डॉ. स्वाति मोहन: नासा के मंगल मिशन को कामयाब बनाने में इस भारतीय मूल की महिला की अहम भूमिका

नासा का अब तक का सबसे महत्वकांशी मार्स मिशन, मंगल ग्रह पर उतर चुका है. नासा के इस अभियान में डॉ. स्वाति मोहन नाम की एक भारतीय मूल की वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

नासा के पर्सिवियरेंस प्रोजेक्ट की मार्स 2020 गाइडेंस, नैविगेशन ऐंड कंट्रोल ऑपरेशंस की लीड डॉ. स्वाति मोहन ने वॉशिंगटन में मौजूद बीबीसी संवाददाता विनीत खरे से बातचीत की.

डॉ स्वाति इस वक़्त लॉस एंजेलिस में हैं. पढ़िए उनसे बातचीत के अंश.

सालों के काम के बाद मिली सफलता के बाद पिछले कुछ घंटे कैसे बीते?

ये सब कुछ थोड़ा सपने जैसा है. गुरुवार को जो कुछ हुआ वो सफलता का प्रदर्शन था. गुरुवार को सब कुछ ठीक ही होना था.

जिन हज़ारों लोगों ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया, उन्होंने अपना दिल, अपनी आत्मा इस प्रोजेक्ट को दी. और सभी को अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करना था.

क्या आपको याद है कि उन आख़िरी मिनटों में आपके दिमाग़ में क्या चल रहा था?

मिशन कमेंटेटर के तौर पर मैं बहुत ज़्यादा फोकस थी कि क्या कुछ हो रहा है और उसके आधार पर मुझे क्या कहना है. उन क्षणों में सब कुछ परफेक्ट होना था.

जैसे ही एक चीज़ होती थी, मैं देखती थी कि अगली चीज़ क्या होनी है. फिर अगला. यही चलता रहा. जो कुछ हो रहा था, उसे समझने के लिए न मेरे पास बहुत उर्जा थी और न ही उस समय वक्त था.

जब मैंने टचडाउन की घोषणा की और लोग खुशियां मनाने लगे और तभी एहसास हुआ कि हमने ये कर दिखाया. हम मंगल की सतह पर पहुंच गए थे और सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा हमने सोचा था.

आप आठ साल तक इस प्रोजेक्ट से जुड़ी रहीं. ये काफ़ी लंबा वक्त रहा. इस दौरान कितर के अनुभव हुए?

मुझे बहुत फ़ख़्र है और मेरे लिए ये कुछ खट्टे-मीठे जैसा एहसास रहा है. हम एक टीम में आठ साल तक एक साथ काम कर रहे थे और एक परिवार की तरह बन गए थे. मुझे थोड़ा दुख है कि अगले हफ़्ते से शायद हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे, लेकिन मेरे लिए इसका हिस्सा होना सौभाग्य की बात है.

इस काम के लिए जो पहली वो चीज़ जो मैंने कुर्बान की, वो थी मेरी नींद. जिस पल से हार्डवेयर को जोड़ने का काम शुरू हुआ, मैं फ़ोन पर रही क्योंकि हम लगातार टेस्ट कर रहे थे. कभी फ़्लाइट हार्डवेयर जोड़ने का, फिर उसकी टेस्टिंग का काम, तो कभी और कुछ. मेरा फ़ोन हमेशा मेरे साथ रहता था.

मेरे फ़ोन की बैटरी हमेशा चार्ज रहती थी ताकि ज़रूरत पड़े तो मैं हर बात का जवाब दे सकूं. लगातार उस स्तर की ऊर्जा को बरकरार रखना थोड़ा डराने वाला रहा. मेरे परिवार को भी बहुत कुर्बानियां देनी पड़ीं. मुझे कभी भी दफ़्तर जाना पड़ जाता था, कभी कुछ मसला खड़ा हो गया तो मुझे जल्दी लैब जाना पड़ता था. इस काम में मेरे परिवार ने मेरा भरपूर साथ दिया.

नासा में आपकी यात्रा कैसी रही और इस सफर के आपके सबसे बेहतरीन दिन कैसे थे?

कि जब मैं हाईस्कूल में थी तब मैंने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना करियर बनाने का फ़ैसला किया. और अमेरिका में अंतरिक्ष का मतलब है नासा. इसलिए मैंने नासा के बारे में सब कुछ रिसर्च किया.

