अहमदाबाद। गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि धर्म की स्वतंत्रता में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं है। सरकार ने शीर्ष अदालत से राज्य के कानून के प्रावधान (विवाह के माध्यम से धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी की अनुमति) पर उच्च न्यायालय की रोक हटाने का अनुरोध किया।
गुजरात उच्च न्यायालय ने 19 अगस्त और 26 अगस्त, 2021 के अपने आदेशों के माध्यम से राज्य सरकार के धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2003 की धारा 5 के संचालन पर रोक लगा दी थी। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा एक जनहित याचिका के जवाब में प्रस्तुत अपने हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि उसने एक आवेदन दायर किया है। इसमें हाईकोर्ट के स्टे को रद्द करने की मांग की गई है ताकि गुजरात में बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धार्मिक रूपांतरण पर रोक लगाने के प्रावधानों को लागू किया जा सके। उन्होंने कहा, यह प्रस्तुत किया गया है कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है।
उक्त अधिकार में निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, धोखे, जबरदस्ती, प्रलोभन या अन्य तरह के धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रचार शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर संविधान सभा में विस्तार से चर्चा की गई थी। इसे शामिल करने की वजहों को स्पष्ट करने के बाद ही अनुच्छेद 25 को पारित किया गया था।
बता दें कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि जबरन मतांतरण देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात करता है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस बेहद गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाए और गंभीर प्रयास करे। अदालत ने चेतावनी दी थी कि अगर धोखे, प्रलोभन और डराने-धमकाने के जरिये मतांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी। शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 23 सितंबर को केंद्र और अन्य से जवाब तलब किया था।