लंबी चल सकती है कोरोना से लड़ाई, संभाल कर खर्च करें पैसे

संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे राहत अभियान में बहुत सारे लोगों को धांधली होने की चिंता भी सता सकती है। लेकिन महामारी के ऐसे संकटपूर्ण समय में जब दुनियाभर की अर्थव्यवस्था मंदी के संकट से गुजर रही है और पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है और जीवन व जीविका दोनों पर खतरा है, तब धांधली की आशंका पर जरूरत से ज्यादा फोकस करना वाजिब नहीं है।

लॉकडाउन पूरे देश में या कुछ खास-खास जगहों पर लंबा खिच सकता है। इस दौरान समुचित तरीके से रोजगार खत्म होने और सरकारी सहायता नहीं मिल पाने पर लाखो-करोड़ो लोग भयानक गरीबी के दलदल में फंस सकते हैं या वे भुखमरी के भी शिकार हो सकते हैं। इतना ही नहीं लोग लॉकडाउन तोड़ भी सकते हैं, क्योंकि भूख से मर रहे लोग वायरस संक्रमण से मरने की चिंता नहीं करेंगे। हमें हर संभव तरीके से लोगों को समझाना होगा कि समाज गरीबों की चिंता कर रहा है और उनकी जरूरतें पूरी की जाएंगी।

विशाल अनाज भंडार का उपयोग किया जा सकता है
हमारे पास परेशानी में फंसे लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। मार्च 2020 में भारतीय खाद्य निगम के पास 7.7 करोड़ टन अनाज का भंडार था। मार्च महीने में यह अब तक का सबसे बड़ा भंडार है। अगले कुछ सप्ताह में यह भंडार और बढ़ सकता है। क्योंकि रबी की फसल कटकर आने वाली है। संकट के समय में इस भंडार के कुछ हिस्से का उपयोग किया जा सकता है।

सरकार अतिरिक्त अनाज दे रही है, लेकिन बहुत सारे गरीबों के पास राशन कार्ड नहीं हैं
सरकार ने इस भंडार का उपयोग करने की इच्छा जता भी दी है। सरकार ने अगले तीन महीने के लिए जन वितरण प्रणाली के तहत प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम की दर से अतिरिक्त प्रावधान की घोषणा भी की है। लेकिन संभव है कि तीन महीने काफी न हों। लॉकडाउन यदि जल्दी खत्म हो जाता है, तब भी अर्थव्यवस्था को पूरी रफ्तार में आने में लंबा समय लगेगा। इतना ही नहीं बहुत सारे गरीबों का नाम जन वितरण प्रणाली की सूची में नहीं है।

सरकार जरूरत मंदों को अस्थायी राशन कार्ड दे सकती है
जन वितरण के तहत किया गया अतिरक्त प्रावधान उन्हें ही मिल पाएगा, जिनका नाम जनवितरण प्रणाली में पहले से है। बहुत सारे लोग इस प्रणाली से बाहर हैं। उदाहरण के लिए झारखंड (जैसा कि हमें बताया गया है) में राशन कार्ड के 7 लाख आवेदन लंबित हैं। कई सही आवेदन सत्यापन की प्रक्रिया में फंसे हुए हैं, ताकि भ्रष्टाचार की कोई संभावना न दिखे। इतनी अधिक सावधानी के लाभ तो जरूर हैं। लेकिन संकट के समय में इतनी सावधानी का ज्यादा लाभ नहीं है। सही तरीका यह हो सकता है कि जो भी राशन कार्ड हासिल करना चाहते हें, उन्हें न्यूनतम जांच-पड़ताल के साथ अस्थायी (मान लिया जाए कि 6 महीने के लिए) राशन कार्ड दे दिया जाए। कुछ सक्षम लोगों को भी इस प्रक्रिया में अस्थायी कार्ड मिल सकते हैं। लेकिन जरूरतमंद तक यदि राहत नहीं पहुंचा, तो वह बहुत अधिक बुरा होगा।

भुखमरी के अलावा और भी कई चिंता हैं
इसके अलावा सरकार प्रवासी मजदूरों और घर से दूर फंसे लोगों के लिए मुफ्त सरकारी भोजनालय खोल सकती है। स्कूल में दिया जाने वाला भोजन बच्चों के घरों तक पहुंचाया जा सकता है। इसमें प्रतिष्ठित एनजीओ की मदद ली जा सकती है। लॉकडाउन के कारण भुखमरी बहुत सारी समस्याओं में से एक समस्या। इसके अलावा लोगों की नौकरी छूट सकती है। लंबे समय में की गई बचत खत्म हो सकती है। भले ही अभी भोजन की व्यवस्था कर दी गई है, लेकिन किसानों को अगली रोपाई के लिए बीच और उर्वरक चाहिए। दुकानदारों को अपने दुकान में फिर से माल लाने की चिंता हो सकती है। लोगों को कर्ज का भुगतान करने में दिक्कत हो सकती है। इन चिंताओं पर ध्यान देना जरूरी है।

राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के लिए भी उपलब्ध रहने चाहिए राहत फंड
सरकार ने कुछ समूहों को जो नकद हस्तांतरण की घोषणा की है, उनमें इन चिंताओं को आंशिक तौर पर जरूर स्वीकार किया गया है। लेकिन सहायता राशि बहुत कम है और यह बहुत कम लोगों को मिल रही है। सिर्फ किसान हीं क्यों? भूमिहीन मजदूरों को भी मिलनी चाहिए सहायता। क्योंकि लॉकडाउन के कारण मनरेगा का काम बाधित हो रहा है। शहरी गरीबों को भी मदद चाहिए। हमारी नीति समावेशी होनी चाहिए।

पी चिदंबरम ने गरीबों की पहचान के लिए 2019 की मनरेगा सूची, जन आरोग्य और उज्ज्वला योजना का इस्तेमाल करने की सलाह दी है। यह एक अच्छा पहला कदम हो सकता है। हालांकि हमें यह भी समझना होगा कि इनमें से कोई भी सूची पूरी तरह सही नहीं है। इतना ही नहीं रोहिनी पांडे, कार्तिक मुरलीधरन एवं अन्य द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अत्यधिक गरीबों तक पहुंचने के नजरिए से “जे ए एम” भी सही इन्फ्रास्ट्र्रक्चर नहीं है। तो फिर जरूरतमंद तक पहुंचने के लिए और क्या किया जाए? राज्यों और स्थानीय निकायों के लिए भी फंड उपलब्ध रहने चाहिएं, ताकि वे भी अत्यधिक गरीबों तक पहुंचने का रास्ता खोज सकें। अगर कोई ऐसी चुनौती हो सकती है, जिसमें साहसिक और कल्पनाशीलता के साथ कदम उठाए जाने की जरूरत है, तो अभी ही वह चुनौती है। देश के वित्तीय संसाधनों पर भारी दबाव को देखते हुए हमें सोच-समझकर खर्च करना होगा। लेकिन इस प्रक्रिया में यह भी ध्यान रखना होगा कि वास्तविक जरूरतमंद के साथ कंजूसी न हो जाए।
– अमर्त्य सेन, रघुराम राजन व अभिजीत बनर्जी

अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। वह अभी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर हैं। रघुराम राजन आरबीआई के पूर्व गवर्नर हैं। वह अभी शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल में फाइनेंस के प्रोफेसर हैं। अभिजीत बनर्जी को भी अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। अभी वे मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर हैं।

इंडियन एक्सप्रेस से साभार


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