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12वीं कक्षा की परीक्षाओं के मुद्दे पर चर्चा के लिए केंद्रीय मंत्रियों, राज्य शिक्षा मंत्रियों और शिक्षा मंत्रालय के सचिवों के बीच 23 मई को बैठक हुई थी.
इस बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी. इसके अलावा शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी इसमें मौजूद थे.
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की भयावहता को देखते हुए 14 अप्रैल को सीबीएसई की 10वीं की परीक्षाएं रद्द कर दी गई थीं और 12वीं की परीक्षाएं स्थगित हो गई थीं
10वीं के नतीजों के लिए विशेष स्कीम अपनाने की घोषणा की गई थी. फ़िलहाल अब इस पर विचार हो रहा है कि 12वीं की परीक्षाएं आयोजित की जाएं या नहीं और अगर आयोजित की जाती हैं तो किस तरह.
पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान भी 12वीं की परीक्षाएं अधर में लटक गई थीं. कुछ विषयों की परीक्षाएं हो चुकी थीं और कुछ बाकी थीं. बाद में उन्हें रद्द कर असेसमेंट के आधार पर नंबर दे दिए गए.
इस बैठक में 12वीं की परीक्षाओं को लेकर दो विकल्प बताए गए हैं और राज्यों से इस पर 25 मई तक जवाब मांगा गया है.
परीक्षा के दो विकल्प
पहला- अधिसूचित केंद्रों पर परीक्षाएं
अधिसूचित केंद्रों पर परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी. मुख्य विषयों की परीक्षाएं होंगी जिनकी संख्या 19-20 के क़रीब हैं. कम ज़रूरी विषयों के लिए मुख्य विषयों में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा.
इस विकल्प के तहत परीक्षाओं से पहले एक महीने तक परीक्षा-पूर्व गतिविधियां होंगी. उसके बाद परीक्षाएं होने और परिणाम आने में दो महीने का समय लगेगा.
इसके आगे कम्पार्टमेंट परीक्षाओं में एक महीने का समय और लगेगा. इसके लिए तीन महीने के समय की ज़रूरत होगी और इस पूरी प्रक्रिया के सितंबर अंत तक चलने की संभावना है.
लेकिन, अगर परीक्षा के लिए माहौल सुरक्षित नहीं होता है तो ये तरीक़ा संभव नहीं होगा. इसमें परीक्षा अगस्त में हो सकती हैं.
दूसरा- स्कूल में परीक्षाएं
परीक्षाएं उसी स्कूल में आयोजित की जाएंगी जहां स्टूडेंट पढ़ते हैं. परीक्षा तीन घंटे की बजाए डेढ़ घंटे की ही होगी और प्रमुख विषयों की ही परीक्षाएं ली जाएंगी.
स्टूडेंट्स को एक भाषा और तीन चुने हुए विषयों की परीक्षा देनी होगी. इन विषयों में प्रदर्शन के आधार पर उनके पाँचवें और छठे विषयों का मूल्यांकन किया जाएगा.
इसमें सवाल ऑब्जेक्टिव टाइप होंगे यानि एक प्रश्न के कई उत्तर दिए जाएंगे जिनमें से सही जवाब चुनना होगा या बहुत छोटे जवाब देने होंगे.
परीक्षाएं जुलाई से अगस्त के बीच हो सकती हैं. जो स्टूडेंट्स कोरोना संबंधी समस्या के कारण परीक्षा नहीं दे पाएंगे, उन्हें आगे इसके लिए मौक़ा दिया जाएगा.
शिक्षा मंत्रालय ने इन विकल्पों के बारे में कहीं भी आधिकारिक तौर पर जानकारी नहीं दी है लेकिन अलग-अलग राज्यों के मंत्रियों ने कैमरे पर इनका ज़िक्र किया है.
इस बैठक के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, “आज बहुत सार्थक चर्चा रही. सभी राज्यों से बहुत महत्वपूर्ण सुझाव आए हैं. बैठक में कुछ राज्यों ने सुझाव देने के लिए कुछ समय माँगा है. उन्हें कहा गया है कि वो 25 मई तक अपने सुझाव दे दें ताकि जल्दी से जल्दी इस अनिश्चितता को दूर किया जा सके.’’
