बात बराबरी की:परदों ने औरत के वजूद को इस तरह जकड़ा है कि वे चाहे जितनी पढ़ी-लिखी हों, उन्हें पुरुष वही भाता है जो तर्क के मामले में उन्हें हरा सके

पढ़िए दैनिक भास्कर की ये खबर…

बीते दिनों अपने बेहद रौब-रुतबेदार, लेकिन घोर रिवायत-पसंद ममेरे भाई के लिए लड़की खोजने का जिम्मा मुझे मिला। सबको यकीन था कि मैं उसकी पसंद समझती हूं। पहले तो मैंने एक अदद प्रेम न कर पाने पर भाई को लताड़ा, फिर काम पर लग गई। शादी-ब्याह की तमाम साइट्स पर अकाउंट बना। खोज-ढूंढ शुरू करते ही एक खास ट्रेंड मुझे दिखा। लड़की का कद 5’3″ है तो लड़का उससे ज्यादा हो। लड़की कमाऊ है तो लड़के की तनख्वाह उससे ज्यादा हो।

लड़की मंझोले शहर की हो तो लड़का महानगर का हो। खुद की भाषा चाहे कुपोषण की शिकार हो, लेकिन लड़के की जबान खालिस कॉन्वेंटी ही चाहिए। लब्बोलुआब ये कि हर लड़की को खुद से इक्कीस पुरुष साथी ही चाहिए था। किसी ने भी अपने बराबर या कमतर लड़के के बारे में नहीं लिखा। तो क्या लड़कियां साथी नहीं, बल्कि अभिभावक चाहती हैं जो अपने मजबूत बाजुओं और तगड़े बैंक बैलेंस से उन्हें संभाले रखे!

शायद हां, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। जब साथी की बजाय अभिभावक चुना तो जाहिर है कि हमारे हिस्से के सारे फैसले भी वही लेगा। तो यही हो रहा है। देश में खूब लोकप्रिय डेटिंग एप ओकेक्यूपिड (OkCupid) का सर्वे बताता है कि शादी या प्रेम में जाने के बाद 79% औरतें अपने फैसलों के लिए पुरुषों का मुंह जोहती हैं। इन औरतों को नौकरी करने या घूमने जाने के लिए पार्टनर से इजाजत लेनी होती है। दूसरी ओर लगभग इतने ही प्रतिशत पुरुषों ने दिल बड़ा करते हुए माना कि उन्हें अपनी साथिन को ऐसी छोटी-मोटी बातों के लिए ‘अलाऊ’ कर देना चाहिए। यानी औरतें इजाजत मांगती हैं और मर्द मंजूरी देते हैं, वो भी तब, जब वे औरत-मर्द को बराबर सोचते हों। सर्वे में तकरीबन 20% औरतों ने माना कि उन्हें किसी काम के लिए अपने पार्टनर से परमिशन मांगने की जरूरत नहीं।

ये तो हुआ एक डेटिंग एप का सर्वे, जहां पढ़ी-लिखी, नौजवान और तथाकथित आधुनिक सोच वाली पीढ़ी बसती है। असल में हाल इससे कहीं ज्यादा खराब है। इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे (IHDS) की स्टडी आंखों पर गर्म पानी के छींटे मार नींद तोड़ देती है। इसके मुताबिक हमारे यहां की 79.8% शादीशुदा औरतों को अस्पताल जाने के लिए अपने पति से पूछना होता है। खासकर तब उन्हें अपने पति से लंबी मनुहार करनी होती है, जब बात उनके यौन स्वास्थ्य से जुड़ी हो। IHDS ने इस पर लंबी पड़ताल की। सारे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 15 से 81 साल की 34,000 महिलाएं इस सर्वे का हिस्सा बनीं। इसी दौरान ये बात निकलकर आई कि चाहे अस्पताल जाना हो या फिर अपनी मर्जी से नौकरी करना, औरतों को अपने पति या फिर पिता की मंजूरी लेनी होती है।

बात यहीं तक रुकती तो भी हम थोड़ा कम शर्मिंदा हो पाते। लगभग 58% औरतों ने रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि उन्हें परचून दुकान जाने के लिए भी घर के पुरुष सदस्य की हामी या साथ चाहिए होता है। इसकी वजह होते हैं वे लड़के, जो राशन के बगल की पान दुकान पर मजमा लगाए खड़े रहते हैं। घर के पुरुष सदस्यों को डर होता है कि उनकी कच्ची समझ वाली लड़की को कोई भी लड़का बरगला देगा। लिहाजा उसे घर पर बैठकर इतनाभर करना होता है कि राशन की लिस्ट बना दे। बाकी काम भाई, पिता या पति संभाल लेंगे।

