अब कोरोना वायरस के लैम्ब्डा वैरिएंट ने बढ़ाई चिंता, जानिए इस वैरिएंट के बारे में सब कुछ

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कोरोना लगातार नए-नए रूप में सामने आ रहा है। डेल्टा और डेल्टा प्लस के बाद अब लैम्ब्डा वैरिएंट के केस बढ़ने लगे हैं। दुनिया के 29 देशों में इस वैरिएंट से संक्रमित मरीज मिल चुके हैं। ये आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। मार्च-अप्रैल में इस वैरिएंट से जुड़े केस तेजी से बढ़ने के बाद 14 जून को WHO ने इस वैरिएंट को ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ की कैटेगरी में रखा। WHO का मानना है कि कई देशों में फिर से बढ़ रहे केस लोड के पीछे लैम्ब्डा वैरिएंट ही जिम्मेदार है।

समझते हैं, आखिर लैम्ब्डा वैरिएंट क्या है? कितना घातक है? अब तक कहां-कहां इस वैरिएंट के केस सामने आए हैं? इसके क्या लक्षण हैं? WHO ने इस वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट में रखा है, ये क्या होता है?

लैम्ब्डा वैरिएंट क्या है?
हर वायरस लंबे समय तक जीवित रहने और खुद को मजबूत बनाने के लिए अपने जीनोम (आम भाषा में कहें तो संरचना) में बदलाव करता रहता है। वायरस की मूल संरचना में होने वाले बदलावों को म्यूटेशन कहते हैं और इन बदलावों के बाद वायरस नए रूप में हमारे सामने आता है, जिसे वैरिएंट कहा जाता है। आसान भाषा में समझें, तो ये वायरस का नया रूप है जिसे लैम्ब्डा (C.37) नाम दिया गया है।

लैम्ब्डा वैरिएंट आया कहां से?
ऐसा नहीं है कि लैम्ब्डा वैरिएंट अभी आया है। WHO के मुताबिक इस वैरिएंट की पहचान दिसंबर 2020 में सबसे पहले दक्षिण अमेरिकी देश पेरू में हुई थी। हालांकि पेरू में ही इस वैरिएंट के मामले अगस्त 2020 से आने लगे थे।

पेरू में ही इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। वहां के 80% केस के पीछे लैम्ब्डा वैरिएंट को ही जिम्मेदार माना जाता है। इस वैरिएंट को लेकर चिंता तब बढ़ने लगी, जब इस साल मार्च के अंत तक 25 से भी ज्यादा देशों में इसके मामले सामने आए। उसके बाद 14 जून को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लैम्ब्डा को ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ डिक्लेयर किया।

वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट का क्या मतलब है?
जब वायरस के किसी नए वैरिएंट की पहचान होती है तो उस वैरिएंट को और ज्यादा जानने-समझने के लिए WHO उसकी निगरानी करता है। इसके लिए वायरस को वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट की कैटेगरी में डाला जाता है।

अगर वायरस की स्टडी के बाद पाया जाता है कि वैरिएंट तेजी से फैल रहा है और बहुत संक्रामक है तो उसे ‘वैरिएंट ऑफ कंसर्न’ की कैटेगरी में डाल दिया जाता है। इससे पहले भी वैरिएंट्स की प्रकृति के आधार पर WHO अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा को ‘वैरिएंट ऑफ कंसर्न’ की कैटेगरी में रख चुका है।

कुछ वैरिएंट ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें न तो वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट में और न ही वैरिएंट ऑफ कंसर्न की कैटेगरी में डाला जाता है। जैसे भारत में डेल्टा प्लस वैरिएंट के भी कई केस सामने आए हैं, लेकिन WHO ने अभी तक इस वैरिएंट को किसी भी कैटेगरी में नहीं डाला है।

क्या लैम्ब्डा वैरिएंट के लक्षण भी अलग हैं?
अभी वैज्ञानिकों के पास इस संबंध में कम जानकारी है, लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना के दूसरे वैरिएंट की तरह ही लैम्ब्डा के भी लक्षण हैं। इसके मरीजों में भी तेज बुखार, सर्दी-खांसी, टेस्ट और स्मेल में बदलाव होना या बिल्कुल नहीं आना, सांस लेने में परेशानी, बदन दर्द और थकान जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं। यानी कोरोना के बाकी वैरिएंट की तरह ही लैम्ब्डा के भी लक्षण हैं।

