आप अगर कहीं नौकरी करते हैं तो दो शब्दों से आप वाक़िफ़ होंगे.
एक है ‘कॉस्ट टू कंपनी’ यानी कर्मचारी के तौर पर आपकी कंपनी आप पर कितना ख़र्च करती है.
दूसरा शब्द है, ‘टेक होम सैलरी’ जो ‘कॉस्ट टू कंपनी’ से अमूमन थोड़ा कम होती है, क्योंकि अक्सर सैलरी अलग-अलग हिस्सों में कट कर ही आती है.
देश में अब तक 29 श्रम क़ानून होते थे, लेकिन अब सरकार केवल 4 क़ानून में ही इन्हें समेटने की तैयारी में है.
इनमें से एक ‘वेज’ यानी वेतन से संबंधित भी है. ये क़ानून संसद से पास हो गए हैं. लेकिन अभी इसके नियम ड्राफ्ट के तौर पर तैयार हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि अगले वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल से पहले पहले इसके नियम नोटिफाई हो जाएँगे.
उन नियमों के आने के बाद चर्चा ये है कि कर्मचारियों की ‘टेक होम सैलरी’ पर असर पड़ेगा और ‘कॉस्ट टू कंपनी’ भी बढ़ जाएगी.
इसलिए हर तरफ़ इन नियमों की चर्चा हो रही है.
चूँकि ये मामला आपकी जेब पर सीधे असर करता है, इसलिए ज़रूरत है इन्हें आसान शब्दों में समझने की.
कर्मचारियों और कंपनियों पर कैसे फ़र्क पड़ेगा?
कर्मचारियों के लिए समझने वाली बात ये है कि अब तक अगर आपकी सैलरी का 50 फ़ीसदी हिस्सा बेसिक सैलरी और 50 फ़ीसदी हिस्सा अलाउएंस यानी भत्ते के तौर पर मिलता है, तो आपको नए नियमों से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा.
लेकिन अगर आपकी सैलरी का बेसिक 50 फ़ीसदी से कम है तो आपकी टेक होम सैलरी पर असर पड़ेगा.
ये कैसे होगा? ये समझाया टैक्स एक्सपर्ट गौरी चड्ढा ने.
वो बताती हैं, “मान लीजिए आपकी सैलरी 100 रुपए है और 40 फ़ीसदी यानी 40 रुपए अब तक बेसिक सैलरी के तौर पर में मिलते हैं और 60 फ़ीसदी यानी 60 रुपए अलाउएंस के तौर पर मिलते हैं, तो सरकार के नए ड्राफ़्ट के मुताबिक़ आपकी कंपनी को सैलरी का ये स्ट्रक्चर बदलना पड़ेगा. नए प्रस्ताव के मुताबिक़ कंपनियाँ अब सैलरी का 50 फ़ीसदी से ज़्यादा अलाउएंस के तौर पर नहीं दे सकती. इसका मतलब ये कि बेसिक सैलरी फिर बढ़ जाएगी.”
ये होगा पहला बदलाव.
दूसरा बदलाव होगा, सैलरी के उन कॉम्पोनेंट पर, जो बेसिक सैलरी के साथ जुड़े होते हैं.
उनमें से एक है प्रोविडेंट फंड (पीएफ़) और दूसरा है ग्रैच्युइटी. इसके अलावा भी कुछ और चीज़ें हैं, जो बदल सकती है.
सबसे पहले बात पीएफ़ की.
भारत में अब तक ज्यादातर कंपनियाँ प्रोविडेंट फंड (पीएफ़) बेसिक सैलरी का 12 फ़ीसदी देती हैं. नए प्रावधान के मुताबिक़ बेसिक बढ़ेगा, तो ज़ाहिर सी बात है कि आपके पीएफ़ के खाते में ज़्यादा पैसा जमा होगा.
पुराने प्रावधान के हिसाब से अगर आपको 40 रुपए बेसिक सैलरी मिलती थी, तो उसका 12 फ़ीसदी यानी 4.8 रुपए ही आपका पीएफ़ कटता. लेकिन नए प्रावधान के बाद 50 फीसदी बेसिक हुआ, तो आपका पीएफ़ अब 6 रुपए बनेगा.
पीएफ के दो हिस्से होते हैं- जिसमें से एक हिस्सा कंपनी देती है और दूसरा हिस्सा कर्मचारी देते हैं. यानी आपकी सैलरी से अब पीएफ ज़्यादा करेगा, तो टेक होम सैलरी कम हो जाएगी.”
उसी तरह से कंपनी को भी पीएफ़ बढ़ने पर अपना हिस्सा बढ़ा कर देना होगा. तो कॉस्ट टू कंपनी बढ़ जाएगी. लेकिन ये कंपनी पर है कि कंपनी ये बोझ आप पर डालती है या कंपनी ख़ुद के खाते से देती है.
“उसी तरह से कर्मचारियों की ग्रैच्युइटी भी अब बढ़ी हुई मिलेगी.
