हरित क्रांति के जनक MS स्वामीनाथन का निधन, ऐसे बदली थी किसानों की जिंदगी

नई दिल्ली। भारत को कृषि आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाले महान वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का निधन हो गया है। उन्हें हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने देश में अकाल के समय किसानों और सरकारी नीतियों के साथ-साथ अन्य वैज्ञानिकों की मदद से एक सामाजिक क्रांति लाई।

98 साल के स्वामीनाथन का चेन्नई में गुरुवार सुबह 11.20 बजे निधन हो गया। उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन का पिछले साल निधन हो गया था। उनकी बेटी सौम्या स्वामीनाथन, विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक रह चुकी हैं। कोरोना के दौरान उनके कार्यों की काफी चर्चा हुई थी। स्वामीनाथन की बेटी सौम्या ने निधन की पुष्टि करते हुए कहा कि वे लंबे समय से बीमार थे। वे जीवन के आखिर तक किसानों के कल्याण और समाज के गरीबों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध थे। मुझे आशा है कि हम तीनों बेटियां उस विरासत को जारी रखेंगे। सौम्या ने कहा कि मेरे पिता उन कुछ लोगों में से एक थे जिन्होंने माना कि कृषि में महिलाओं की उपेक्षा की जाती है। उनके विचारों ने महिला सशक्तिकरण योजना जैसे कार्यक्रमों को जन्म दिया है। जब वे छठे योजना आयोग के सदस्य थे तो पहली बार इसमें जेंडर और एन्वायर्नमेंट पर एक चैप्टर शामिल किया गया था। ये वो दो योगदान हैं, जिन पर उन्हें बहुत गर्व था।

वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने बृप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन के निधन पर दुख जताया और साथ ही कहा कि कृषि क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान ने लाखों लोगों के जीवन को बदला और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। प्रधानमंत्री ने स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत को प्रगति करते देखने का उनका जुनून अनुकरणीय था तथा उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

कौन थे एमएस स्वामीनाथन?
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में साल 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन 11 साल के ही थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। उनके बड़े भाई ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। उनके परिजन उन्हें मेडिकल की पढ़ाई कराना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत प्राणि विज्ञान से की।

बंगाल का अकाल देख किया सेवा का फैसला
1943 के बंगाल अकाल के दौरान उन्होंने भूख के कारण लाखों लोगों की मौत देखी और दुनिया से भूख मिटाने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया। उन्होंने धान की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को डेवलप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान ज्यादा फसल पैदा करें। इसके अलावा 1960 के अकाल के दौरान स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और दूसरे कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्म (HYV) के बीज भी डेवलप किए थे।

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जो आज भी विमर्श का विषय
किसानों के हालात पर सिफारिशें देने के लिए स्वामीनाथन आयोग का गठन 18 नवंबर 2004 को किया गया था। दरअसल, इस आयोग का नाम राष्ट्रीय किसान आयोग है जिसके अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन रहे। उन्हीं के नाम पर इस आयोग का नाम स्वामीनाथन आयोग पड़ा। उन्होंने किसानों के हालात सुधारने और कृषि को बढ़ावा देने के लिए सिफारिशें की थीं, लेकिन अब तक उनकी ये सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं। हालांकि सरकारों का कहना है कि उन्होंने आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि अभी तक इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। किसान बार-बार आंदोलनों के जरिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते रहे हैं।

पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित
स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्मभूषण और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में 1972 से 1979 तक और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में 1982 से 88 तक महानिदेशक रहे।

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