Jaishankar का स्पष्ट संदेश: अमेरिका के साथ संबंध अमूल्य, रूस के साथ व्यापार जारी रहेगा

नई दिल्ली:- आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि इन रिश्तों की कीमत अमूल्य है और ये दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। साथ ही, उन्होंने रूस के साथ भारत के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के महत्व को भी रेखांकित किया, और इस दिशा में कोई भी डर न रखने की सलाह दी।
कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री ने राजदूत राजीव सीकरी की नई किताब “स्ट्रैटेजिक काउंड्रम्स: रिशेपिंग इंडियाज फॉरेन पॉलिसी” का विमोचन भी किया। इस किताब में भारत की विदेश नीति में सामने आने वाली रणनीतिक दुविधाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
अमेरिका के साथ रिश्ते अनमोल
किताब “स्ट्रैटेजिक काउंड्रम्स: रिशेपिंग इंडियाज फॉरेन पॉलिसी” के विमोचन के अवसर पर जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और रणनीतिक संबंध अमूल्य हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि आज अमेरिका भारत की बहुध्रुवीयता को बढ़ाने में एक अपरिहार्य साझेदार है, जो हमें स्वतंत्र और सशक्त निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। विदेश मंत्री ने इतिहास की ओर इशारा करते हुए बताया कि भारत-अमेरिका संबंधों ने 1950 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, अमेरिका का दबाव अब पहले जैसा नहीं है। जयशंकर ने कहा कि दुनिया बदल गई है, अमेरिका के बारे में हमारी समझ बदल गई है। अब अमेरिका भी हमें समझता है। यह बयान भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की गहराई और महत्व को उजागर करता है।
विदेश मंत्री ने रूस के साथ संबंधों पर क्या कहा
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में रूस के साथ भारत के संबंधों पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भारत को ‘यूरेशियन संतुलन‘ की संवेदनशीलता बनाए रखनी चाहिए, जो कि देश की मुख्य रणनीतिक आवश्यकता है। जयशंकर ने उल्लेख किया कि भारत और रूस के बीच व्यापार पांच गुना बढ़ चुका है, और यह केवल तेल का मामला नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच गहरी आर्थिक पूरकता का परिणाम है।
उन्होंने बताया कि रूस ने अपनी विदेश नीति को पूर्व की ओर मोड़ लिया है, और 2022 के बाद से मॉस्को ने दुनिया के साथ संपर्क के नए तरीके अपनाए हैं। भारत को इस बदलते परिदृश्य को समझते हुए इस आर्थिक पूरकता के लाभों को आगे बढ़ाने का अवसर देखना चाहिए। जयशंकर के अनुसार, भारत को इन संबंधों के लाभ से डरने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें अपनाना और बढ़ावा देना चाहिए।
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