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बुंदेलखंड के 613 गांवों में दुग्ध उत्पादन से जुड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है वर्ष 2019 में बलिनी दुग्ध उत्पादन कंपनी की शुरुआत हुई और सिर्फ दो साल में कंपनी एक अरब रुपये की हो गई है। कुड़ौरा गांव की अंजनी और बांकी निवासी उमाकांती ने मिशाल पेश की है।
हमीरपुर, जेएनएन। किसी ने कहा है कि मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है… इन पंक्तियों को सच साबित कर दिखाया है, जिले के कुड़ौरा गांव की हाईस्कूल पास अंजनी और बांकी निवासी बीटीसी का प्रशिक्षण ले चुकीं उमाकांती ने। उनके प्रयास से बुंदेलखंड में बीते 10 वर्षों से फेल चल रहीं दुग्ध समितियों के स्थान पर बलिनी दुग्ध उत्पादन कंपनी के लिए नई समितियां बनीं और हजारों की संख्या में महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए जुड़कर आर्थिक रूप से समृद्ध हुईं। दो साल में ही कंपनी एक अरब रुपये की हो गई है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड नई दिल्ली के सहयोग से बलिनी दुग्ध उत्पादन कंपनी की शुरुआत जनवरी 2019 में बुंदेलखंड के पांच जिलों हमीरपुर, बांदा, झांसी, जालौन व चित्रकूट में एक साथ हुई। अब यह बुंदेलखंड के सातों जिलों में संचालित है। एनआरएलएम के जिला प्रबंधक प्रशांत मिश्रा ने बताया कि दो वर्ष में कंपनी एक अरब रुपये जुटा चुकी है। इसमें बोर्ड आफ डायरेक्टर बनाई गई अंजनी और उमाकांती का अहम योगदान है। दोनों ने जिले के साथ दूसरे जनपदों में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ा। इससे अधिक मात्रा में दुग्ध कलेक्शन किया जा सका और पशु पालक महिलाओं के लाभान्वित होने के साथ कंपनी भी लाभ में पहुंच गई।
अंजनी व उमाकांती खुद पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन के काम से जुड़ी थीं। इसीलिए शुरुआत में सर्वे के दौरान ही पात्रता के आधार पर उनका चयन बोर्ड आफ डायरेक्टर के पद पर किया गया। इसके बाद उनके अथक प्रयास से कंपनी ने यह मुकाम हासिल किया। सबसे बड़ी बात ये है कि बीते 10 वर्षों में क्षेत्र में तमाम दुग्ध समितियां निष्क्रिय हो गईं, लेकिन इन दोनों और समूह की महिलाओं के प्रयास से नई समितियां बनने के साथ लाभ भी कमा रहीं हैं। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र में जहां एक ओर रोजगार के अभाव में जबरदस्त पलायन की समस्या से है, वहीं दूसरी ओर इसी क्षेत्र के करीब 613 गांवों की 24 हजार से अधिक महिलाएं दूध उत्पादन के काम से जुड़कर आत्मनिर्भर हुई हैं।
बुंदेलखंड में 65 हजार लीटर दूध संग्रह
महिलाएं बलिनी के नाम से घी का भी उत्पादन करती हैं। दूध मदर डेयरी भेजती हैं। बुंदेलखंड के सातों जिलों में संचालित कंपनी के एक अरब में 88 करोड़ रुपये पशुपालन कर रही स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बांटा गया है। बुंदेलखंड में 65 हजार 213 लीटर दूध संग्रह किया जा रहा है। हमीरपुर में राठ और पौथिया गांव में 10 हजार लीटर की बल्क मिल्क कलेक्शन यूनिट स्थापित है। साभार-दैनिक जागरण
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