वक्फ संशोधन बिल: राज्यसभा में भी पास, समर्थन व विरोध के बीच जेडीयू की भूमिका अहम

अब दोनों सदनों से पारित हो चुका है। गुरुवार देर रात 12 घंटे तक चली लंबी चर्चा के बाद राज्यसभा में बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े। इससे पहले लोकसभा में यह बिल 288 वोटों से पारित हो चुका था। एनडीए गठबंधन के सभी घटक दलों ने इस बिल का समर्थन किया, जिसमें जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू की भूमिका विशेष रूप से चर्चा में रही।
विपक्ष की आपत्तियाँ और सेक्युलर राजनीति का सवाल
कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन ने इस बिल को संविधान विरोधी बताया और आरोप लगाया कि यह मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को चोट पहुंचाता है। उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दखलंदाजी से समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित होगी। विपक्ष ने विशेष रूप से जेडीयू को निशाने पर लेते हुए कहा कि नीतीश कुमार जैसी सेक्युलर छवि वाले नेता को इस बिल का समर्थन नहीं करना चाहिए था।
जेडीयू की सफाई और भाजपा के साथ बातचीत
इस पर जेडीयू की तरफ से राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने सदन में अपनी बात रखते हुए स्पष्ट किया कि पार्टी ने बिना विचार किए बिल का समर्थन नहीं किया है। उन्होंने बताया कि बिल को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मन में भी शंकाएं थीं, जिन्हें भाजपा नेताओं के साथ संवाद कर दूर किया गया।
संजय झा ने बताया कि इस बिल को लेकर इस्लामिक धार्मिक स्थलों, दरगाहों, ईदगाहों और कब्रिस्तानों में हस्तक्षेप की आशंका थी। इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज के कई प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार से मुलाकात कर अपनी चिंता साझा की थी। जेडीयू ने इन चिंताओं को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने भी रखा।
अमित शाह की भूमिका और भ्रांतियों का समाधान
संजय झा ने यह भी बताया कि बिल को लोकसभा में पेश करने से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जेडीयू नेताओं – ललन सिंह और संजय झा – से विस्तृत चर्चा की थी। इस बातचीत में अमित शाह ने स्पष्ट किया कि मस्जिदों, ईदगाहों या कब्रिस्तानों पर कोई खतरा नहीं है और फैलाई जा रही भ्रांतियाँ निराधार हैं।
उन्होंने कहा कि “बिहार सरकार ने पिछले 19 वर्षों में हजारों कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराई है। ऐसे में यह दावा करना कि सरकार वक्फ संपत्तियों को नुकसान पहुँचाएगी – पूरी तरह गलत और भ्रामक है।”
पसमांदा मुसलमानों और सामाजिक न्याय पर फोकस
संजय झा ने आगे कहा कि बिहार अकेला राज्य है जिसने जातीय जनगणना कराई है, जिसमें यह तथ्य सामने आया कि राज्य में 73% मुसलमान ‘पसमांदा’ वर्ग से आते हैं। उन्होंने कहा कि जेडीयू का उद्देश्य है कि इस वंचित वर्ग को वैज्ञानिक आंकड़ों और सामाजिक न्याय की नीति के तहत लाभ मिले।
राजनीति, धर्म और भरोसे की परीक्षा
वक्फ संशोधन बिल न केवल संसद में बल्कि सियासी गलियारों में भी बड़ा मुद्दा बन गया है। एक तरफ जहां सरकार इसे पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार की दिशा में कदम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक अधिकारों पर हमला बता रहा है। जेडीयू की भूमिका यहां निर्णायक रही, जिसने संवाद, सहमति और तथ्यों के आधार पर अपना रुख तय किया।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बिल के लागू होने के बाद ज़मीनी स्तर पर इसका कितना असर होता है और मुस्लिम समाज की प्रतिक्रिया कैसी रहती है।
Exit mobile version