21 साल पहले हुए गोधरा कांड की कहानी, जब ट्रेन में जिंदा जला दिए थे 59 हिंदू

गोधरा। 27 फरवरी पूरे देश के लिए तारीख ही नहीं बल्कि इस तारीख का हमारे देश के अतीत से काला रिश्ता है। यह वह तारीख है जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजर ने के साथ साथ और मोटी होती चली गई। गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हुई साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में समुदाय विशेष की उन्मादी भीड़ ने आग लगा दी थी और इस भीषण अग्निकांड में 59 हिंदुओ की मौत हो गई थी।

अयोध्या से करीब दो हजार कारसेवक अहमदाबाद जाने के लिए 26 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में सवार हुए। 27 फरवरी को ट्रेन गोधरा पहुंची तो S-6 बोगी में पथराव शुरू हो गया। बोगी को बाहर से बंद कर दिया गया और फिर उपद्रवियों ने आग लगा दी गई। आगजनी में 59 लोगों की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाए जाने की घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा। इसके अगले दिन यानी 28 फरवरी 2002 से गुजरात के अलग-अलग जगहों पर सांप्रदायिक दंगे फैल गए। इन दंगों में 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया। गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया। पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाई। लेकिन बाद में गोधरा कांड के आरोपियों से पोटा हटा लिया गया।

नानावटी आयोग की 15 सौ पन्नों की रिपोर्ट
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रियास्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। न्यायमूर्ति केजी शाह आयोग के दूसरे सदस्य थे। शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की। आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी। उस समय आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या-छह में आग लगाने को सुनियोजित साजिश का परिणाम बताया था।

2009 में जस्टिस शाह के निधन के बाद अक्षय मेहता को सदस्य बनाया गया। आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब 15 सौ पेज की रिपोर्ट तैयार की। अब इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा गया। नानावटी कमीशन ने उन्हें क्लीन चिट दी और तमाम तरह के प्रोपोगैंडा जो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में फैलाए गए उसे सिरे से खारिज किया गया। इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया जो राज्य सरकार को नहीं करना चाहिए थे।

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