प्रशांत सैनी, अंकित और निरंजन
देश कोरोना के कहर से जूझ रहा है। दिन पर दिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अस्पतालों में बेड की मारामारी है, लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही है। कोई एम्बुलेंस के लिए तड़प रहा है तो कोई प्लाज्मा के लिए इधर-उधर गुहार लगा रहा है। परिजन अपनों को बचाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। ज्यादातर लोगों को तमाम कोशिशों के बाद भी सिस्टम से निराशा हाथ लग रही है। इन सब के बीच कई ऐसे युवा हैं, जो अपने नए-नए इनोवेशन और टेक्नोलॉजी के जरिए लोगों की जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहे हैं। आज की पॉजिटिव खबर में हम ऐसे ही कुछ युवाओं की कहानी बता रहे हैं। जो कोरोना पीरियड में पूरी तत्परता से लोगों की मदद में जुटे हैं…
500 से ज्यादा लोगों को दिला चुके हैं प्लाज्मा
दिल्ली के रहने वाले प्रशांत सैनी IIM इंदौर से पासआउट हैं और एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते हैं। पिछले साल जब कोरोना आया तो उन्होंने कई लोगों को ब्लड और प्लाज्मा के लिए इधर-उधर भटकते देखा। खुद उनके दोस्त को भी प्लाज्मा के लिए काफी जूझना पड़ा। तब प्रशांत को लगा कि इस मुश्किल को कम करने के लिए कुछ करने की जरूरत हैं। इसके बाद जुलाई 2020 में उन्होंने needplasma.in नाम से एक वेबसाइट बनाई और लोगों के लिए प्लाज्मा उपलब्ध कराने का काम शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उनके तीन और साथी भी इस मुहिम से जुड़ गए। धीरे-धीरे उनका नेटवर्क बढ़ता गया। पिछले 10 महीने में 500 से ज्यादा लोगों को इनकी टीम प्लाज्मा दिला चुकी है।
इस टीम के साथ काम करने वाले गोरखपुर के अंकित गुप्ता भी IIM इंदौर से पासआउट हैं। वे कहते हैं कि अभी हमारी टीम में 25 लोग काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर वर्किंग प्रोफेशनल हैं। जबकि कई अभी पढ़ाई कर रहे हैं। सबकी उम्र 25 साल से कम ही है। इसके साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों से 600 के करीब वॉलिंटियर्स हमसे जुड़े हैं। जो सोशल मीडिया पर कैंपेनिंग से लेकर डोनर उपलब्ध कराने का काम कर रहे हैं।
वे बताते हैं कि अभी हर दिन 100 से ज्यादा लोगों की रिक्वेस्ट हमारे पास प्लाज्मा डिमांड की आ रही है। हालांकि अभी हम लोग डिमांड की तुलना में बहुत कम संख्या में ही लोगों को प्लाज्मा दिला पा रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि जैसे-जैसे लोग अवेयर होंगे, ये संख्या भी बढ़ेगी।
ऑफिस के साथ-साथ लोगों की जिंदगी बचाने का काम भी
अंकित बताते हैं कि हम लोग इस समय 17-18 घंटे से ज्यादा काम कर रहे हैं, क्योंकि देश सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। लोगों की जान बचाना जरूरी है। इसलिए हम अपनी जॉब के साथ इस काम पर भी फोकस कर रहे हैं। हम लोगों ने अपनी-अपनी शिफ्ट बांट ली है। जॉब की ड्यूटी पूरी करने के बाद जो भी वक्त हमारे पास बचता है, उसें हम इस काम के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
कैसे करते हैं काम?