अब तक कितने देशों में फैल चुका है?
लैम्ब्डा वैरिएंट के केस सबसे पहले अगस्त 2020 में पेरू में सामने आए। तब ये केवल दक्षिण अमेरिका के चुनिंदा देशों में ही था। इससे संक्रमित लोगों की संख्या भी कम थी। दिसंबर 2020 में WHO ने पहली बार इस वैरिएंट का डॉक्युमेंटेशन किया।

मार्च के बाद इस वैरिएंट ने अचानक रफ्तार पकड़ी। इसके बाद अलग-अलग देशों में लैम्ब्डा वैरिएंट के नए मामले सामने आने लगे। फिलहाल ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत 29 देशों में लैम्ब्डा वैरिएंट के मामले सामने आए हैं। ज्यादातर देशों में ये वैरिएंट इंटरनेशनल ट्रेवलर्स के जरिए फैला है।

लैम्ब्डा वैरिएंट खतरनाक क्यों माना जा रहा है?

  • वैज्ञानिकों के मुताबिक लैम्ब्डा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 7 अलग-अलग म्यूटेशन देखे जा रहे हैं। इनमें से एक म्यूटेशन (L452Q) डेल्टा वैरिएंट में पाए गए L452R म्यूटेशन से मिलता जुलता है। माना जाता है कि डेल्टा वैरिएंट पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के असर को कम करने के पीछे L452R म्यूटेशन ही जिम्मेदार है।
  • साइंस जर्नल ‘सेल’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, डेल्टा वैरिएंट में L452R म्यूटेशन की वजह से ही इसकी संक्रामकता बढ़ी थी। L452R से मिलता-जुलता म्यूटेशन लैम्ब्डा में भी पाया गया है जिसका मतलब है कि इसकी संक्रामकता भी ज्यादा हो सकती है।
  • प्रि-प्रिंट सर्वर medRxiv पर पब्लिश एक रिसर्च स्टडी के मुताबिक, लैम्ब्डा वैरिएंट का स्पाइक प्रोटीन वैक्सीन द्वारा बनाई गई एंटीबॉडी के असर को कम कर सकता है।
  • इसी स्टडी में ये भी बताया गया है कि लैम्ब्डा वैरिएंट अल्फा और गामा के मुकाबले ज्यादा संक्रामक है। साथ ही लैम्ब्डा वैरिएंट से संक्रमित लोगों में वैक्सीन से एंटीबॉडी बनने की संख्या भी 3 गुना तक कम हो गई है।
  • हाल ही में चिली में हुई एक स्टडी में सामने आया है कि अल्फा और गामा वैरिएंट के मुकाबले लैम्ब्डा वैरिएंट ज्यादा संक्रामक है। इस स्टडी में ये भी पता चला है कि इस वैरिएंट के खिलाफ चीनी वैक्सीन सिनोवेक की इफेक्टिवनेस कम हुई है।

क्या भारत में अभी तक लैम्ब्डा वैरिएंट के केस सामने आए हैं?
नहीं। भारत के साथ-साथ हमारे पड़ोसी देशों में भी लैम्ब्डा वैरिएंट का एक भी केस सामने नहीं आया है। एशिया में केवल इजराइल में ही इस वैरिएंट से जुड़े 25 केस सामने आए हैं।

तो क्या भारत के लिए चिंता की जरूरत है?
बिल्कुल। डेल्टा वैरिएंट की वजह से आई दूसरी लहर ने भारत में लाखों लोगों की जान ली है। अगर वैज्ञानिकों की मानें तो ये वैरिएंट बाकी वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक हो सकता है, इस वजह से भारत को अतिरिक्त सावधानियां बरतने की जरूरत है।

पिछले 1-2 हफ्तों में यूरोप के उन देशों में भी कोरोना वायरस के नए मामले बढ़ने लगे हैं, जहां अच्छी-खासी आबादी को वैक्सीन लग चुकी है। माना जा रहा है कि ये वैरिएंट वैक्सीन के जरिए मिली इम्यूनिटी को बायपास कर रहा है।

कोरोना वायरस से लड़ने में वैक्सीन को ही कारगर हथियार माना जा रहा है। भारत में वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ी जरूर है, लेकिन आबादी के हिसाब से ये बेहद कम है। यानी भारत में कम लोगों में ही वैक्सीन के जरिए वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी डेवलप हुई है।

फिलहाल लैम्ब्डा वैरिएंट के बारे में वैज्ञानिकों के पास ज्यादा जानकारी नहीं है। इस वैरिएंट को और बेहतर तरीके से समझने के लिए अलग-अलग देशों में कई स्टडीज की जा रही हैं।

साभार-दैनिक भास्कर

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