नई दिल्ली। रामानंद सागर उर्फ चंद्रमौली चोपड़ा की ‘रामायण’ आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। जब भी रामायण का जिक्र होता है तो रामानंद सागर का नाम जरूर आता है। यूं कह लीजिए कि ‘रामानंद सागर की रामायण’ के नाम से ही लोग उन्हें याद करते हैं। 29 दिसंबर 1917 को जन्मे रामानंद सागर को टीवी शो ‘रामायण’ ने युगों-युगों तक अमर कर दिया। भारत सरकार ने रामानंद को 2000 में कला और सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया था।
रामानंद सागर का जन्म 29 दिसंबर 1917 को लाहौर में हुआ था। जन्म के वक्त उनका नाम चंद्रमौली चोपड़ा था। उनके दादा पेशावर से आकर परिवार समेत कश्मीर में बस गए। धीरे-धीरे वे शहर के नगर सेठ बन गए। जब रामानंद 5 साल के थे तो उनकी मां का निधन हो गया था। बहुत छोटी उम्र में ही रामानंद सागर को उनके निसंतान मामा ने गोद ले लिया। यहां उनका नाम चंद्रमौली से बदलकर रामानंद सागर रखा गया।
छोटे-छोटे काम कर कमाते थे पैसे
रामानंद सागर को पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। वो दिन-रात पढ़ने में लगे रहते थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली किताब- प्रीतम प्रतीक्षा लिखी। ये वो दौर था जब वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए काम भी किया करते थे। रामानंद ने पिऊन से लेकर साबून बेचने तक की नौकरी की थी। यहां तक कि सुनार की दुकान में हेल्पर और ट्रक क्लीनर का भी काम वह कर चुके थे। इससे जितने पैसे आते थे, वे अपनी पढ़ाई में लगाते। ऐसा करते हुए उन्होंने काम के साथ अपनी डिग्री भी हासिल कर ली थी।
रामानंद सागर लेखन में माहिर थे इसी की झलक आगे चलकर उनकी कहानियों और किस्सों में नजर आती थी। उन्होंने 32 लघुकथाएं, 4 कहानियां, 1 उपन्यास, 2 नाटक लिखे हैं। वे पंजाब के जाने-माने अखबार डेली मिलाप के संपादक भी रहे थे।
विभाजन की तकलीफ
जब देश आजाद हुआ था। 1947 में जब भारत स्वतंत्रता का स्वाद चख रहा था, तब रामानंद 30 साल के थे। आजादी के उन दिनों में पाकिस्तान के हमले और कबायलियों के आतंक ने रामानंद के परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया। पाक सेना की मदद से 10 हजार जिहादी मुस्लिम कबायली बारामूला पहुंचने के बाद श्रीनगर में बिजली की लाइन काट चुके थे। राजधानी में अंधेरी छा गया था जिसके बाद लूट, अपहरण, बलात्कार का खेल शुरू हो चुका था।
आतंकी हमलों के बीच तब पायलट बीजू पटनायक हवाई जहाज लेकर उन्हें बचाने पहुंचे थे। रामानंद सागर पत्नी, पांच बच्चों, सास, साले और उनकी पत्नी के साथ पूरी रात श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे की दीवार से चिपके थे। रामानंद के सिर पर बड़ा ट्रंक देखकर कर्मीदल ने परिवार के किसी भी सदस्य को विमान में चढ़ाने से इनकार कर दिया। हताश शरणार्थी धक्का-मुक्की कर रहे थे। रामानंद सागर जोर से चिल्लाए ट्रंक मेरे साथ ही जाएगा वरना परिवार का कोई नहीं जाएगा।
तभी उनकी मदद के लिए एक पंजाबी जाटनी आई, जिसने केवल ट्रंक ही नहीं बल्कि रामानंद को भी उठाकर विमान में फेंक दिया। उसने पायलट से कहा, ‘तुझे शर्म नहीं आती। चार दिन से हमने कुछ खाया नहीं है।’ पायलट बीजू शांत तो हो गए थे लेकिन वह ट्रंक के पास आए और उसे खोलने के लिए कहा, जब ट्रंक खोला गया तो उसमें रामानंद सागर के उपन्यास के नोट्स, विभाजन के अनुभव, बरसात फिल्म की स्क्रिप्ट मिले। इसे दिखाने के साथ ही रामानंद सागर रो दिए और बोले, ‘हां यही मेरे हीरे जवाहरात हैं, जो मैं लेकर जा रहा हूं।’
