धर्म परिवर्तन रोकने के लिए अलग क़ानून क्यों चाहते हैं राज्य

हरियाणा सरकार जबरन धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ क़ानून लाने पर विचार कर रही है और इस बारे में हिमाचल प्रदेश में पहले से लागू क़ानून पर उसने जानकारी भी मांगी है.

हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने विधानसभा में निकिता तोमर हत्याकांड के संबंध में लाए गए ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान ये जानकारी दी.

न्यूज़ एजेंसी एएनआई को अनिल विज ने बताया, “मैंने एसआईटी से बल्लभगढ़ मामले की जांच लव जिहाद एंगल से भी करने को कहा है. धर्म परिवर्तन के कई मामले प्रकाश में आ रहे हैं जहां व्यक्ति को प्यार के झांसे में ले लिया जाता है. इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा.”

अक्तूबर के महीने में हरियाणा के बल्लभगढ़ में कॉलेज छात्रा निकिता तोमर को दिनदहाड़े गोली मार दी गई थी और गोली मारने का आरोप तौसिफ़ अहमद पर लगा. तौसिफ़ एक राजनीतिक परिवार से आते हैं और इस मामले में एसआईटी चार्जशीट फाइल कर चुकी है.

धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ जिस क़ानून को लाने की बात अनिल विज कर रहे हैं वैसे ही क़ानून की बात उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की सरकारें भी कर चुकी हैं.

पिछले साल हिमाचल प्रदेश की विधानसभा ने धार्मिक आज़ादी क़ानून 2019 पास किया था. जिसका ज़िक्र अनिल विज ने किया.

लेकिन ये क़ानून क्या कहता है?

शिमला में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी शर्मा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में ईसाई मिशनरी द्वारा धर्म परिवर्तन की ख़बरों को ध्यान में रखते हुए साल 2006 में वीरभद्र सिंह की सरकार धर्मांतरण विरोधी क़ानून लेकर आई थी.

हालांकि इसके बाद ये भी रिपोर्टें आई थीं कि ईसाई संस्थाओं ने इस क़ानून की शिकायत कांग्रेस हाई कमान से की और इसे हाई कोर्ट में भी चुनौती दी थी. 13 साल बाद इस क़ानून में संशोधन किए गए और इसे और कड़ा बनाया गया.

सज़ा तीन से बढ़ाकर सात साल की गई

जय राम ठाकुर के नेतृत्व वाली राज्य की बीजेपी सरकार ने इस क़ानून का उल्लंघन करने वालों की सज़ा तीन से सात साल बढ़ा दी. पिछले साल पार्टियों की सर्वसम्मति से ये क़ानून विधानसभा में पास हो गया.

अश्विनी शर्मा के मुताबिक धार्मिक आज़ादी क़ानून 2019 में आठ नए प्रावधान जोड़े गए जिसमें से एक है- अगर शादी कंवर्शन या धर्म परिवर्तन के मकसद से की गई है तो शादी रद्द मानी जाएगी.

क़ानून कहता है, “यदि एक व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी से पहले या बाद में परिवर्तन करता है या दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन शादी से पहले या बाद में करवाता है तो ऐसी शादी रद्द मानी जाएगी.”

ये बात क़ानून के सेक्शन 5 में कही गई है. वहीं सेक्शन 3 कहता कि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, दबाव, झांसा, प्रलोभन, छलकपट या शादी के ज़रिए या षड्यंत्र के ज़रिए कराता है या कोशिश करता है तो यह क़ानूनन ग़लत होगा.

इस क़ानून में ये भी कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या महिला का धर्मांतरण करता है उसे सात साल जेल की सज़ा हो सकती है.

ऐसे क़ानून पर सीनियर एडवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि पहले ये जांच करने की ज़रूरत हैं कि ऐसे धर्म परिवर्तन के मामले हो रहे हैं या नहीं? और ये कितने हैं? ऐसा तो नहीं कि गिने-चुने मामले हैं और उसका हल्ला ज़्यादा किया जा रहा है.

धर्मांतरण विरोधी क़ानून

डवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि ऐसे मामलों को अब कॉग्ज़िनेबल और नॉन बेलेबल बनाया गया है और इन सिविल मामलों को आपराधिक मामला बनाया जा रहा है.

वे बताते हैं कि एंटी कन्वर्शन लॉ को लेकर भारत के कई राज्य जैसे ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, झारखंड और उत्तराखंड में अलग-अलग क़ानून हैं. इनमें से कई राज्यों से आदिवासी इलाकों में ईसाई धर्म में परिवर्तन के मामले सामने भी आए थे. वहीं दूसरे आरोप शादी-ब्याह के जरिए हिंदू लड़की के इस्लाम धर्म कबूल करवाने से जुड़े हैं. अब इसे ‘लव जिहाद’ का नाम दिया जा रहा है और अब नैरेटिव बदल गया है.

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी भी कहती हैं कि कंवर्शन को लेकर क़ानून तो है लेकिन अब इस पूरे मुद्दे को ‘लव जिहाद’ से जोड़ दिया गया है वो भी अगर हिंदू-मुस्लिम के बीच शादी होती तो उसके ख़िलाफ़ मज़बूती से आवाज़ उठाने की कोशिश है. वे कहती हैं कि आगामी चुनावों को देखते हुए ये एक राजनीतिक मुद्दा बनेगा.

उनके अनुसार, “अगले साल पश्चिम बंगाल, पंजाब और असम में चुनाव होने हैं. 2022 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. योगी तो कह चुके हैं कि जबरन धर्म परिवर्तन के मामले आए तो राम नाम सत्य हो जाएगा. ऐसे में आप समूह को कह रहे हैं कि क़ानून को अपने हाथ में लो. इस हाल में उत्पीड़न ही बढ़ेगा, निजी स्वतंत्रता पर हमला होगा. हालांकि इससे हिंदू वोटर एकजुट होंगे, ऐसा नहीं है .युवाओं और बुज़ुर्गों के ख्याल इस मसले पर अलग हो सकते हैं. परिवार के बड़ों में भय होगा कि बेटी का धर्म परिवर्तन कर देंगे, वहीं युवाओं को लगेगा कि अपनी मर्ज़ी से शादी न कर पाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. इससे मतभेद पैदा होगा.”

वहीं विराग गुप्ता भी मानते हैं कि धर्म परिवर्तन को लेकर एक यूनिफ़ॉर्म क़ानून होना चाहिए ताकि राज्यों के बीच मतभेद की स्थिति न पैदा हो. एक क़ानून, एक देश की बात होती है. धर्म और शादियां राज्यों की सीमाओं से परे गिनी जाती हैं तो ऐसे में अगर केंद्रीय क़ानून नहीं हुआ तो राज्यों के अलग-अलग क़ानूनों की वजह से ख़तरनाक स्थिति बन सकती है.साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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