‘सनातन को किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं’, बोले RSS चीफ

File Photo

हरिद्वार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने उत्तराखंड के हरिद्वार में कहा है कि सनातन धर्म को किसी को किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। सनातन समय की कसौटी पर खरा साबित हुआ है बाकी सब बदल जाता है। यह पहले भी शुरू हुआ था, आज भी है और कल भी रहेगा। हमें अपने आचरण से लोगों को ‘सनातन’ समझाना होगा।

हरिद्वार में पतंजलि संन्यास आश्रम में संन्यास दीक्षा महोत्सव में आठवें दिन बुधवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ऋषिग्राम पहुंचे और चतुर्वेद पारायण यज्ञ में आहुति दी। मोहन भागवत ने कहा कि नींद छोड़कर लोग काम में लग जाते हैं। आप कितने भी आलसी हो…सोने वाले हो, पर दिन के प्रकाश में आप सो नहीं सकते। आपको कुछ अंधेरा करना ही पड़ेगा…यह कर्मशीलता का भी प्रतीक है। मदुरै में मीनाक्षी मंदिर है, जहां छोटा सा साइंस म्यूजियम है, जहां मैं कुछ साल पहले गया था। मैंने वहां पाया कि विभिन्न रंगों के मनुष्य के स्वभाव पर क्या प्रभाव पड़ता है। वहां भगवा रंग भी था। उस पर लिखा था कि इस रंग के वातावरण के कारण कर्मशीलता और कुल-मिलाकर सबके प्रति आत्मीयता सबके प्रति बनता है। विज्ञान भी यह बात मानता है।

स्वामी रामदेव ने भावी संन्यासियों से कहा कि हम सनातन धर्म के पुराधाओं की शृंखला तैयार कर महर्षि दयानन्द के स्वप्न को साकार करेंगे। उन्होंने कहा कि पतंजलि के माध्यम से स्वास्थ्य एवं शिक्षा का बहुत बड़ा आंदोलन चलाया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय शिक्षा बोर्ड, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय, पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के माध्यम से शिक्षा क्रांति का शंखनाद हो गया है। इस कार्य में पतंजलि के संन्यासियों की भूमिका अहम रहेगी।

स्वामी रामदेव ने कहा कि स्वदेशी शिक्षा तंत्र का महर्षि दयानन्द, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और सभी क्रांतिकारियों का सपना आजादी के 75 वर्ष बाद पतंजलि पूरा कर रहा है। देश स्वतंत्र हो गया लेकिन शिक्षा और चिकित्सा तंत्र अपना नहीं है। गुलामी की रस्मों एवं निशानियों को मिटाना है। यह कार्य संन्यासी ही कर सकते हैं। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि संन्यास मार्ग मोक्ष प्राप्ति का सरलतम साधन है। इस दौरान महिला मुख्य केन्द्रीय प्रभारी साध्वी देवप्रिया, आचार्यकुलम् की निदेशिका ऋतम्भरा शास्त्री, स्वामी विदेहदेव, स्वामी मित्रदेव, स्वामी ईशदेव, स्वामी सोमदेव, साध्वी देवश्रुति, साध्वी देववेरण्या, साध्वी देववाणी, साध्वी देवार्चना आदि उपस्थित रहे।

Exit mobile version