इस मंजर को देख बीजू पटनायक ने अगले ही पल रामानंद को गले लगा लिया। विमान में बैठी भीड़ में भी जोश बढ़ गया था। आपको बता दें कि बीजू पटनायक दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे थे। वह असम के राज्यपाल भी बने और इंडियन एयरलाइंस को कमर्शल रूप से शुरू करने का श्रेय भी उन्हीं को ही जाता है।
रामानंद सागर लिखते थे डायरी
रामानंद सागर टीबी के मरीज थे। इलाज के दौरान उन्होंने डायरी लिखना शुरू किया था। उनकी इस डायरी के हर एक कॉलम ने ऐसी बातें लिखी थीं, जिन्होंने लोगों को हैरान कर दिया था। एक इंटरव्यू में रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने इस किस्से का जिक्र किया था।
प्रेम सागर ने कहा- ‘मेरे पिता रामानंद सागर जी को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। वे दिन-रात पढ़ाई में लगे रहते थे। एक दिन उन्हें खांसी आई फिर देखा तो उनके कपड़े में खून लगा हुआ था। फैमिली डॉक्टर को बुलाया और जांच में पता चला कि उन्हें टीबी है।उस वक्त टीबी का कोई इलाज नहीं थ। डॉक्टर ने उन्हें टीबी सेनिटोरियम में भर्ती हो जाने की सलाह दी थी। फिर पिताजी को उनके दादाजी टंगमर्ग स्थित टीबी सेनिटोरियम लेकर गए और वहां उन्हें भर्ती कर दिया। यहां टीबी पेशेंट्स जिंदा जरूर आते थे लेकिन उनकी लाश बाहर जाती थी।’
डायरी में लिखी बातों ने लोगों को चौंकाया
उन्होंने आगे बताया, ‘उस सेनिटोरियम में एक कपल भी था। वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। एक दिन दोनों स्वस्थ होकर वहां से निकले। उन्हें देखकर पिताजी चकित रह गए। उस दिन उन्हें एहसास हुआ कि प्यार किसी भी बीमारी को मात दे सकता है। उस दिन से उन्होंने रोज डायरी लिखना शुरू किया- मौत के बिस्तर से डायरी टीबी पेशेंट की।’
प्रेम सागर ने अंत में कहा था, ‘ये सब साहित्य से जुड़े लोग पढ़ते थे। पिताजी ने कॉलम लिखकर भेजना शुरू किया। उनके कॉलम को पढ़कर एक अखबार के संपादक हैरान रह गए थे। वे सोचने लगे कि एक आदमी मर रहा है और वो लोगों को बता रहा है कि जीना कैसे है। उनके कॉलम ने संपादक का दिल छू लिया और उन्होंने अपने अखबार में एक कॉलम निकालाना शुरू किया- ‘मौत के बिस्तर से रामानंद सागर। फैज अहमद फैज, किशनचंद्र, राजिंदर सिंह बेदी ने भी पिताजी के आर्टिकल्स को सराहा और वे भी उनके फैन हो गए फिर पिताजी को बतौर लेखक पहचान मिली।’
‘रामायण’ से मिली पहचान
रामानंद सागर के वैसे तो कई सीरियल और फिल्में मशहूर हुईं मगर जिसने सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी वो था रामायण। 25 जनवरी 1987 को रामायण का पहला एपिसोड प्रसारित हुआ। ये सीरियल 31 जुलाई 1988 तक चलता रहा। दूरदर्शन पर रामायण रविवार प्रातः 45 मिनट (विज्ञापन समेत) तक आता था। जबकि उस दौर में बाकी सीरियल को 30 मिनट का स्लॉट ही मिलता था। 78 एपिसोड वाले रामायण का प्रसारण जब होता था तो देश की सड़कों एवं गलियों में कर्फ्यू जैसा सन्नाटा छा जाता था। आज के दौर में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
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