उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम सिर्फ ठंड और कोहरे का नहीं, बल्कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का भी संकेत देता है। कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए लोग अक्सर सूखे पत्तों और कूड़े में आग लगाते हैं। यह न केवल पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी दीर्घकालिक खतरे में डालता है।
वायु प्रदूषण: एक खतरनाक सच
भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है। स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान (Health Effects Institute) के अनुसार, 2023 में दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में थे। दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों में सर्दियों के दौरान PM2.5 स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है।
कूड़ा और पत्ते जलाने से होने वाले नुकसान
PM2.5 और PM10 का स्तर बढ़ना:
खुले में जलने वाले कचरे से निकलने वाला धुआं हवा में बारीक कण छोड़ता है, जो फेफड़ों में गहराई तक जाकर सांस लेने में कठिनाई पैदा करता है।
गैसों का उत्सर्जन
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसी गैसें वायु की गुणवत्ता को और खराब करती हैं।
दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं
WHO के अनुसार, लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर, और श्वसन तंत्र की समस्याएं बढ़ जाती हैं।
बच्चों और बुजुर्गों में अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे रोग आम हो जाते हैं।
सर्दी में आग जलाने की आदत को कैसे रोका जाए?
सर्दी से बचने के लिए अधिक पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाया जा सकता है।
वैकल्पिक समाधान:
ईको-फ्रेंडली हीटिंग:
बायोब्रिकेट्स या पर्यावरण-अनुकूल हीटर का उपयोग करें।
सोलर हीटिंग सिस्टम अपनाएं।
कंपोस्टिंग
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सूखे पत्तों को जलाने के बजाय खाद बनाने में इस्तेमाल करें।इससे कचरे का प्रबंधन बेहतर होगा और पर्यावरण सुरक्षित रहेगा।ऊर्जा बचाने वाले साधन: