कोरोना: बच्चों में संक्रमण से निपटने के लिए कैसी है हमारी तैयारी?

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पूरे देश में फैली कोरोना महामारी की दूसरी लहर अभी ख़त्म नहीं हुई है और तीसरी लहर की चर्चा शुरू हो गई है. ये लहर कब आएगी इसका ठीक अंदाज़ा लगा पाना अभी मुश्किल है लेकिन डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स का मानना है कि तीसरी लहर बच्चों के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो सकती है.

कोरोना की पहली लहर में RT-PCR टेस्ट में चार फ़ीसद बच्चे पॉज़िटिव पाए गए थे और दूसरी लहर में ये संख्या 10 प्रतिशत तक पहुँच गई है.

आबादी के हिसाब से देखा जाए तो देश में बच्चों की 30 करोड़ की आबादी का ये 14 प्रतिशत होगा.

इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने फ़रवरी 2021 की अपनी सीरो रिपोर्ट में कहा था कि 25.3 फ़ीसद बच्चों में वायरस के एंटीबॉडी मौजूद थे. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 25.3 फ़ीसद बच्चों को कोरोना संक्रमण हो चुका है.

जाने माने वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर वी. रवि ने बीबीसी को बताया, “अगर पहली और दूसरी लहर के दौरान कोरोना संक्रमण के आंकड़ों और सीरो सर्वे के आंकड़ों को मिला कर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि भारत में 40 फ़ीसद बच्चे कोरोना वायरस के संपर्क में आ चुके हैं.”

उनका कहना है, “इसका मतलब ये हुआ कि 60 फ़ीसद बच्चों को कोरोना संक्रमण का ख़तरा हो सकता है.”

सीरो सर्वे में वो लोग शामिल नहीं होते जो RT-PCR टेस्ट में पॉज़िटिव पाए जाते हैं. फिर भी अगर कहीं चूक हो जाए तो जानकार इसे बहुत बड़े फेरबदल करने वाले आंकड़े के तौर पर नहीं देखते.

डॉक्टर वी. रवि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज़ में न्यूरोवायरोलॉजी के पूर्व प्रोफ़ेसर हैं. फ़िलहाल वो कर्नाटक में सार्स सीओवी-2 जीनोमिक सीक्वेंसिंग कार्यक्रम के नोडल ऑफ़िसर हैं. जीनोमिक सीक्वेंसिंग से वायरस में होने वाले म्यूटेशन पर नज़र रखने और इसे समझने में मदद मिलती है.

अधिक घातक हो सकती है महामारी की तीसरी लहर

कई जानेमाने एपिडेमियोलॉजिस्ट, डॉक्टर रवि के इस आकलन से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं और आने वाले वक़्त में महामारी की एक और लहर को लेकर आशंका जताते हैं.

एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉक्टर रवि की इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं कि भारत को जल्द से जल्द कोरोना महामारी की तीसरी लहर की तैयारी करनी चाहिए क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि ये वायरस भविष्य में कैसे लोगों को संक्रमित करेगा.

जानेमाने एपिडेमियोलॉजिस्ट और वेल्लूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉक्टर जयप्रकाश मुलियिल ने बीबीसी को बताया, “ये अच्छी बात है कि महमारी की इस लहर में बच्चों की मौत की दर कम रही है लेकिन भविष्य में ऐसा होगा या नहीं ये नहीं कहा जा सकता.”

वो कहते हैं, “दिल्ली में हुए सीरो सर्वे में ये बात सामने आई है कि ये किसी ख़ास उम्र के लोगों को होने वाला संक्रमण नहीं है. दूसरे शब्दों में कहूं तो ये पूरे परिवार को संक्रमित करने वाला वायरस है, यानी अगर परिवार में संक्रमण फैलेगा तो बच्चे इससे अछूते नहीं रहेंगे.”

दिल्ली, चेन्नई और बेंगलुरू के तीन जानेमाने बालरोग विशेषज्ञ डॉक्टर रवि और डॉक्टर मुलियिल के नज़रिए से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.

