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क्या एलर्जी से पीड़ित लोगों को टीका लगाया जा सकता है? क्या गर्भवती महिलाएं कोरोना का टीका लगवा सकती हैं? क्या स्तनपान कराने वाली माताएं भी टीका लगवा सकती हैं? क्या टीका लगवाने के बाद शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी बन जाएगी?
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने इस तरह के कई सवालों के जवाब जारी किए हैं। इन सवालों के जवाब दिए हैं नीति आयोग के हेल्थ मेंबर डॉ. वी के पॉल और एम्स के डॉ. रणदीप गुलेरिया ने। इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी अक्सर पूछे जाने वाले कुछ सवालों के जवाब जारी किए हैं। पढ़िए कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर आपके मन में आने वाले हर सवाल का जवाब….
सवाल: क्या एलर्जी वालों को टीका लगाया जा सकता है?
डॉ. पॉल: अगर किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है, तो डॉक्टर की सलाह के बाद ही कोविड का टीका लगवाना चाहिए। हालांकि अगर केवल मामूली एलर्जी – जैसे सामान्य सर्दी, त्वचा की एलर्जी आदि हो, तो टीका लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
डॉ. गुलेरिया: एलर्जी की पहले से दवा लेने वालों को रोकना नहीं चाहिए, टीका लगवाने के बाद भी नियमित रूप से दवा लेते रहना चाहिए। यह भी जानना जरूरी है कि टीकाकरण के कारण होने वाली एलर्जी के प्रबंधन के लिए सभी टीकाकरण स्थलों पर व्यवस्था की गई है। इसलिए यदि आपको गंभीर एलर्जी हो, तो भी आप दवा लेते रहें और टीका लगवाएं।
सवाल: क्या गर्भवती महिलाएं कोविड-19 का टीका लगवा सकती हैं?
डॉ. पॉल: मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को टीका नहीं लगाया जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने परीक्षणों के बाद फिलहाल गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण न करने की सिफारिश की है। हालांकि भारत सरकार नए वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर कुछ दिनों में इस स्थिति को स्पष्ट करेगी।
यह पाया गया है कि गर्भवती महिलाओं के लिए कई कोविड-19 टीके सुरक्षित हैं। उम्मीद है कि देश में मौजूद दो टीकों के लिए भी जल्द रास्ता खुल जाना चाहिए। हम जनता से थोड़ा और धैर्य रखने का अनुरोध करते हैं। टीके बहुत कम समय में विकसित किए गए हैं और गर्भवती महिलाओं को आमतौर पर सुरक्षा चिंताओं के कारण प्रारंभिक परीक्षणों में शामिल नहीं किया जा रहा है।
डॉ. गुलेरिया: कई देशों ने गर्भवती महिलाओं के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया है। अमेरिका के एफडीए ने फाइजर और मॉडर्ना के टीकों को इसके लिए मंजूरी दे दी है। कोवैक्सिन और कोवीशील्ड से संबंधित आंकड़े भी जल्द आएंगे। हमें उम्मीद है कि कुछ दिनों में, हमें जरूरी आंकड़े मिल जाएंगे। इसके बाद भारत में भी गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण को मंजूरी दी जा सकेगी।
सवाल: क्या स्तनपान कराने वाली माताएं कोविड-19 टीका लगवा सकती हैं?
डॉ पॉल: इस बारे में काफी दिशा-निर्देश हैं कि टीका स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए किसी तरह का डर नहीं है। टीकाकरण से पहले या बाद में भी स्तनपान कराया जा सकता है।
सवाल: क्या टीका लगवाने के बाद पर्याप्त एंटीबॉडी बन जाती हैं?
डॉ. गुलेरिया: यह समझना जरूरी है कि टीकों की एफिकेसी का आकलन केवल इनसे पैदा होने वाली एंटीबॉडी की मात्रा से नहीं करनी चाहिए। टीके कई प्रकार की सुरक्षा प्रदान करते हैं – जैसे एंटीबॉडी, कोशिकाओं या सेल से होने वाली इम्यूनिटी और मेमोरी सेल। दरअसल, संक्रमित होने पर मेमोरी सेल से ज्यादा एंटीबॉडी बनती हैं।
अब तक उपलब्ध आंकड़ों से साफ है कि सभी टीकों का असर – चाहे कोवैक्सिन हो, कोवीशील्ड हो या स्पूतनिक V, ये तीनों कमोबेश बराबर हैं। ऐसे में किसी टीके को लेकर मन में सवाल नहीं होना चाहिए। जो भी टीका उपलब्ध हो, लगवा लेना चाहिए।
डॉ. पॉल: कुछ लोग टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी टेस्ट कराने के बारे में सोचते हैं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं है। अकेले एंटीबॉडी किसी शख्स की इम्यूनिटी का संकेत नहीं देती। ऐसा टी या मेमोरी सेल के कारण होता है। टीका लगवाने के बाद ये सेल्स मजबूत हो जाते हैं और शरीर कोरोना से लड़ने की क्षमता हासिल कर लेता है।
एंटीबॉडी टेस्ट से टी या मेमोरी सेल का पता नहीं चलता, क्योंकि ये बोन मैरो में पाई जाती हैं। ऐसे में टीका लगवाने के बाद एंटीबॉडी टेस्ट कराने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। जो भी टीका उपलब्ध है उसे लगवाएं और दोनों खुराक समय पर ही लें। कोरोना से जुड़ी गाइडलाइंस का पालन करें। लोगों का यह सोचना भी गलत है कि कोरोना होने के बाद वैक्सीन की जरूरत नहीं है।
सवाल: क्या वैक्सीन का इंजेक्शन लगने के बाद ब्लड क्लॉटिंग सामान्य है?
डॉ. पॉल: ब्लड क्लॉटिंग के कुछ मामले सामने आए हैं। खासकर एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लेकर। ऐसा यूरोप में हुआ। इसकी वजह उनकी लाइफस्टाइल, शरीर और आनुवांशिक संरचना है। लेकिन हमने भारत में इन आंकड़ों की व्यवस्थित रूप से जांच की है। हमारे देश में ब्लड क्लॉटिंग की घटनाएं तकरीबन न के बराबर हैं। ऐसे में इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। यूरोपीय देशों में ब्लड क्लॉटिंग को लेकर दिक्कतें हमारे देश की तुलना में करीब 30 गुना अधिक पाई गई हैं।
डॉ. गुलेरिया: यह पहले भी देखा गया है कि सर्जरी के बाद ब्लड क्लॉटिंग भारतीय आबादी में अमेरिका और यूरोपीय आबादी की तुलना में कम है। वैक्सीन से होने वाले थ्रोम्बोसिस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया नाम का बुरा असर अपने देश में न के बराबर है। यूरोप के मुकाबले ये काफी कम है। इससे डरने की जरूरत नहीं है। अगर ऐसा होता भी है तो इसका इलाज मौजूद है।
सवाल: अगर मुझे कोरोना हो गया है, तो कितने दिनों के बाद मैं टीका लगवा सकता हूं?
डॉ. गुलेरिया: नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक कोविड से ठीक होने के 3 महीने बाद टीका लगवा सकते हैं। ऐसा करने से शरीर को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलेगी और टीके का असर बेहतर होगा।
डॉ. पॉल और डॉ. गुलेरिया ने जोर देकर कहा कि हमारे टीके आज तक भारत में देखे गए म्यूटेंट पर प्रभावी हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों को भी झूठा और निराधार बताया जैसे कि टीके लगने के बाद इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है या लोग टीके लगवाने के बाद मर जाते हैं।
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