सुशील कुमार अपनी पत्नी परिणीति त्यागी, बेटे रविश त्यागी, गोलू व बेटी मोना के साथ रहते थे। 30 साल पहले उन्होंने अपनी कृषि भूमि बेच दी थी। गांव डिडोली में उनके नाम पर आबादी में एक हजार गज भूमि थी। आरोप था कि दबंगों ने लगभग 250 गज भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है।
रुका पड़ा था बैनामा
2020 में सुशील ने जमीन बेचने के लिए गांव के ही रहने वाले व्यक्ति से सौदा किया था, लेकिन जमीन कब्जा मुक्त नहीं होने के कारण बैनामा नहीं हो पा रहा था। पिछले 3 साल से वह इसी मामले में अधिकारियों के चक्कर लगा रहे थे। परिवार की मानें तो मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी कई बार शिकायत कर चुके थे, लेकिन किसी भी अधिकारी ने समाधान नहीं किया।