आंकड़े डराने वाले हो सकते हैं

डॉक्टर वी. रवि कहते हैं कि अगर पहली लहर से तुलना की जाए तो दूसरी लहर में कोरोना पॉज़िटिव बच्चों का आंकड़ा दोगुना हो गया था. लिहाज़ा इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोविड-19 की तीसरी लहर में बच्चों में संक्रमण बढ़ सकता है.

डॉक्टर रवि कहते हैं, “भारत में लगभग 30 करोड़ बच्चों में से लगभग 18 करोड़ के कोरोना से संक्रमित होने का डर है. इन 18 करोड़ में से अगर ये मान लिया जाए कि 20 फ़ीसद यानी 3.6 करोड़ बच्चे संक्रमित हो जाते हैं, और इन में से एक प्रतिशत को भी अगर अस्पताल में इलाज की ज़रूरत पड़ी, तो क्या इसके लिए हम तैयार हैं?”

बाल रोग विशेषज्ञ भी मानते हैं कि ऐसी स्थिति के लिए तैयारी न के बराबर है.

एपिडेमियोलॉजिस्ट और पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया में प्रोफ़ेसर डॉक्टर गिरिधर बाबू कहते हैं, “मैं डॉक्टर रवि की बात से सहमत हूं. कोई नहीं चाहेगा कि कोरोना से उनके बच्चे संक्रमित हों. लेकिन अगर बच्चों में संक्रमण फैल तो क्या हमारे पास सभी व्यवस्थाएं हैं? इसका उत्तर होगा नहीं.”

वहीं डॉक्टर मुलियिल कहते हैं कि, “हमारी तैयारी को आप हास्यास्पद कह सकते हैं.”

बच्चों के लिए ख़ास आईसीयू की कमी

बाल रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि अधिकतर बच्चों को होने वाले संक्रमण के लक्षण मामूली हो सकते हैं, लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होंगे जिन्हें अस्पताल की ज़रूरत होगी.

लेकिन क़रीब एक फ़ीसद ऐसे कोरोना संक्रमित बच्चे भी होंगे जिनकी हालत गंभीर होगी और जिन्हें इंटेन्सिव केयर यूनिट में इलाज की ज़रूरत होगी, हमारे लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी.

डॉक्टर बाला रामचंद्रन ने बीबीसी को बताया, “बड़े शहरों को छोड़कर दूसरे शहरों में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) यानी बच्चों के आईसीयू नहीं हैं. चिकित्सा सेवा के मामले में दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत की तुलना में कहीं बेहतर हैं. लेकिन, यहां भी हर राज्य में सिर्फ़ बड़े शहरों में चुनिंदा पीआईसीयू हैं.”

डॉक्टर बाला रामचंद्रन चेन्नई के कांची कामकोटि चाइल्ड ट्रस्ट अस्पताल में इंटेंसिव केयर यूनिट के प्रमुख हैं.

ये बात भी सच है कि देश के निजी और सरकारी अस्पतालों में कितने पीआईसीयू हैं इसके बारे में सही तस्वीर हमारे पास नहीं है. एक डॉक्टर का दावा है कि देश में चालीस हज़ार पीआईसीयू हैं.

पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर के इंडिया चैप्टर के चेयरपर्सन डॉ धीरेन गुप्ता ने बीबीसी को बताया कि भारत में बच्चों के लिए क़रीब 70 हज़ार पीआईसीयू हैं जो सभी सरकार से मान्यता प्राप्त हैं और इनमें बेड की संख्या अलग-अलग है.

पीआईसीयू बेड, बड़ों की आईसीयू बेड से अलग होते हैं और बड़ों के आईसीयू बेड को कम समय में बच्चों के लायक़ बनाना आसान नहीं है. उदाहरण के तौर पर जो ऑक्सीजन मास्क बड़ों के लिए काम करता है बच्चों में वो काम नहीं करेगा क्योंकि वो उनके मुंह के लिए फ़िट नहीं होगा.