चूँकि ग्रैच्युइटी भी आपकी बेसिक सैलरी पर ही तय किया जाता है, इसलिए अगर आपकी बेसिक सैलरी बढ़ेगी, तो ग्रैच्युटी भी बढ़ेगी. लेकिन ज़्यादातर कंपनी इस रकम को भी आपकी सैलरी से ही काटती हैं, तो आपकी टेक होम सैलरी इस वजह से भी कम हो जाएगी.
पीएफ़ और ग्रैच्युइटी के अलावा अगर आपकी कंपनी में हाउस रेंट अलाउएंस और लीव एनकैशमेंट भी बेसिक सैलरी पर तय होते हैं, तो उन पर भी इस नए नियम का असर पड़ेगा.”
लेकिन इस पूरे बदलाव का एक दूसरा पहलू भी है.
कर्मचारियों को मिलने वाली सहूलियतों पर काम करने वाली संस्था टीमलीज़ की को-फाउंडर ऋतुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, “इन नए नियमों के आने से कर्मचारियों में समाजिक सुरक्षा का भावना बढ़ेगी.
पीएफ़ और ग्रैच्युइटी में पैसे ज़्यादा कटेंगे, तो ज़ाहिर है कि आपकी टेक होम सैलरी कम होगी. लेकिन इनको रिटायरमेंट बेनिफ़िट के तौर पर देखा जाता है. अब उन खातों में पैसे ज़्यादा जमा होंगे. टेक होम सैलरी भले ही कम हो रही हो, लेकिन जमा वो आपके खाते में ही हो रही होगी. आपकी रिटायरमेंट बेनिफ़िट पर इसका अच्छा असर पड़ेगा. कर्मचारी के कॉस्ट टू कंपनी में कंपनी का शेयर भी बढ़ जाएगा.”
कंपनियों पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ पर वो कहती हैं कि कंपनियों को 29 क़ानूनों से छुटकारा दिला कर केंद्र सरकार ने काफ़ी सहूलियतें दी है. उसके एवज में ये बोझ ज़्यादा नहीं है. कंपनियों को नए क़ानून से काफ़ी पैसा बचेगा.
यहाँ एक बात और ग़ौर करने वाली है.
ऋतुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, “सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के एक फैसले के मुताबिक़ पीएफ़ बेसिक सैलरी पर नहीं, बल्कि कई और चीज़ों को जोड़ कर कैलकुलेट करना होगा. मार्च 2020 के फ़ैसले के मुताबिक़ पीएफ़, बेसिक सैलरी, मंहगाई भत्ता यानी डीए और उन भत्तों को जोड़ कर तय किया जाना चाहिए, जो किसी कंपनी में सभी कर्मचारियों को समान रूप से मिलता है, जैसे मेडिकल अलाउएंस, टैवल अलाउएंस आदि. कोर्ट के इस फ़ैसले के मुताबिक़ पीएफ़ तय करते समय बोनस, हाउस रेंट, ओवर टाइम को नहीं जोड़ा जा जाता है.”
कई कंपनियों ने सरकार के इस फ़ैसले को लागू कर लिया है. उन कंपनियों को इन नए प्रावधानों के बाद कोई बदलाव नहीं करने होंगें. लेकिन जिन कंपनियों ने इसे लागू नहीं किया है, उन्हें नए नियमों के नोटिफ़िकेशन के बाद लागू करना होगा.
अलाउएंस कम होने से क्या होगा?
कई कंपनियों में ये भी देखा गया है कि आपकी सैलरी का बड़ा हिस्सा अलाउएंस के तौर पर हर महीने बिल जमा करने पर पूरा मिल जाता था. अक्सर टैक्स बचाने के लिए ये उपाय किए जाते थे.
इस प्रावधान पर गौरी कहती है, “नए नियमों के आने के बाद आपके आलउएंस पर असर पड़ेगा. आपकी सैलरी का 50 फ़ीसदी से ज़्यादा कंपनी अलाउएंस के तौर पर अब नहीं दे सकेंगी.”
सरकार इससे क्या हासिल करना चाहती है?
ऋतुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं कि कंपनियों को भले ही एक तरफ़ थोड़ा नुक़सान होता दिख रहा है, लेकिन दूसरी तरफ़ 29 क़ानूनों से छुटकारा दिला कर केवल 4 क़ानून में उन्हें समेटने से कंपनियों को बहुत सहूलियतें होंगी. उनके काग़ज़ी काम बहुत कम हो जाएँगे, इन कामों को पूरा करने के लिए जो स्टाफ़ रखना पड़ता था, वो कम हो जाएगा. उस पैसे का इस्तेमाल कंपनियाँ दूसरे तरफ़ कर पाएँगी. सामाजिक सुरक्षा की भावना भी कर्मचारियों में बढ़ेगी.
दूसरी तरफ़ एक फ़ायदा गौरी भी गिनाती हैं. उनके मुताबिक़ पीएफ़ में ज़्यादा पैसा जमा होगा, तो सरकार के पास ज़्यादा पैसा जमा होगा. कुछ समय के लिए सरकार इस पैसे का ज़्यादा बेहतर इस्तेमाल कर पाएगी.साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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