देश की पहली महिला, जिसे फांसी होनी है:शबनम के गांव के ज्यादातर बच्चे 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं, सरकारी नौकरी में सिर्फ एक आदमी

राजधानी दिल्ली से करीब 120 किलोमीटर दूर बसा बावनखेड़ी एक सुस्त सा गांव है। आम के बागों से घिरे इस गांव में ज्यादातर लोग लकड़ी का कारोबार करते हैं। यहीं एक बगीचे के पास पीले रंग में पुता एक दुमंजिला घर है, जिसका रंग अब फीका पड़ रहा है। बावनखेड़ी के पास ही एक दूसरे गांव के रहने वाले आसिम कहते हैं, ‘जब भी अमरोहा-हसनपुर रोड पर इस गांव से गुजरता हूं तो इस घर को देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जैसे किसी डरावनी फिल्म का भुतहा बंगला हो।’

आसिम बताते हैं कि बावनखेड़ी एक पिछड़ा गांव हैं। आसपास के गांव के लोगों को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कहीं किसी ने इसका नाम सुना हो। इसी गांव की शबनम अब आजाद भारत में फांसी के फंदे पर चढ़ने वाली पहली महिला हो सकती है। इसी वजह से बावनखेड़ी अचानक लाइमलाइट में आ गया है।

बावनखेड़ी गांव पिछड़ा हुआ है। यहां करीब साढ़े तीन हजार लोग रहते हैं। अधिकतर पठान हैं, बाकी अन्य जातियों के लिए लोग हैं।

14-15 अप्रैल 2008 की दरमियानी रात शबनम ने अपने आशिक सलीम के साथ मिलकर अपने घर में ही पूरे परिवार का कत्ल कर दिया था। उसने हर रिश्ते का कत्ल किया था। अपने पिता, मां, भाई, भाभी, भतीजे और रिश्ते की बहन, सभी को पहले नशा दिया और फिर धारदार हथियार से गला रेत दिया। शबनम के चाचा का परिवार अब इस घर में रहता है। क्या उन्हें डर लगता है? चाची फातिमा कहती हैं, ‘मुझे डर नहीं लगता, मैं तो ऊपर उन कमरों में सोती भी हूं।’

यहां पहुंचकर एक अजीब सा अहसास होता है। एक छत पर खड़े होकर सामने बाग की तरफ देखने पर खूबसूरत नजारा दिखता है। लहलहाती फसलें, झुके हुए आम के पेड़, हरी-हरी घास। दिमाग में सवाल कौंधता है कि क्या कोई इतने शांत माहौल में ऐसी हरकत कर सकता है? लेकिन पीछे मुड़ते ही दीवार पर जमे खून के धब्बे इसका जवाब दे देते हैं। कत्ल किए गए सातों लोग इसी की चारदीवारी में दफन हैं।

शबनम ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के सभी सात लोगों की हत्या कर दी थी। घर से लगे बाग में उन सातों की कब्रें हैं।

बावनखेड़ी में रहने वाले इस्लाम खान बताते हैं, ‘यहां करीब साढ़े तीन हजार लोग रहते हैं। अधिकतर पठान हैं, बाकी अन्य जातियों के लिए लोग हैं।’ इस्लाम के मुताबिक बावनखेड़ी के आसपास 52 गांव चौहानों के हैं जिनके बीच में ये इकलौता मुस्लिम बहुल गांव हैं। वो कहते हैं, ‘शायद यही वजह हो कि गांव का नाम बावनखेड़ी पड़ा हो।’ वे कहते हैं, ‘पहले यहां अधिकतर लोग मजदूरी या छोटे-मोटे काम करके रोजी-रोटी कमाते थे। अब ज्यादातर लोग लकड़ी के कारोबार से जुड़े हैं। जैसे-तैसे लोगों की जिंदगी चल रही है।’

पूरे गांव में सिर्फ एक सरकारी कर्मचारी

बावनखेड़ी गांव में अधिकतर बच्चे दसवीं तक आते-आते पढ़ाई छोड़ देते हैं। इक्का-दुक्का लोग ही यहां ग्रेजुएट हैं। पूरे गांव में एक सरकारी कर्मचारी है जो पुलिस विभाग में कार्यरत है। लड़कियों के लिए हालात और भी बुरे हैं। यहां अभी तक कोई भी लड़की नौकरी करने या उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए गांव से बाहर नहीं गई है। इस्लाम के मुताबिक, ‘इस लिहाज से देखा जाए तो बावनखेड़ी बहुत पिछड़ा हुआ गांव हैं। अभी यहां के लोग अपनी लड़कियों की शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं।’

गांव में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है। कोई लड़की नौकरी के लिए घर से बाहर नहीं निकलती। महिलाएं कैमरा देखकर मुंह फेर लेती हैं।

बावनखेड़ी गांव के बच्चे और युवा कुछ पूछने पर झेंपते हुए पीछे हट जाते हैं। यहां की औरतें घरों में ही कैद रहती हैं। जो कुछ बच्चियां बाहर दिखीं भी उन्होंने भी अपने चेहरे नकाब से ढंके हुए थे। घर और बाहर दोनों जगह पर्दे का ख्याल था। बात करने की कोशिश पर लड़कियां घरों में चली जाती हैं। शबनम ने डबल MA किया था। गांव के कई लोग हंसते हुए कहते हैं, ‘ज्यादा पढ़-लिख गई थी, तब ही तो ये कांड कर दिया।’

शबनम और सलीम के रिश्ते

शबनम और सलीम के प्रेम-प्रसंग के बारे में पूछने पर बहुत कम लोग बोलते हैं। गांव वालों से अलग-अलग बात करने पर कुल मिलाकर यह समझ में आता है कि शबनम, सलीम से प्यार करती थी और किसी भी कीमत पर सलीम से शादी करना चाहती थी, लेकिन उसके परिवारवालों को यह रिश्ता पसंद नहीं था। दोनों की जाति भी अलग थी और आर्थिक स्थिति भी। शबनम सैफी बिरादरी की थी और सलीम पठान। शबनम शिक्षामित्र थी और जल्द स्थायी शिक्षिका बन जाती, जबकि सलीम एक आरा मशीन पर काम करता था।साभार-दैनिक भास्कर

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