नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने FCRA के 2020 संशोधन की वैधता बरकरार रखी है। NGO द्वारा विदेशी चंदे धन की प्राप्ति और इस्तेमाल पर लगी नई शर्तें लागू रहेंगी। इसके अलावा नई शर्त के मुताबिक- SBI खाते में ही विदेशी धन प्राप्त करना अनिवार्य रहेगा।
एनजीओ को मिलने वाली विदेशी फंडिंग को सख्ती से विनियमित करने के लिए किए गए संशोधनों को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि विदेशी योगदान के कई प्राप्त करने वाले कई संगठनों ने इसका उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं किया था जिनके लिए उन्हें पंजीकृत किया गया था या अधिनियम के तहत पूर्व अनुमति दी गई थी। अदालत ने आगे कहा कि विदेशी फंडिंग पाने वाली कई संस्थाएं वैधानिक अनुपालनों का पालन करने और पूरा करने में असफल रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विदेशी योगदान के दुरुपयोग के पिछले अनुभव के कारण सख्त शासन आवश्यक हो गया था। विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार नहीं हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति के विदेशी योगदान से प्रभावित होने की संभावना का सिद्धांत विश्व स्तर पर मान्य है। न्यायालय ने कहा, “वास्तव में, गड़बड़ी को मिटाने के लिए सुधारात्मक व्यवस्था का सहारा लेने के लिए संसद को श्रेय दिया जाना चाहिए और कोई भी संप्रभु देश गड़बड़ी को बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
नोएल हार्पर और जीवन ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर याचिकाओं में संशोधनों को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि संशोधन ने विदेशी धन के उपयोग में गैर सरकारी संगठनों पर कठोर और अत्यधिक प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि विनय विनायक जोशी द्वारा दायर अन्य याचिका में FCRA की नई शर्तों का पालन करने के लिए MHA द्वारा गैर सरकारी संगठनों को दिए गए समय के विस्तार को चुनौती दी गई थी।
वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि विदेशी योगदान अगर अनियंत्रित हुआ तो राष्ट्र की संप्रभुता के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। विदेशी फंड को रेगुलेट करने की जरूरत है, नक्सली गतिविधि या देश को अस्थिर करने के लिए पैसा आ सकता है। IB के इनपुट भी होते हैं। विकास कार्यों के लिए आने वाले पैसे का इस्तेमाल नक्सलियों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है।