क्या किसान आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ना पाकिस्तान की सोची-समझी साजिश थी?

कृषि कानूनों के विरोध में पिछले दो महीने से दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन कर रहे हैं।

किसान आंदोलन से जुड़े कई लोगों को हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA ने नोटिस जारी किया। यह नोटिस बीते साल 15 दिसंबर को दर्ज हुई एक FIR पर कार्रवाई करते हुए भेजा गया। इस FIR में आरोप हैं कि सिख फॉर जस्टिस, बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान टाइगर फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठन लोगों में भय का माहौल बनाकर सरकार के खिलाफ विद्रोह की साजिश कर रहे हैं।

FIR में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि ये तमाम संगठन प्रदर्शनकारियों को विदेशों से पैसा भेज रहे हैं ताकि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार किया जाए और प्रदर्शन तेज होते रहें। इन्हीं आरोपों की जांच के लिए NIA ने किसान आंदोलन से जुड़े रहे दर्जनों लोगों को बतौर गवाह पेश होने के लिए नोटिस जारी किए हैं। ये पहला मौका नहीं है, जब दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन से जुड़े लोगों पर इस तरह के आरोप लगे हैं।

कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने यह कहा था, ‘हमें इंटेलिजेन्स की रिपोर्ट मिली है। जो बता रही है कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी घुस आए हैं।’ किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों के शामिल होने के ऐसे ही आरोप भाजपा के कई नेता भी लगा चुके हैं और टीवी चैनल भी बीते महीनों में इस तरह की बात कई बार दोहराते रहे हैं। लेकिन अब ‘द डिसइंफोलैब’ नाम की एक फैक्ट-चेक वेबसाइट ने अपनी पड़ताल के आधार पर दावा किया है कि इन तमाम आरोपों के पीछे असल में पाकिस्तान की सोची-समझी साजिश रही है।

पाकिस्तान की मीडिया विंग की साजिश
‘द डिसइंफोलैब’ के मुताबिक किसान आंदोलन में खालिस्तानी ताकतों का हाथ होने की बात सबसे पहले पाकिस्तान की ‘इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशन्स’ यानी ISPR के इशारे पर फैलाई गई। ISPR पाकिस्तानी सेना का मीडिया विंग है। भारत के खिलाफ दुष्प्रचार के कई तरीके ISPR अपनाता है और हर उस संगठन को मजबूती देने का भी काम करता है जो भारत के खिलाफ हों।

सिख फॉर जस्टिस, बब्बर खालसा और खालिस्तान टाइगर फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठनों को भी ISPR समर्थन देता रहा है। ये सभी संगठन खालिस्तान की मांग को लेकर देश में जन समर्थन जुटाने के मौकों की तलाश में रहते हैं। हालांकि भारत में इन संगठनों का कोई जनाधार नहीं है लिहाजा इनकी घोषणाओं और अपीलों पर कोई कान भी नहीं धरता।

बीते साल जब पंजाब में किसान आंदोलन की शुरुआत हुई तो ‘सिख फ़ॉर जस्टिस’ नाम के संगठन ने इसे अपना एजेंडा चलाने के मौके की तरह देखा। संगठन ने घोषणा की इस आंदोलन में शामिल होने वालों को वह पैसा देगा। संगठन ने यह भी घोषणा की कि 15 अगस्त के दिन खालिस्तानी झंडा फहराने वालों को भी उनकी तरफ से लाखों रुपए का इनाम दिया जाएगा। भारत में तो ‘सिख फॉर जस्टिस’ की ऐसी अपीलों का कोई असर नहीं हुआ, लेकिन पाकिस्तान और ISPR ने इस मौके को लपक लिया।

पुराना फोटो शेयर कर फैलाया प्रोपेगैंडा
पंजाब में आंदोलन जब मजबूत होने लगा और हजारों लोग सड़कों पर आने लगे तो पाकिस्तान ने इसे ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया जैसे ये लोग भारत से अलग होने के लिए आंदोलन कर रहे हों। इसी कड़ी में ISPR के प्रोपेगैंडा का प्रचार करने वाली वीणा मलिक ने तब एक फर्जी फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया। जिसमें एक निहंग सिख खालिस्तान की मांग का पोस्टर लिए नजर आ रहा था। इस फोटो का किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था और ये काफी पुराना फोटो था। लेकिन यहां से किसान आंदोलन को खालिस्तान की मांग का आंदोलन बताने वाली बहस चल निकली।

इसके बाद ISPR से सम्बंधित पाकिस्तान के कई लोगों ने प्रचार करना शुरू किया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के कई लोगों भी इस तरह के पोस्ट सोशल मीडिया पर किए गए। लेकिन इस बहस को सबसे ज्यादा हवा तब मिली जब भाजपा आईटी सेल के लोग पाकिस्तान की इस साजिश में घिर गए और उन्होंने भी अपने किसानों को खालिस्तानी बताने वाली इन खबरों को फैलाना शुरू कर दिया।

पाकिस्तानी लोगों द्वारा किसान आंदोलन को इस तरह से प्रचारित किया जा रहा था कि भारत में अल्पसंख्यक खुश नहीं हैं लिहाजा अलग देश की मांग कर रहे हैं। यह देश को बदनाम करने की पाकिस्तान की एक साजिश थी। लेकिन भाजपा के आईटी सेल ने इसी बहस को हाथों-हाथ स्वीकार कर लिया ताकि केंद्र सरकार को चुनौती देने वाले किसानों को बदनाम किया जा सके। इसमें भाजपा आईटी सेल के कई राज्यों के प्रमुख तक शामिल थे।साभार-दैनिक भास्कर

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