‘डोज नहीं है’ कहकर 18+ की वैक्सीन रोकी; पर रोज बने 27 लाख डोज गए कहां? प्राइवेट अस्पतालों को तो नहीं चले गए सारे डोज

 

भारत में कोविड-19 वैक्सीनेशन को लेकर बनती-बिगड़ती पॉलिसी ने अराजकता की स्थिति बना दी है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली समेत कुछ राज्यों में 18-44 वर्ष ग्रुप को वैक्सीन डोज देने पर फिलहाल रोक लग गई है। ऐसा नहीं है कि डोज बन नहीं रहे या लगा नहीं सकते, प्रोडक्शन भी बढ़ रहा है। पर जितने डोज बन रहे हैं, उतने डोज लग नहीं पा रहे। इससे सवाल उठ रहा है कि आखिर यह डोज जा कहां रहे हैं?

डोज प्रोडक्शन की बात करें तो सरकार ने मई में ही सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश में रोज करीब 27 लाख डोज बन रहे हैं। पर प्रोडक्शन और डोज देने के आंकड़े मेल नहीं खा रहे। मई के 22 दिन में भारत में 3.6 करोड़ डोज लगे। यानी हर दिन करीब 16 लाख डोज। चिंता की बात यह है कि पिछले हफ्ते यानी 16 से 22 मई के बीच यह आंकड़ा घटकर 13 लाख डोज रोज हो गया। वह भी उस परिस्थिति में जब महाराष्ट्र ने 12 मई को 18-44 वर्ष ग्रुप को वैक्सीन डोज देने बंद कर दिए हैं। कर्नाटक ने भी रविवार को यह फैसला लिया और दिल्ली ने शनिवार को। अब पंजाब और छत्तीसगढ़ में भी 18-44 के वैक्सीनेशन को सस्पेंड करने की खबरें आ रही हैं। जब राज्यों को वैक्सीन के डोज नहीं मिल रहे हैं तो आखिर जा कहां रहे हैं? यह सवाल इसलिए क्योंकि अभी एक्सपोर्ट पूरी तरह बंद है।

आइए समझते हैं प्रोडक्शन और वैक्सीन की सप्लाई में गड़बड़ी…

कितने डोज भारत में रोज बन रहे हैं?

  • केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) हर महीने कोवीशील्ड के 5 करोड़ डोज बना रही है। भारत बायोटेक भी कोवैक्सिन के 2 करोड़ डोज हर महीने बना रही है।
  • दोनों कंपनियों का एक्सपैन्शन प्लान भी दिया है। इसके अनुसार कोवीशील्ड के अप्रैल से ही हर महीने 6.5 करोड़ डोज बन रहे हैं और मई तक कोवैक्सिन के भी हर महीने 3 करोड़ डोज बनना शुरू हो जाएंगे। इस हिसाब से देखें तो मई में भारत में कम से कम 8.5 करोड़ डोज बनने चाहिए। 31 दिन का औसत देखें तो कम से कम 27 लाख डोज रोज बनने चाहिए।

भारत में वैक्सीनेशन की रफ्तार पर ब्रेक कैसे लगा?

  • कोविन पोर्टल पर वैक्सीनेशन के आंकड़े देखें तो मई के 22 दिन में 3.6 करोड़ डोज ही दिए गए। यानी 16 लाख डोज हर रोज। इस रफ्तार से मई अंत में 5 करोड़ डोज तक पहुंच सकते हैं। पिछले कुछ हफ्तों में वैक्सीनेशन के आंकड़े तेजी से नीचे गिरे हैं। 16 से 22 मई के हफ्ते में सिर्फ 13 लाख डोज औसतन रोज दिए जा सके। इसे देखते हुए लग रहा है कि अगले हफ्ते में औसत और नीचे भी आ सकता है।

कहां बिगड़ा भारत का वैक्सीनेशन प्लान?

  • भारत में 16 जनवरी को कोविड वैक्सीनेशन शुरू हुआ। शुरुआत में हेल्थकेयर वर्कर्स को डोज दी गई। फिर 2 फरवरी से फ्रंटलाइन वर्कर्स को अभियान में जोड़ा गया। 1 मार्च से 45-59 वर्ष के गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के साथ ही 60+ को वैक्सीनेट किया जाने लगा। इसके बाद धीरे-धीरे वैक्सीनेशन ने रफ्तार पकड़ी।
  • पर असली रफ्तार मिली 1 अप्रैल के बाद। जब 45+ को वैक्सीनेट करने का ऐलान हुआ। पहले ही हफ्ते में ढाई करोड़ से ज्यादा डोज दिए गए। ऐसा लगने लगा था कि अगस्त तक 45+ को पूरी तरह वैक्सीनेट करने की योजना पूरी हो जाएगी।
  • पर राज्यों के दबाव में अप्रैल में केंद्र सरकार ने ऐलान कर दिया कि 1 मई से 18-44 वर्ष ग्रुप को भी वैक्सीनेट किया जाएगा। यहां से पूरा वैक्सीनेशन अभियान ही बेपटरी हो गया। वैक्सीन के डोज उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल के बीच में ही केंद्र सरकार ने विदेशी वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल देने के लिए नई पॉलिसी की घोषणा की। पर इस पॉलिसी के आने के बाद भी अब तक किसी भी विदेशी वैक्सीन के भारत आने की उम्मीद नहीं बंधी है।

क्या राज्य सरकारें जुटा पाएंगी सबके लिए वैक्सीन?

