सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा- पिछड़े वर्गों की जाति जनगणना करना मुश्किल

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना ‘सतर्क नीति निर्णय’ है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया कि केंद्र ने पिछले साल जनवरी में एक अधिसूचना जारी की है जिसमें जनगणना 2021 के दौरान एकत्र की जाने वाली सूचनाओं की श्रृंखला निर्धारित की गई है और इसमें अनुसूचित से संबंधित जानकारी सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है। जाति और अनुसूचित जनजाति लेकिन जाति की किसी अन्य श्रेणी को संदर्भित नहीं करता है। साथ ही कहा गया कि जनगणना के दायरे से किसी भी अन्य जाति के बारे में जानकारी को बाहर करना केंद्र सरकार द्वारा लिया गया एक सचेत नीति निर्णय है।

कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया कि इस मुद्दे की अतीत में अलग-अलग समय पर विस्तार से जांच की गई है। हर बार यह विचार लगातार रहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल है और यहां तक ​​​​कि जब स्वतंत्रता पूर्व अवधि में जातियों की जनगणना की गई थी, तब भी डेटा पूर्णता और सटीकता के संबंध में प्रभावित हुआ था।। यह डेटा की पूर्णता और सटीकता के कारण भुगतना पड़ा है और भुगतना होगा, जैसा कि एसईसीसी 2011 डेटा की कमजोरियों से भी स्पष्ट है। जो इसे किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अनुपयोगी बनाते हैं और जनसंख्या डेटा के लिए सूचना के स्रोत के रूप में उल्लेख नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के मुताबिक, सरकार ने कहा है कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011 में काफी गलतियां एवं अशुद्धियां हैं। महाराष्ट्र की एक याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया गया। महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दायर कर केंद्र एवं अन्य संबंधित प्राधिकरणों से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एसईसीसी 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की और कहा कि बार-बार आग्रह के बावजूद उसे यह उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।

केंद्र की ओर से यह हलफनामा महाराष्ट्र की ओर से दाखिल एक याचिका के जवाब में दाखिल किया गया जिसमें कोर्ट से केंद्र व अन्य संबंधित अधिकारियों को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि एसईसीसी 2011 का मूल डाटा उपलब्ध कराया जाए जो कई बार मांगने के बाद भी मुहैया नहीं कराया गया है।

गौरतलब है कि हाल में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाली प्रतिनिधिमंडल ने जाति गणना की मांग पीएम से की थी। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि पिछले साल एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2011 के दौरान एकत्र जानकारी दी थी। इसमें एसटी एससी की जानकारी है लेकिन जातियों की अन्य श्रेणी की चर्चा नहीं है।

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