जब मैं हाईस्कूल में थी, मेरी पहली इंटर्नशिप नासा गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर में थी. इसके बाद मैं पढ़ाई करने कॉर्नेल गई और उस साल गर्मियों के दौरान मैंने जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री में काम सीखा. फिर मैंने केनेडी स्पेस सेंटर में इंटर्नशिप की. ग्रैजुएट स्कूल में मुझे नासा जॉनसन स्पेस सेंटर, नासा मार्शल सेंटर से जुड़ने का मौका मिला.

इस तरह मुझे स्पेस इंडस्ट्री को अलग-अलग नज़रिए से देखने का मौक़ा मिला, चाहे वो अलग-अलग नासा सेंटर से हो या फिर कॉर्नल और एमआईटी में किए जा रहे रिसर्च की मदद से हो. इससे मुझे अपनी जगह बनाने में मदद मिली.

आपको बहुत कम उम्र में स्टार ट्रेक से कैसे प्रेरणा मिली?

हां. जब मैं नौ या दस साल की थी, मैंने जानेमाने टेलीविज़न धारावाहिक स्टार ट्रेक का एक एपिसोड देखा. इस एपिसोड में एंटरप्राइस को आकाशंगगा के एक कोने में फेंक दिया जाता है और फिर अंतरिक्ष की खूबसूरत तस्वीरें दिखती हैं.

मुझे याद है कि मैंने सोचा कि अगर मैं एंटरप्राइज़ पर होती तो कितना अच्छा होता ताकि मैं अंतरिक्ष में नई-नई बातों के बारे में जान सकूं, उनकी खोज कर सकूं. फिर मैं तस्वीरों के सहारे हबल स्पेस टेलिस्कोप तक पहुंची, और ये सिलसिला चलता रहा.

आप जब अमरीका आईं तो आपसिर्फ़ एक साल की थीं. क्या भारत से आप संबंध बरक़रार रख पाईं हैं?

मेरे बहुत से दूर के रिश्तेदार अभी भी भारत में हैं, ख़ासकर बेंगलुरु में. मेरे दादा-दादी लंबे समय तक वहीं रहे हैं.

जब मैं बड़ी हो रही थी तो गर्मी की छुट्टियों के दौरान परिवार से मिलने के लिए और घूमने के लिए मैं भारत जाती थी.

तो वहां किसी से आपकी बात हो पाई?

हर जगह से लोगों ने इतना प्यार और इतनी बधाइयां दी हैं कि मैं अभिभूत हो गई हैं. लोगों ने इतना सम्मान दिया है कि मुझे अभी भी आचय होता है.

मिशन के दौरान क्या-क्या ऐसी तकनीकी चुनौतियां थीं जिन्होंने परेशान किया, और आप उन चुनौतियों से कैसे निपटीं?

जब हम पैराशूट बना रहे थे तब हमें एहसास हुआ कि ऐसी भी चीजें थीं जो हमें समझ नहीं आ रही थीं. हमें उन्हें समझने के लिए टेस्ट कैंपेन की शुरुआत करनी पड़ी ताकि बदलाव किए जा सकें.

सैंपल कैशिंग सिस्टम बिल्कुल नया है (मंगल की सतह से धूल और कंकड़ ट्यूब में भरकर धरती पर वापस भेजने के लिए बना सिस्टम), जिसे शुरुआत से डिज़ाइन करके बनाया गया है कि कैसे सफ़ाई का ध्यान रखा जाए. न सिर्फ़ सैंपल की सफ़ाई का जब उसे ट्यूब में डाला जाए बल्कि उसे कैसे सील रखना है और फिर कैसे उस ट्यूब को मंगल ग्रह से धरती पर वापस लाना है. साथ ही इसका भी ध्यान रखना था कि रोवर के साथ कोई कीटाणु मंगल ग्रह न जाए जिसका बाद में पता चले.

भारत जैसे देश भी मंगल ग्रह पर रोवर भेजना चाहते हैं. अब आप इस काम को सफलता से करने वाली टीम का हिस्सा हैं, आपकी क्या सलाह होगी?

किसी भी ग्रह पर जाना बेहद मुश्किल है. ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिनपर ठीक से काम करना होता है. साथ ही ग्रह का हर हिस्सा, हर दिन वहां जाने को लेकर अलग-अलग चुनौतियां होती हैं. और ये बातें बदलती रहती हैं.

मेरी सलाह होगी कि आप लगातार कोशिश करते हैं और दूसरों के अनुभवों से सीखें. कभी-कभी आप सफलताओं से ज़्यादा अपनी नाकामयाबियों से सीखते हैं.साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad

Exit mobile version