भारत-चीन: सहमति के बीच ड्रैगन की हर चाल पर सेना की नजर

भारत और चीन:- हाल ही में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण ‘पेट्रोलिंग समझौता’ हुआ है। यह समझौता रूस में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान किया गया, जहां चीन ने भी अपनी सहमति प्रदान की। दोनों देशों की सेनाएँ अब अप्रैल 2020 की स्थिति में लौटने की दिशा में कदम बढ़ाएँगी। यह सहमति भारत की सैन्य रणनीति में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत देती है, लेकिन इसके साथ ही चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ पॉलिसी पर भी ध्यान देना होगा।
2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत-चीन सीमा पर तनाव बढ़ गया था। दोनों देशों ने एलएसी पर अपनी सेनाएँ तैनात की थीं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) ध्रुव सी कटोच के अनुसार, यह नया समझौता चार वर्षों की कड़ी बातचीत और रणनीतिक दबाव का परिणाम है। अब, दोनों देश पहले की स्थिति पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें ‘डी-एस्केलेशन’ और सामान्य प्रबंधन शामिल है।
चीन की रणनीति
चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ नीति का मतलब है छोटे-छोटे सैन्य ऑपरेशनों के जरिए धीरे-धीरे भूमि पर कब्जा करना। कटोच ने इस बात पर जोर दिया कि चीन ने पहले भी इसी तरह की रणनीतियाँ अपनाई हैं, लेकिन अब भारत ने स्पष्ट रूप से यह संकेत दिया है कि वह अपनी स्थिति से पीछे नहीं हटेगा।
गश्त और पेट्रोलिंग
समझौते के तहत, भारत अपनी पेट्रोलिंग गतिविधियों को उसी सीमा तक सीमित करेगा, जहाँ वह पहले जाता था। भारत ने अपनी सेना को पूरी तरह हटाने का कोई इरादा नहीं दिखाया है, बल्कि वह अपनी मौजूदा स्थिति बनाए रखने के लिए तत्पर है। पेट्रोलिंग में भारत और चीन दोनों को एक-दूसरे को सूचित करने की आवश्यकता होगी, जिससे कि किसी भी अनहोनी से बचा जा सके।
भविष्य की चुनौतियाँ
भारत-चीन संबंधों में विश्वास का निर्माण एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। कटोच का मानना है कि अविश्वास को खत्म करने में समय लगेगा, और भारत को अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। यदि चीन अपनी आक्रामक नीतियों पर कायम रहता है, तो भारत को सख्त कदम उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
यह समझौता एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके साथ ही भारत को चीन की चालों पर लगातार नजर रखनी होगी। सीमा पर स्थायी शांति स्थापित करने के लिए दोनों देशों के बीच सच्ची सहयोगिता और विश्वास का निर्माण आवश्यक है। अगर यह समझौता सफल होता है, तो यह न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए स्थिरता लाने में सहायक होगा।
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