नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा मुस्लिम लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को अन्य धर्मों के व्यक्तियों के समान करने के लिए दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने केंद्र से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने शुक्रवार को राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दखिल कर कर्नाटक और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट सहित कई और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों पर रोक लगाने की मांग करते हुए इसके लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है। इन फैसलों में पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए मुस्लिम लड़कियों की शादी उनके मासिक शुरू होने के बाद कभी भी किए जाने को जायज ठहराया गया है।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा कि मुसलमानों को यौवन (लगभग 15) की उम्र में शादी करने की अनुमति देना मनमाना, तर्कहीन, भेदभावपूर्ण और दंडात्मक कानूनों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि यहां तक कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) भी 18 साल से कम उम्र के लोगों को सेक्स के लिए सहमति देने का प्रावधान नहीं करता है। याचिका में कहा गया है कि नाबालिग मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी ताकि इस्लामी पर्सनल लॉ को अन्य धर्मों पर लागू दंड कानूनों के अनुरूप बनाया जा सके।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया था कि 15 साल की एक मुस्लिम लड़की मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ शादी करने के लिए सक्षम है। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया था और मामले में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था।