सिंगापुर: भ्रष्टाचार मुक्त देश कैसे बना?

1. ली कुआन यू का नेतृत्व
ली कुआन यू (Lee Kuan Yew) सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री (1959-1990) थे। उनका मानना था कि “भ्रष्टाचार मुक्त समाज ही सच्ची प्रगति का आधार है।”
उन्होंने कड़े कानून बनाए और यह सुनिश्चित किया कि कोई भी, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।
उनकी सरकार ने ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दी।
2. Corrupt Practices Investigation Bureau (CPIB)
1952 में स्थापित CPIB ने सिंगापुर के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में अहम भूमिका निभाई। यह एजेंसी स्वतंत्र रूप से कार्य करती है और किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त है।
CPIB को अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति, चाहे वह राजनेता हो, अधिकारी हो या व्यापारी, की जांच कर सके।
3. सख्त और प्रभावी कानून
सिंगापुर में भ्रष्टाचार के खिलाफ Prevention of Corruption Act लागू किया गया।
दोषियों के खिलाफ तुरंत और सख्त सजा दी जाती है।
बड़े पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करके एक उदाहरण स्थापित किया गया।
4. सरकारी अधिकारियों की उच्च वेतन नीति
सिंगापुर में सरकारी अधिकारियों, खासकर मंत्रियों और उच्च पदस्थ अधिकारियों, को दुनिया के सबसे अच्छे वेतन दिए जाते हैं।
उदाहरण के लिए, सिंगापुर के प्रधानमंत्री का वार्षिक वेतन करीब 1.6 मिलियन सिंगापुर डॉलर (लगभग 10 करोड़ रुपये) है।
यह वेतन उन्हें रिश्वत लेने की आवश्यकता से मुक्त करता है और बेहतरीन प्रतिभाओं को सार्वजनिक सेवा में आने के लिए प्रोत्साहित करता है।
5. डिजिटल और पारदर्शी प्रशासन
सिंगापुर ने सरकारी प्रक्रियाओं को डिजिटलीकृत कर दिया, जिससे रिश्वत देने या लेने की गुंजाइश खत्म हो गई।
सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन और पारदर्शी बनाया गया, जिससे हर नागरिक को बिना किसी मध्यस्थ के सेवाएं मिलती हैं।
6. नेताओं और अधिकारियों की जवाबदेही
नेताओं और अधिकारियों को अपनी संपत्ति और आय का खुलासा करना अनिवार्य है।
उनके कामकाज की निगरानी एक स्वतंत्र तंत्र के तहत होती है।
सिंगापुर की प्रगति का सफर
1. 1960s: औद्योगिकरण की शुरुआत
सिंगापुर ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त माहौल तैयार किया।
विदेशी कंपनियों ने सिंगापुर में निवेश करना शुरू किया, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े।
2. 1970s-1980s: बुनियादी ढांचे का विकास
सिंगापुर ने विश्व स्तरीय सड़कें, बंदरगाह और एयरपोर्ट बनाए।
शहरीकरण के साथ-साथ पर्यावरण का ध्यान रखा गया।
3. 1990s-2000s: शिक्षा और तकनीकी उन्नति
सिंगापुर ने शिक्षा और कौशल विकास में भारी निवेश किया।
डिजिटल इकोनॉमी और तकनीकी इनोवेशन को बढ़ावा दिया।
4. वर्तमान स्थिति
आज सिंगापुर का GDP प्रति व्यक्ति 72,000 अमेरिकी डॉलर (2023) के आसपास है, जो इसे दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक बनाता है।
World Bank’s Doing Business Index में सिंगापुर हमेशा टॉप 3 में रहता है।
भारत सिंगापुर से क्या सीख सकता है?
1. ईमानदार नेतृत्व और सख्त कानून
भारत में भी सिंगापुर की तरह भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किए जाएं।
राजनीतिक और प्रशासनिक नेताओं के लिए जवाबदेही तय की जाए।
2. उच्च वेतन और प्रतिस्पर्धा
सरकारी अधिकारियों और नेताओं को ऐसा वेतन दिया जाए, जो उन्हें रिश्वत लेने की आवश्यकता से मुक्त करे।
सिंगापुर की तरह उच्च वेतन के साथ सख्त जवाबदेही का प्रावधान हो।
3. डिजिटल पारदर्शिता
सरकारी सेवाओं को पूरी तरह डिजिटलीकृत और पारदर्शी बनाया जाए।
हर लेन-देन ऑनलाइन हो, जिससे मैनुअल हस्तक्षेप की संभावना खत्म हो।
4. शिक्षा और जागरूकता
स्कूलों में नैतिकता और ईमानदारी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।
नागरिकों को यह सिखाया जाए कि भ्रष्टाचार देश की प्रगति को कैसे नुकसान पहुंचाता है।
5. नेताओं का पारदर्शी चयन
नेताओं के लिए कड़े मानदंड तय किए जाएं।
उनकी आय, संपत्ति और फैसलों की जांच की जाए।
सिंगापुर मॉडल भारत में कैसे लागू हो सकता है?
भारत को सिंगापुर की सफलता से प्रेरणा लेकर निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
1. स्वतंत्र भ्रष्टाचार-रोधी एजेंसी की स्थापना।
2. नेताओं और अधिकारियों की संपत्ति का वार्षिक ऑडिट।
3. सरकारी सेवाओं और ठेके में डिजिटलीकरण।
4. शिक्षा और सामाजिक जागरूकता अभियान।
5. भ्रष्टाचार पर कड़ी सजा का प्रावधान।
सिंगापुर ने दिखाया है कि एक मजबूत नेतृत्व, सख्त कानून, पारदर्शिता और जवाबदेही से भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है। भारत में भी सिंगापुर के इन कदमों को लागू करके न केवल भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक प्रगति के नए आयाम हासिल किए जा सकते हैं।
अब समय आ गया है कि भारतीय जनता अपने नेताओं और प्रशासन से जवाबदेही मांगे और यह सुनिश्चित करे कि भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अकेले सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
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