इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्षविरामः ग़ज़ा में जश्न, हमास ने कहा – नेतन्याहू हारे, इसराइल बोला – हम फ़ायदे में

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संघर्षविराम के बाद ग़ज़ा में फ़लस्तीनी लोग सड़कों पर जश्न मनाने उतरे

इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथी हमास के बीच संघर्षविराम हो गया है.

दोनों पक्षों ने 11 दिन की लड़ाई के बाद आपसी सहमति से ये फ़ैसला किया. इस दौरान 240 से ज़्यादा लोग मारे गए जिनमें ज़्यादातर मौतें ग़ज़ा में हुईं.

इसराइली कैबिनेट ने इससे कुछ घंटे पहले आपसी सहमति और बिना शर्त के युद्धविराम के फ़ैसले पर मुहर लगा दी.

हमास के एक अधिकारी ने भी पुष्टि की कि ये सुलह आपसी रज़ामंदी से और एक साथ हुई जोशुक्रवार तड़के स्थानीय समय के अनुसार रात दो बजे से लागू हो गया.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बाद में कहा कि इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने उनसे युद्धविराम के पालन के समय की पुष्टि कर दी थी.

उन्होंने कहा कि युद्धविराम दोनों पक्षों के बीच प्रगति का “असल अवसर” लेकर आया है.

गुरुवार को दोनों पक्षों के बीच लगातार 11 वें दिन हमले जारी रहे.

इसराइल ने उत्तरी ग़ज़ा में हमास के ठिकानों पर 100 से ज़्यादा हमले किए . हमास ने भी जवाब में इसराइल पर रॉकेट बरसाए.

हालाँकि, संघर्षविराम की घोषणा के कुछ ही मिनटों के भीतर, इसराइली सेना ने कहा कि दक्षिणी इसराइल में चेतावनी के लिए सायरन बजे. ऐसा तभी होता है जब ग़ज़ा से रॉकेट हमले होते हैं.

उधर ग़ज़ा से फ़लस्तीनी मीडिया में ख़बर है कि उनके क्षेत्र में फिर हवाई हमले हुए हैं.

ग़ज़ा में हुए हमलों में कम-से-कम 232 लोगों की मौत हुई
ग़ज़ा में लड़ाई 10 मई को शुरू हुई थी. इससे पहले इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथियों के बीच पूर्वी यरुशलम को लेकर कई हफ़्ते से तनाव था.

7 मई को अल-अक़्सा मस्जिद के पास यहूदियों और अरबों में झड़प हुई जिसे दोनों ही इसे पवित्र स्थल मानते हैं. इसके दो दिन बाद इसराइल और हमास ने एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए.

ग़ज़ा में अब तक कम-से-कम 232 लोगों की जान जा चुकी है. गज़ा पर नियंत्रण करने वाले हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार मारे गए लोगों में लगभग 100 औरतें और बच्चे हैं.

इसराइल का कहना है कि गज़ा में मारे जाने वालों में कम-से-कम 150 चरमपंथी शामिल हैं. हमास ने अपने लोगों की मौत के बारे में कोई आँकड़ा नहीं दिया है.

इसराइल पर हुए रॉकेट हमलों में 12 लोगों की जान गई
इसराइल के अनुसार उनके यहाँ 12 लोगों की मौत हुई है जिनमें दो बच्चे शामिल हैं.

इसराइली सेना का कहना है कि गज़ा से चरमपंथियों ने उनके यहाँ लगभग 4,000 रॉकेट दागे हैं.

उसने कहा कि इनमें 500 से ज़्यादा ग़ज़ा में ही गिर गए. साथ ही , इसराइल के भीतर आए रॉकेटों में से 90 फ़ीसदी रॉकेटों को उसके मिसाइल विरोधी सिस्टम आयरन डोम ने गिरा दिया.

संघर्षविराम के बारे में किसने क्या कहा?

इसराइल की राजनीतिक सुरक्षा कैबिनेट ने कहा कि उसने संघर्षविराम के “प्रस्ताव को एकमत से स्वीकार” कर लिया है.

उसने कहा, “राजनीतिक समूह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़मीनी हक़ीक़त से तय होगा कि अभियान को जारी रखना है या नहीं.”

इसराइल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ ने ट्विटर पर कहा कि ग़ज़ा अभियान से “अभूतपूर्व सैन्य लाभ” हुआ है.

हमास के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा कि इसराइर की युद्धविराम की घोषणा फ़लस्तीनी लोगों की एक “जीत” है, और इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की हार.

हमास नेता अली बराकेह ने कहा कि हमास के चरमपंथी तब तक चौकस रहेंगे जब तक कि मध्यस्थ इस संघर्षविराम के ब्यौरे को अंतिम रूप नहीं दे देते.

