दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र ने कहा- देश में पुरुष और महिला के बीच ही शादी की अनुमति, 30 नवंबर को होगी अंतिम सुनवाई

दिल्ली। हाईकोर्ट में सोमवार को कानून के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की गई। इस दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि भारत में अभी केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह की अनुमति है। दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों की दो याचिकाओं सहित अलग-अलग याचिकाओं को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है, बेंच ने सभी पक्षों को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए और समय देते हुए याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई के लिए 30 नवंबर की तारीख तय की है।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच अभिजीत अय्यर मित्रा, वैभव जैन, डॉ. कविता अरोड़ा, ओसीआई कार्ड धारक जॉयदीप सेनगुप्ता और उनके साथी रसेल ब्लेन स्टीफेंस की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाओं में हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने का अनुरोध किया गया है।

पहली याचिका में, अभिजीत अय्यर मित्रा और तीन अन्य ने तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के दो वयस्कों के बीच सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किये जाने के बावजूद समलैंगिक विवाह संभव नहीं है। याचिका में हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत उन्हें मान्यता देने की घोषणा करने का अनुरोध किया गया है। दो अन्य याचिकाओं में से एक विशेष विवाह कानून के तहत शादी करने के अनुरोध को लेकर दो महिलाओं ने दाखिल की है जबकि दूसरी याचिका दो पुरुषों की है जिन्होंने अमेरिका में शादी की लेकिन विदेशी विवाह अधिनियम (एफएमए) के तहत उनकी शादी के पंजीकरण से इनकार कर दिया गया। एक अन्य याचिका में भारत के प्रवासी नागरिक कार्डधारक के विदेशी मूल के पति या पत्नी को लिंग या यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना ओसीआई पंजीकरण के लिए आवेदन करने की अनुमति देने अनुरोध किया गया है।

याचिकाकर्ता एक विवाहित समलैंगिक जोड़ा हैं- जॉयदीप सेनगुप्ता, एक ओसीआई और रसेल ब्लेन स्टीफंस, एक अमेरिकी नागरिक और मारियो डेपेन्हा, एक भारतीय नागरिक और एक क्वीर राइट्स अकादमिक और कार्यकर्ता है जो रटगर्स विश्वविद्यालय, अमेरिका में पीएचडी कर रहे हैं।

जॉयदीप सेनगुप्ता और स्टीफेंस की ओर से पेश हुए वकील करुणा नंदी ने बताया कि जोड़े ने न्यूयॉर्क में शादी की और उनके मामले में नागरिकता अधिनियम, 1955, विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 कानून लागू होता है। उन्होंने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7 ए (1) (डी) पर प्रकाश डाला, जो विषमलैंगिक, समान-लिंग या समलैंगिक पति-पत्नी के बीच कोई भेद नहीं करता है। इसमें प्रावधान है कि भारत के एक विदेशी नागरिक से विवाहित एक ‘व्यक्ति’, जिसका विवाह पंजीकृत है और दो साल से अस्तित्व में है, को ओसीआई कार्ड के लिए जीवनसाथी के रूप में आवेदन करने के लिए योग्य घोषित किया जाना चाहिए।

हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि ‘स्पाउस’ का अर्थ पति और पत्नी है, ‘विवाह’ विषमलैंगिक जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है और इस प्रकार नागरिकता कानून के संबंध में कोई विशिष्ट जवाब दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “कानून जैसा भी है… जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह की अनुमति है।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आगे दावा किया कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार के मामले के बारे में याचिकाकर्ताओं की गलत धारणा है, जिसने निजी तौर पर वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। उन्होंने कहा कि यहां मुद्दा यह है कि क्या समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की अनुमति है। अदालत को यह तय करना है। नवतेज सिंह जौहर मामले के बारे में कुछ गलत धारणा है। यह केवल गैर-अपराधीकरण करता है … यह शादी के बारे में बात नहीं करता है।

इससे पहले केंद्र ने याचिकाओं का विरोध करते हुए हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामे में कहा गया है कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह की संस्था की स्वीकृति को न तो मान्यता प्राप्त है और न ही किसी भी असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों या किसी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में स्वीकार किया गया है।

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