नई दिल्ली। चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने या फ्री वाली स्कीम का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है।
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें ऐसे राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने और उनके चुनाव चिंह जब्त करने की मांग की गई है, जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे कर रहे हैं।इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। यह वोटरों को प्रभावित करने और लुभाने का प्रयास है। इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है।याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे चुनाव मैदान में एक समान अवसर के सिद्धांत प्रभावित होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जनता के पैसे से मुफ्त में चीजें या सुविधाएं देने का चुनावी वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ एक्शन लेने को लेकर गाइडलाइंस जारी करने को कहा है। CJI एन वी रमना ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, इसमें कोई संदेह नहीं है। मुफ्त बजट नियमित बजट से परे जा रहा है. कई बार सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यह एक समान खेल का मैदान नहीं है। पार्टियां चुनाव जीतने के लिए और अधिक वादे करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के मुताबिक केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को तय करना है कि जो राजनीतिक पार्टियां चुनाव के दौरान जनता के पैसे से यानी पब्लिक फंड से मुफ्त घोषणाएं करती हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर गाइडलाइंस तय हों। मुफ्त घोषणाएं करे वाली पार्टियों का रजिस्ट्रेश रद्द किया जा सकता है और उनका चुनावी चिन्ह भी जब्त हो सकता है।