अरब और अफ्रीकी मुल्कों के हालात हमसे भी खराब हैं। वर्ल्ड बैंक के प्रोजेक्ट- वीमन, बिजनेस एंड द लॉ (WBL) के अनुसार दुनिया के 18 देश ऐसे हैं, जहां औरत अगर नौकरी करना चाहे तो उसे पुरुष अभिभावक की लिखित मंजूरी चाहिए होती है। यानी केवल पढ़ाई-लिखाई के सर्टिफिकेट उसकी काबिलियत नहीं बताते, बल्कि उनके ऊपर एक और कागज होता है, जिस पर पति, पिता या भाई की मंजूरी होती है। नौकरी के लिए इंटरव्यू कॉल आने पर महिला को साबित करना होता है कि उसके साथी पुरुष को उसकी नौकरी पर एतराज नहीं।

ये ठीक वैसा ही है, जैसे बचपन में स्कूल के रिपोर्ट कार्ड पर अभिभावक के दस्तखत होना, ताकि पता चल सके कि बच्चे की हालत/इच्छा पर पैरेंट्स की कड़ी नजर है। ईरान में सिविल कोड की धारा 1105 के मुताबिक चूंकि पुरुष ही परिवार का मुखिया होता है, लिहाजा घर की औरतें उसकी इजाजत के बगैर पांव भी बाहर नहीं धर सकती हैं। वहीं धारा 1117 पति को इस बात की कानूनी इजाजत देती है कि वो अपनी बीवी को किसी काम/नौकरी से रोक सके, जिसके बारे में उसे डर है कि इससे उसकी प्रतिष्ठा पर दाग लग सकता है।

173 देशों में हुए इस सर्वे में नौकरी के अलावा बिजनेस को भी देखा गया। इस दौरान पता चला कि कई देशों में कई खास काम केवल पुरुषों के लिए आरक्षित हैं। जैसे अर्जेंटीना में शराब पीने की संस्कृति तो आम है, लेकिन औरतें शराब का बिजनेस नहीं कर सकतीं। इसी तरह रूस में औरतें बढ़ईगिरी नहीं कर सकतीं क्योंकि इसमें ताकत और दिमाग दोनों ज्यादा लगता है। चलिए, पति मंजूरी न दे तो औरत नौकरी नहीं करेगी। घर बैठ जाएगी, लेकिन अगर कभी दीवारें देखते या खाना पकाते हुए मन ऊब जाए और वो अपनी साथिनों के साथ घूमने जाना चाहे तो वो भी मुमकिन नहीं।

ईरान की सरकारी न्यूज एजेंसी इस्लामिक रिपब्लिक न्यूज एजेंसी (IRNA) ने साल 2018 के अंत में इसी हवाले की खबर छापकर सनसनी फैला दी थी। वहां के हाइकिंग बोर्ड ने फैसला किया कि महिलाएं जंगल घूमने, तैराकी या पहाड़ चढ़ने जैसी स्पोर्ट गतिविधि नहीं कर सकतीं। बोर्ड की दलील थी कि ये सारी एक्टिविटीज उनके चेहरे से परदा हटा देंगी, जो कि गैर-मजहबी है। लेकिन, असल डर ये रहा होगा कि पहाड़ चढ़ते या सनसनाती नदी को दोनों बांहों से चीरते हुए औरत के दिल-दिमाग का परदा हट जाएगा, जो चेहरे के बेपर्दा होने से कहीं ज्यादा खतरनाक है। दिमागी तौर पर बेपर्दा औरत मंजूरी के लिए मुंह नहीं ताकेगी, बल्कि निकल पड़ेगी, जहां ख्वाहिशें पुकारें।

खैर! फिलहाल तो पुरुष निश्चिंत सो सकते हैं। परदों ने औरत के वजूद को बुरी तरह जकड़ा हुआ है। वे चाहे जितनी पढ़ी-लिखी हों, उन्हें पुरुष वही भाता है जो तर्कशास्त्र में उनसे हथियार डलवा सके। उसी मर्द को साथी चुनती हैं, जो सड़क पर रूमानी वॉक करते हुए उन्हें बाईं ओर रखे। या फिर कार का दरवाजा खोलकर इंतजार करता दिखे। नाजुक और कीमती कहलाने का ये अहसास इतना बड़ा है कि मजबूत से मजबूत औरत बाखुशी अपनी आजादी खो देती है और फिर सारी उम्र ‘इजाजत और नामंजूरी’ के बीच बिताती है। साभार-दैनिक भास्कर

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