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ, बेंगलुरु की पूर्व निदेशक डॉ आशा बेनकप्पा कहती हैं, “बुनियादी ढांचे, सुविधाएं या मानव संसाधन के मामले में बच्चों की देखभाल करने के लिए तैयार नहीं हैं. मुझे वाक़ई में बच्चों की चिंता है.”

चुनौतियां क्या हैं?

अगर अप्रैल में अधिक बच्चे संक्रमित हुए हैं, तो मई के महीने में पीआईसीयू में अधिक बच्चों आएंगे. इसे बच्चों में मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम कहा जाता है. डॉक्टर आम बोलचाल में इसे ‘हिट एंड रन’ संक्रमण के केस कहते हैं.

डॉ. रामाचंद्रन का कहना हैं, “बच्चों में ये सिंड्रोम कोरोना वायरस से संक्रमित होने के तीन से चार हफ़्ते बाद पनपता है, और बच्चे तुरंत ही काफ़ी ज़्यादा बीमार पड़ जाते हैं. इस बीमारी का इलाज भी काफ़ी महंगा होता है.”

इस सिंड्रोम की पहचान पिछले साल अप्रैल महीने में इंग्लैंड में हुई थी

भारत में डॉक्टर रामाचंद्रन और उनकी टीम ने इसकी पहचान कर इसके इलाज के लिए प्रोटोकॉल बनाया है. इसके इलाज के बारे में भी जानकारी बालरोग से जुड़ी पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है.

बच्चों का इलाज बहुत महंगा है

डॉ रामाचंद्रन का कहना है, “सिंड्रोम का शिकार होने के बाद बच्चे को उसके वज़न के आधार पर 24 घंटे से अधिक समय तक इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन दिया जाता है. आप कह सकते हैं कि बच्चे के प्रति किलो ग्राम वज़न के लिए दो ग्राम का इंजेक्शन दिया जाता है.”

“इस इंजेक्शन के 10 ग्राम की क़ीमत 16,000 रूपये है और यह सबसे सस्ता विकल्प है. अगर बच्चा 20 किलो का है, तो उसे 40 ग्राम इंजेक्शन लगेगा यानी 64,000 रुपये की ज़रूरत होगी. साथ ही पीआईसीयू का ख़र्च अलग आएगा. ये काफ़ी महंगा साबित हो सकता है.”

डॉ बेनकप्पा कहती हैं कि “पीआईसीयू के लिए आपको वेंटिलेटर इन्फ्यूजन पंप और तमाम दूसरे तरह के उपकरणों की ज़रूरत पड़ेगी जिसकी लागत 10 से 15 लाख रूपये है. अगर कोई बच्चा पीआईसीयू में है और वेंटिलेटर पर भी है तो उसके इलाज के लिए ज़रूरी मशीनों और डॉक्टरों नर्सों की व्यवस्था करने में क़रीब 25 से 30 लाख रुपये ख़र्च होंगे.”

इसके अलावा पीआईसीयू के स्टाफ़ की ट्रेनिंग भी आम आईसीयू स्टाफ़ से अलग होती है.

डॉक्टर धीरेन गुप्ता का कहना है, “बच्चों के इलाज के लिए प्रशिक्षित नर्स वयस्कों के आईसीयू में मरीज़ों की देखभाल कर सकती है, लेकिन बड़ों की देखभाल के लिए प्रशिक्षित नर्स पीआईसीयू में काम नहीं कर सकती.”

वो कहते हैं, “अब चूंकि हमारे देश में पीआईसीयू ही बहुत कम हैं, तो यहां काम करने वाले प्रशिक्षित स्टाफ़ की भी कमी है. हमें बुनियादी ढांचे पर अभी से काम करने की ज़रूरत है.”

वहीं डॉक्टर आशा बेनकप्पा का कहना है, “आठ साल से कम उम्र के बच्चे अपनी मां पर अधिक निर्भर होते हैं. इसलिए मां के रहने लिए भी कुछ जगह मुहैया कराने की आवश्यकता होगी. वहीं छह साल से कम उम्र के बच्चों को पीआईसीयू में रखा जाए तो उन्हें खिलौनों की ज़रूरत पड़ती है.”