अंकित कहते हैं कि हम लोग सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर लगातार कैंपेन करते रहते हैं। लोगों को प्लाज्मा डोनेट करने के लिए अवेयर करते रहते हैं। हमारी टीम लगातार प्लाज्मा डोनर से संपर्क करती रहती है और उनकी लिस्ट लोकेशन वाइज अपडेट करते रहते हैं। अगर कोई खुद से डोनर बनना चाहता है तो वह वेबसाइट पर जाकर रजिस्टर कर सकता है। साथ ही जिसे प्लाज्मा की जरूरत है वह भी वेबसाइट या फोन के जरिए अपनी रिक्वेस्ट दर्ज करा सकता है।
वे कहते हैं कि मान लीजिए अगर किसी को पटना में प्लाज्मा की जरूरत है। तो हम उसकी सारी डिटेल लेने के बाद वहां अपने टीम मेंबर या वॉलिंटियर से संपर्क करते हैं। उसके बाद उस लोकेशन पर मौजूद जो भी डोनर हमारे पास होंगे, उनसे बात करते हैं। उनकी सहमति के बाद हम उनका कॉन्टैक्ट डिटेल उससे शेयर करते हैं जिसे प्लाज्मा की जरूरत है। इसके बाद दोनों आपस में बात करके अपनी सुविधा के मुताबिक ये काम कर लेते हैं। इसके लिए हम किसी तरह की फीस नहीं लेते हैं।
पूरी सतर्कता और प्रोटोकॉल के तहत ही तैयार करते हैं डोनर
अंकित कहते हैं कि कौन से लोग प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं, इसको लेकर डॉक्टरों ने एक प्रोटोकॉल बनाया है। हम उसका पूरी तरह से पालन करते हैं। वे कहते हैं कि कोरोना को हरा चुके हर व्यक्ति का प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता। चुनिंदा लोग ही इसके लिए योग्य होते हैं। दिल के मरीज, थायराइड, इंसुलिन लेने वाले लोग प्लाज्मा नहीं दे सकते। यहां तक कि वैक्सीन के पहले डोज के 30 और दूसरे डोज के 60 दिन तक भी प्लाज्मा नहीं दिया जा सकता। डोनर तैयार करते समय हम लोग इन प्रोटोकॉल्स को फॉलो करते हैं।
क्राउड फंडिंग के जरिए लोगों को दिला रहे ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड
बिहार के आरा जिले के रहने वाले निरंजन पाठक अभी मास्टर्स कर रहे हैं। एक हफ्ते पहले ही उन्होंने कोरोना से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए पहल की है। वे आरा और उसके आसपास के इलाकों में अपने साथियों के साथ मिलकर लोगों को ऑक्सीजन का सिलेंडर दिलाने से लेकर अस्पतालों में बेड दिलाने का काम कर रहे हैं। महज 5-6 दिनों में उन्होंने 35 से 40 सिलेंडर लोगों तक पहुंचाए हैं। साथ ही एक दर्जन से ज्यादा लोगों को उन्होंने अस्पतालों में बेड दिलवाया है।
कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर लोग मदद के लिए तैयार हो गए
वे बताते हैं कि एक हफ्ते पहले मैं कानपुर से बिहार लौट रहा था। अखबारों में ऑक्सीजन और बेड के लिए मारामारी की तस्वीरें और खबरें देखी तो मुझे लगा कि किसी पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से बेहतर होगा कि इनके लिए कुछ पहल की जाए। मैंने अपने एक मित्र राहुल से बात की और बताया कि हमें इनकी मदद करनी चाहिए। राहुल भी काम करने के लिए तैयार हो गए। अब सवाल था कि फंड की व्यवस्था कहां से की जाए। तब आइडिया आया कि एक बार सोशल मीडिया पर पोस्ट करके देखा जाए। निरंजन बताते हैं कि कुछ ही घंटों में कई लोगों के मदद के लिए फोन आ गए। कई लोगों ने तो अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर कर दिए। अभी तक दो लाख रुपए के करीब पैसे क्राउड फंडिंग के जरिए हमारे पास आए हैं।
निरंजन कहते हैं कि हमने सोशल मीडिया पर अपना नंबर शेयर किया है। और लगातार इस मुहिम से जुड़ी पोस्ट भी शेयर करते रहते हैं। किसी को मदद की जरूरत होती है तो हमें कॉल करता है और हम अपनी तरफ से मदद की पूरी कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि चूंकि अभी हम लोग नए हैं और हमारे पास रिसोर्सेज की कमी है। हमारे पास 8-10 सिलेंडर ही हैं जिसे हम बार-बार रिफिल कराके लोगों को दे रहे हैं। जो लोग अस्पतालों और ऑक्सीजन सिलेंडर का खर्च चुकाने में समर्थ हैं, वे कम से कम प्राइस उस अस्पताल को पे करते हैं। जो लोग सक्षम नहीं है, उनके इलाज का खर्च हम लोग उठा रहे हैं।साभार-दैनिक भास्कर
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