सिर्फ खाना और आबादी बढ़ाना तो जानवर भी करते हैं: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

बैंगलोर। जनसंख्या विस्फोट को लेकर हो रही प्रतिक्रियाओं के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि जीवित रहना जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। सिर्फ खाना और आबादी बढ़ाना तो जानवर भी करते हैं। शक्तिशाली ही जीवित रहेगा, यह जंगल का कानून है। लेकिन दूसरों की रक्षा करना ही मनुष्य की निशानी है। इसके अलावा मोहन भागवत ने कई अन्य मुद्दों पर भी अपनी बात रखी।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कर्नाटक स्थित श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेंस के पहले दीक्षांत समारोह में शिरकत की थी। उन्होंने कहा कि ‘सिर्फ जिंदा रहना किसी ​मनुष्य के जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। सिर्फ खाना और आबादी बढ़ाना, ये काम तो जानवर भी कर लेते हैं। शक्तिशाली ही जीवित रहेगा, ये जंगल का नियम है। वहीं शक्तिशाली जब दूसरों की रक्षा करने लगे, ये मनुष्य होने की निशानी है।’ मोहन भागवत ने सीधे तौर पर तो जनसंख्या पर कुछ नहीं बोला, लेकिन जनसंख्या बढ़ाने और कुछ किएटिव काम करने का इंसान और जानवर में जो फर्क होता है, उसे बताते हुए उन्होंने बड़ा संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र की प्रक्रिया तुरंत शुरू नहीं हुई, बल्कि 1857 से शुरू हुई जिसे स्वामी विवेकानंद ने और आगे बढ़ाया। भागवत ने कहा कि अध्यात्म के जरिए ही श्रेष्ठता हासिल की जा सकती है क्योंकि विज्ञान अभी तक सृष्टि के स्रोत को नहीं समझ पाया है। विज्ञान ने अपने खंडित दृष्टिकोण से सबकुछ आजमाया और यह भी पाया कि सबकुछ आपस में जुड़ा हुआ है। हालांकि यह अभी तक कनेक्टिंग फैक्टर की खोज नहीं कर पाया है।

कुछ सालों में देश ने काफी प्रगति की
मोहन भागवत का मानना है कि पिछले कुछ सालों में देश ने काफी प्रगति की है, देश ने काफी विकास देखा है। इस बारे में वे कहते हैं कि इतिहास की बातों से सीखते हुए और भविष्य के विचारों को समझते हुए भारत ने पिछले कुछ सालों में अपना ठीक विकास किया है। अगर कोई 10-12 साल पहले ऐसा कहता, तो कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता।

उन्होंने यह भी कहा कि ‘सभी से प्रेम करो, सबकी सेवा करो’ की कहावत के पीछे सबकुछ दर्शन एक है। भागवत ने कहा कि अस्तित्व वह है जो विविध रूपों में प्रकट होता है। ये विविध रूप नाशवान हैं। प्रकृति सदा नाशवान है लेकिन प्रकृति का मुख्य स्रोत शाश्वत और चिरस्थायी है।

‘पर्यावरण और विकास के बीच हमेशा से ही विवाद’
भागवत ने कहा कि अगर आपकी भाषा अलग है तो विवाद है। अगर आपका धर्म अलग है तो विवाद है। आपका देश दूसरा है तो भी विवाद है। पर्यावरण और विकास के बीच तो हमेशा से ही विवाद रहा है। ऐसे में पिछले 1000 सालों में कुछ इसी तरह से ये दुनिया विकसित हुई है।

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