वायरस का म्यूटेट होना- सबसे बड़ी चुनौती

डॉक्टर मानते हैं कि इन सबसे अलावा जा सबसे बड़ी चुनौती सामने आ सकती है, वो ये है कि कोरोना वायरस लगातार म्यूटेट हो रहा है.

डॉक्टर धीरेन गुप्ता कहते हैं, “हमारे पास ऐसे मामले भी आए हैं जहां पिछले साल अक्तूबर में संक्रमित हुए लोग अब फिर से संक्रमित हो गए हैं. मामले केवल वयस्कों तक ही सीमित नहीं है, बच्चों में भी ऐसा देखा जा रहा है. हम नहीं जानते कि अगले साल तक कोरोना वायरस का कोई नया म्यूटेंट होगा या नहीं.”

डॉक्टर बाला रामचंद्रन और डॉक्टर वी. रवि, एस्ट्राजेनेका या कोविशील्ड वैक्सीन के विकास में शामिल रहे वैज्ञानिक एंड्रयू पोलार्ड से सहमत हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चों में ये बीमारी कम गंभीर रूप लेती है और बच्चों के मामले में यह रोग वयस्कों की तरह घातक नहीं है.

डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उम्र कम होने के कारण बच्चों के फेफड़े वयस्कों की तरह प्रदूषित नहीं होते या फिर वो दूसरी बीमारियों के शिकार नहीं हैं. जबकि कई वयस्कों में अन्य बीमारियां हैं

पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर के इंडिया चैप्टर ने घोषणा की है कि वह नर्सों के साथ-साथ डॉक्टरों को भी कोविड पीड़ित बच्चों के लिए पीआईसीयू को संभालने के लिए ट्रेनिंग देना शुरू करेगा.

डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि वो एक महीने के बाद ये कार्यक्रम शुरू करेंगे.

अभी से हो आने वाले वक्त की तैयारी

डॉक्टर रवि कहते हैं कि “अब तक ये तस्वीर भी साफ़ नहीं है कि 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों के लिए कोरोना का टीका कब तक बनेगा और कितने बच्चों को टीका दिया जा सकेगा. अगर हम ये मानें कि कोरोना की तीसरी लहर इस साल अक्तूबर-नवंबर में आ सकती है, तो हमें फ़िलहाल ये भी नहीं पता कि अगले चार महीनों में कितने वयस्कों को टीका मिलेगा.”

“कितने लोग मास्क लगाएंगे और सुरक्षित रहने के लिए कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करेंगे. लेकिन बुनियादी ढांचे की स्थिति को देखते हुए हमें ये मानना होगा कि बचने के उपायों का पालन करना बेहतर है.”

डॉक्टर गुप्ता कहते हैं, “हमें ख़ुद को तौयार रखना होगा. हमें महामारी की दूसरी लहर से सीख लेते हुए तीसरी लहर की तैयार शुरू कर देनी चाहिए. इस बार हमें सौ नहीं बल्कि हज़ार मरीज़ों के हिसाब से तैयारी रखनी होगी. साथ ही हमें बड़े शहरों की बजाय छोड़े शहरों और कस्बों की तरफ़ अधिक ध्यान देना होगा.”

डॉक्टर रवि कहते हैं “मैं चाहता हूं कि मेरा आकलन ग़लत साबित हो जाए. लेकिन हालात बिगड़ने की सूरत में हमें तैयार रहना चाहिए.”

“हो सकता है कि संक्रमण के मामले अधिक न बढ़ें लेकिन आख़िर में हमारे पास भविष्य में बच्चों के लिए एक दुरुस्त स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था तो होगी.”

डॉक्टर मुलियल और अन्य बाल रोग विशेषज्ञ भी डॉक्टर रवि की बात से सहमति जताते हैं. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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