  • लग तो नहीं रहा। पिछले हफ्ते तक नौ राज्यों ने वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकाले थे। और भी राज्य इसी रास्ते पर चलने वाले हैं। यहां तक कि बृह्नमुंबई महानगर पालिका (BMC) ने भी ग्लोबल टेंडर निकाला था। पर कोई कंपनी सप्लाई करने की स्थिति में नहीं है।
  • पंजाब सरकार ने जब मॉडर्ना और फाइजर से संपर्क किया तो सीधे बोल दिया गया कि हम राज्य सरकारों से डील नहीं करेंगे। सीधे केंद्र सरकार से करेंगे। पर केंद्र सरकार की ओर से 18-44 वर्ष ग्रुप को वैक्सीनेट करने की जिम्मेदारी फिलहाल राज्यों पर ही छोड़ी गई है।
  • सुप्रीम कोर्ट से लेकर इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड, एसबीआई रिसर्च जैसी संस्थाओं का भी कहना है कि राज्यों के बजाय अगर केंद्र ने डील किया तो ही 18-44 वर्ष ग्रुप के लिए डोज उपलब्ध हो सकेंगे। हेल्थ पॉलिसी बनाने वाले विशेषज्ञों की भी राय यही है। पर इस समय तो इसके आसार नहीं दिख रहे हैं।

आखिर प्रोडक्शन और सप्लाई में गैप क्यों आ रहा है?

  • अप्रैल में केंद्र ने जो पॉलिसी बनाई है, उसके मुताबिक देश में बनने वाले आधे वैक्सीन डोज ही केंद्र सरकार खरीदेगी। बाकी बचे वैक्सीन डोज राज्यों और प्राइवेट अस्पतालों में जाएंगे। राज्यों के पास इस समय वैक्सीन डोज नहीं हैं। इसी वजह से राज्यों ने 18-44 वर्ष ग्रुप को वैक्सीनेट करने की योजना टालनी शुरू कर दी है।
  • प्रोडक्शन और सप्लाई गैप का एक संभावित जवाब हो सकता है- प्राइवेट सेक्टर का कोटा। यानी कुल प्रोडक्शन का एक-चौथाई हिस्सा प्राइवेट अस्पतालों के रास्ते लोगों तक पहुंचना था। कई कारणों से अस्पतालों की मैन्युफैक्चरर्स के साथ डील नहीं हो सकी है। इस वजह से इसमें देरी हो रही है।
  • इसका नतीजा यह है कि कोविन पोर्टल या ऐप पर पूरे देश में वैक्सीन डोज के लिए स्लॉट्स नहीं मिल रहे हैं। पिछले हफ्ते आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों के कोटे की वैक्सीन राज्यों को डायवर्ट की जाए। इससे वैक्सीन डोज की कमी कुछ हद तक दूर होगी और कंपनियों के गोदामों में पड़े डोज इस्तेमाल हो सकेंगे।

क्या दिसंबर तक देश की 18+ आबादी को वैक्सीनेट करने का टारगेट पूरा होगा?

  • फिलहाल तो लग नहीं रहा। भारत सरकार का दावा है कि जुलाई-दिसंबर तक दो अरब से ज्यादा डोज उपलब्ध होंगे। यह प्रोजेक्शन सही साबित हुआ तो टारगेट जरूर पूरा हो जाएगा। पर सरकारी प्लान में जायडस कैडिला, जेनोवा फार्मास्युटिकल्स, नोवावैक्स समेत कई ऐसी वैक्सीन शामिल हैं, जो अभी क्लीनिकल ट्रायल्स से भी पास नहीं हुई है।
  • रेगुलेटरी प्रक्रिया से निकलने में ही इन वैक्सीन को पांच-छह महीने लग जाएंगे। तो यह दिसंबर तक इतना प्रोडक्शन कैसे कर लेंगी? यह एक ऐसा सवाल है, जो विशेषज्ञ सरकार से पूछ रहे हैं। इस समय सिर्फ दो ही वैक्सीन (कोवीशील्ड और कोवैक्सिन) सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा हैं। रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V भी प्राइवेट अस्पतालों के रास्ते लगनी शुरू हुई है।

साभार-दैनिक भास्कर

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