नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार की शाम को इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। इस प्रतिमा अपने आप में एक इतिहास-एक रिकॉर्ड है। इस प्रतिमा को बनाने में 26000 घंटे लगे हैं। पूरी प्रतिमा मूर्तिकारों द्वारा हाथों से निर्मित की गई है।
यह प्रतिमा ग्रेनाइट के पत्थर से बनाई गई है और ग्रेनाइट का पत्थर तेलंगाना से लाया गया है। जिस पत्थर से यह प्रतिमा बनी है, उसका कुल वजन 280 मीट्रिक टन था। जिसे तेलंगाना से दिल्ली लाना, अपने आप में बड़ी चुनौती थी। इस पत्थर को एक 140 चक्कों वाले ट्रक पर लादकर दिल्ली लाया गया। इस ट्रक की लंबाई 100 फीट थी। इस विशाल ग्रेनाइट पत्थर को तेलंगाना के खम्मम से 1,665 किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली लाया गया था।
इस पत्थर को जब दिल्ली पहुंचा दिया गया तो मुर्तिकारों के सामने चुनौती थी कि इसे सही रूप रेखा में तराशा जाए। इसकी जिम्मेदारी मूर्तिकार अरुण योगीराज को दी गई। उन्हीं के नेतृत्व में मूर्तिकारों ने इस काम को अंजाम दिया। सांस्कृति मंत्रालय के अनुसार इसे तैयार करने में 26,000 घंटे लगे। 280 मीट्रिक टन वजनी पत्थर को तराश कर 65 मीट्रिक टन बना दिया गया। इस काम के लिए पुराने, पारंपरिक औजारों का सहारा लिया गया है और मूर्ति को हाथों की कला के सहारे ही तराशा गया है।
इस प्रतिमा को इंडिया गेट के सामने जिस जगह पर लगाया गया है, उसका भी अपना एक इतिहास है। नेताजी की प्रतिमा से पहले यहां ब्रिटेन के राजा किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा मौजूद थी। संगमरमर की 50 फीट ऊंची ये प्रतिमा तब की ब्रितानी हुकूमत ने अपने राजा के सम्मान में लगवाई थी।
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद इंडिया गेट पर किंग की प्रतिमा का विरोध हुआ।इसके बावजूद करीब 20 वर्षों तक किंग जॉर्ज पंचम की ये प्रतिमा वहीं मौजूद थी। बाद में वर्ष 1968 में इसे वहां से हटा लिया और फिर इसके बाद अलग अलग सरकारों के कार्यकाल में इस जगह पर महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने की कोशिशें की गईं लेकिन पचास सालों से ये खाली ही रही और अब यहां भारत की आज़ादी के महानायक नेताजी बोस की प्रतिमा शान से मौजूद है। उन्हीं नेताजी की, जिन्होने वर्षों तक अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम करके रखा और उनकी आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को कई बार परास्त भी किया।