बाइडन ने क्या कहा?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने संघर्षविराम के बाद व्हाइट हाउस में कहा कि उन्होंने इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को फ़ोन कर उनकी सराहना की.

बाइडन ने कहा, “अमेरिका ग़ज़ा से हमास और दूसरे चरमपंथी गुटों की ओर से होनेवाले रॉकेट हमलों से रक्षा के लिए इसराइल के अधिकार का समर्थन करता है जिससे इसराइल में निर्दोष लोगों की जान गई है.”

उन्होंने कहा कि इसराइली प्रधानमंत्री ने उनके मिसाइल रोधी सिस्टम आयरन डोम की सराहना की “जिसे दोनों देशों ने मिलकर विकसित किया है और जिससे अनगिनत इसराइली नागरिकों की ज़िंदगी बची है – अरब और यहूदी दोनों”.

बाइडन ने संघर्ष में लोगों पर हुए असर का ज़िक्र करने से पहले युद्धविराम करवाने में मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी के प्रयासों की भी सराहना की.

उन्होंने कहा, “मैं उन सभी इसराली और फ़लस्तीनी परिवारों के साथ संवेदना जताता हूँ जिन्होंने अपने आत्मीय जनों को खोया है, साथ ही मैं आशा करता हूँ कि घायल हुए लोग शीघ्र स्वस्थ हों.”

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका ग़ज़ा में मानवीय मदद पहुँचाने के लिए “संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है”.

उन्होंने साथ ही जोड़ा कि ये काम “फ़लस्तीनी प्रशासन के साथ मिलकर किया जाएगा, हमास के साथ नहीं”.

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कैसे हुआ युद्धविराम

दोनों पक्षों के बीच पिछले की दिनों से लड़ाई बंद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा था.

बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से कहा कि “उन्हें अपेक्षा है कि आज ग़ज़ा में जारी लड़ाई में “ठोस कमी” आएगी जिससे युद्धविराम का रास्ता निकल सके”.

मिस्र, क़तर और संयुक्त राष्ट्र ने भी इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थता करने में अहम भूमिका निभाई.

मिस्र के सरकारी टीवी पर बताया गया कि राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी ने संघर्षविराम करवाने के लिए दो सुरक्षा प्रतनिधिमंडलों को इसराइल और फ़लस्तीनी क्षेत्रों में भेजा है.

18 मई को

कैसे भड़की हिंसा

इसराइल और हमास के बीच लड़ाई यरुशलम में पिछले लगभग एक महीने से अशांति के बाद छिड़ी.

इसकी शुरुआत पूर्वी यरुशलम के शेख़ जर्रा इलाक़े से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुईं जिन्हें यहूदी अपनी ज़मीन बताते हैं और वहाँ बसना चाहते हैं. इस वजह से वहाँ अरब आबादी वाले इलाक़ों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं.

7 मई को यरुशलम की अल-अक़्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार झड़प हुई.

अल-अक़्सा मस्जिद के पास पहले भी दोनों पक्षों के बीच झड़प होती रही है मगर 7 मई को हुई हिंसा पिछले कई सालों में सबसे गंभीर थी.

इसके बाद तनाव बढ़ता गया और 10 मई को लड़ाई छिड़ गई.

हमास ने इसराइल को यहाँ से हटने की चेतावनी देते हुए रॉकेट दागे और फिर इसराइल ने भी जवाब में हवाई हमले किए.

क्या है यरुशलम का विवाद?

1967 के मध्य पूर्व युद्ध के बाद इसराइल ने पूर्वी यरुशलम को नियंत्रण में ले लिया था और वो पूरे शहर को अपनी राजधानी मानता है.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसका समर्थन नहीं करता. फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के एक आज़ाद मुल्क़ की राजधानी के तौर पर देखते हैं.

पिछले कुछ दिनों से इलाक़े में तनाव बढ़ा है. आरोप है कि ज़मीन के इस हिस्से पर हक़ जताने वाले यहूदी फलस्तीनियों को बेदख़ल करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे लेकर विवाद है.

अक्तूबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने एक विवादित प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा था कि यरुशलम में मौजूद ऐतिहासिक अल-अक्सा मस्जिद पर यहूदियों का कोई दावा नहीं है.

यूनेस्को की कार्यकारी समिति ने यह प्रस्ताव पास किया था.

इस प्रस्ताव में कहा गया था कि अल-अक्सा मस्जिद पर मुसलमानों का अधिकार है और यहूदियों से उसका कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है.

जबकि यहूदी उसे टेंपल माउंट कहते रहे हैं और यहूदियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता रहा है. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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