उन्होंने कहा, “जो भी परिस्थितियां होंगी उसमें आपकी सुरक्षा और भविष्य को ध्यान में रखकर एक जून को फ़ैसले के बारे में अवगत कराएंगे. जब भी हम इस बात की घोषणा करेंगे तो कम से कम आपको 15 दिनों का समय देंगे ताकि आप उस पर विचार कर सकें.”
विद्यार्थियों की सुरक्षा एवं अकादमिक हित और शिक्षा प्रणाली का सुचारू संचालन सुनिश्चित करने के लिए पूरा देश एकजुट हो गया है।
Entire country has come together to ensure the safety and academic welfare of the students and smooth functioning of the education system. pic.twitter.com/ezhtvZ3jLH
— Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) May 23, 2021
क्या है राज्यों की राय
इन विकल्पों को लेकर राज्यों ने अलग-अलग राय ज़ाहिर की है. कुछ राज्य परीक्षा कराने के पक्ष में हैं तो किसी राज्य ने ऑनलाइन परीक्षाओं का तरीक़ा अपनाया है तो कुछ परीक्षाएं रद्द करने की माँग कर रहे हैं.
ऐसे ही राज्यों में दिल्ली भी शामिल है. दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस कांफ्रेस में दिल्ली सरकार की राय बताई.
उन्होंने बताया, “देश में रोज़ ढाई लाख कोरोना के मामले आ रहे हैं. ऐसे में दिल्ली सरकार किसी भी तरह की परीक्षाएं कराए जाने के पक्ष में नहीं है. बच्चों का मूल्यांकन उसी तरह किया जा सकता है जैसा 10वीं कक्षा के लिए किया गया है.”
“पिछले दो-तीन या एक साल में जो अलग-अलग परीक्षाएं ली गई हैं, हिस्टॉरिकल रेफ़रेंस के आधार पर बच्चे का मूल्यांकन करें. अगर कोई बच्चा इस आधार पर मूल्यांकन नहीं चाहता तो हम समय आने पर उसकी परीक्षा कराएंगे और नंबरों को अपडेट कर देंगे.”
झारखंड भी 12वीं की परीक्षाएं कराने के पक्ष में नहीं है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘कोविड-19 की मौजूदा स्थिति को देखते हुए राज्य में 12वीं की परीक्षाएं कराना सही नहीं है. लोगों को लगता है कि परीक्षा के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग रखना संभव नहीं होगा और बच्चे इससे संक्रमित हो सकते हैं. ऑनलाइन परीक्षा का विकल्प भी हमारे सामने हैं. कोरोना महामारी के नियंत्रित होने पर ही परीक्षाओं की तारीख़ तय होनी चाहिए.’
छत्तीसगढ़ सरकार का फ़ैसला इन सभी विकल्पों से अलग है. राज्य सरकार ने ऑनलाइन परीक्षाएं आयोजित कराने का फ़ैसला लिया है. राज्य में 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं एक जून से आयोजित की जाएंगी.
इसके लिए विद्यार्थियों को प्रश्नपत्र और उत्तर पत्रिका दी जाएगी और उन्हें घर बैठे परीक्षा देनी होगी.
गोवा और महाराष्ट्र में हो रहा विचार
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि राज्य में 10वीं की परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं और 12वीं की परीक्षा के लिए अगले दो दिनों में फ़ैसला लिया जाएगा.
महाराष्ट्र में फ़िलहाल इसे लेकर कोई फ़ैसला नहीं हुआ है. इसी संबंध में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आने वाले दिनों में बैठक करेंगे.
महाराष्ट्र की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने कहा कि ‘हमने चर्चा की है कि विद्यार्थियों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है. हम सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि पिछला साल विद्यार्थियों के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा है. कोरोना वायरस की दूसरी लहर चल रही है और तीसरी लहर आने की आशंका है.’
परीक्षा के पक्ष में राज्य
कर्नाटक सरकार ने परीक्षाएं कराने के पक्ष में राय ज़ाहिर की है. कर्नाटक के प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार ने कहा कि बच्चों के भविष्य के लिए दूसरे साल की 12वीं की परीक्षाएं कराना ज़रूरी है. केंद्र के सुझावों के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए आने वाले दिनों में एक उचित फ़ैसला लिया जाएगा. परीक्षा आसान फ़ॉर्मेट में होनी चाहिए.
तमिलनाडु की सरकार ने भी परीक्षाएं आयोजित करने के पक्ष में राय दी है.
राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री अनबिल महेश ने बैठक में हिस्सा लेने के बाद कहा कि उच्च शिक्षा और बच्चों का करियर निर्धारित करने के लिए 12वीं की परीक्षाएं ज़रूरी हैं. सभी को पास करने का कोई मतलब नहीं है. सभी राज्य परीक्षाएं कराने के पक्ष में हैं और हम भी इसके समर्थन में हैं.
केरल सरकार ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो 12वीं की परीक्षाएं सुचारू और सुरक्षित रूप से कराने के लिए सभी उपाय अपनाने को तैयार है. केरल सरकार ने परीक्षाओं से पहले स्टूडेंट्स को वैक्सीन देने का भी सुझाव रखा है.
अन्य राज्यों की स्थिति
गुजरात सरकार ने सभी पक्षों से प्रतिक्रियाएं देने के लिए कहा है.
गुजरात के शिक्षा मंत्री भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा ने कहा, “हम प्रिंसिपल, स्कूलों और शिक्षाविदों से प्रतिक्रिया मिलने के बाद 12वीं की परीक्षाएं रोकने के फ़ैसले पर विचार करेंगे. परीक्षा का समय कम करने के विकल्प पर भी विचार किया जाएगा.”
ओडिशा भी इस संबंध में जल्द फ़ैसला लेगा. शिक्षा मंत्री समीर रंजन दाश ने कहा, “हम कोविड की स्थिति में सुधार के बाद परीक्षाएं आयोजित कर सकते हैं या परीक्षा को छोटा कर सकते हैं. तूफ़ान यास का ख़तरा चले जाने के बाद ही हम केंद्र के प्रस्तावों पर अंतिम फ़ैसला लेंगे.”
उत्तर प्रदेश सरकार भी जल्द इस पर अपनी राय ज़ाहिर कर सकती है. यूपी के उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने बताया कि 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षाओं को लेकर फ़ैसला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा.
उन्होंने ये भी कहा कि परीक्षाएं आयोजित करने के एक महीने के अंदर नतीजे घोषित किए जाएंगे.
पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल 10वीं और 12वीं दोनों की ही परीक्षाएं रद्द नहीं की गई हैं. राज्य सरकार कुछ दिनों में फ़ैसला ले सकती है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने 12वीं की परीक्षाएं कराने पर सवाल उठाया है.
उन्होंने ट्वीट किया, “इस लहर में पता चला है कि नए वैरिएंट का बच्चों पर ज़्यादा असर पड़ा है. बच्चों से अत्यधिक दबाव के बीच सुरक्षा के सभी साधन पहनकर घंटों बैठकर परीक्षा देने की उम्मीद करना असंवेदनशील और अनुचित है. कई बच्चे ऐसे होंगे जिनके परिवार में किसी को कोरोना हुआ हो. वो पहले से ही बहुत तनाव का सामना कर रहे हैं. परीक्षाएं कराने का कारण मुझे समझ नहीं आता. बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत ज़रूरी है.”
स्टूडेंट्स और माता-पिता में कोरोना का डर
परीक्षाओं को लेकर होने वाले किसी भी फ़ैसले से जिन बच्चों का भविष्य प्रभावित होना है हमने उनसे भी बात की.
दिल्ली के कामधेनु स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले गौतम शर्मा परीक्षाएं रद्द करने का समर्थन करते हैं.
गौतम शर्मा का कहना है, “जिस तरह से पूरे साल ऑनलाइन पढ़ाई हुई है और घरों में टेंशन चल रही है तो हम ठीक से तैयारी भी नहीं कर पाए हैं. वहीं, देश में कोरोना के मामले भी बहुत ज़्यादा आ रहे हैं. ऐसे में हमारे पेपर नहीं होने चाहिए. हमने जो मॉक टेस्ट, यूनिट टेस्ट और असाइनमेंट दिए हैं, उनके आधार पर ही नंबर देने चाहिए.”
लेकिन, इस तरीक़े में समस्या ये है कि बच्चों की तैयारी अंतिम परीक्षाओं के लिए होती है. उन्हें शुरुआत में ये नहीं पता था कि साल के बीच में होने वाले टेस्ट और असाइनमेंट के आधार पर परीक्षा का परिणाम तय होगा. ऐसे में संभव है कि सभी बच्चे इन टेस्ट और असाइनमेंट में बहुत अच्छा प्रदर्शन ना कर पाए हों लेकिन परीक्षा के लिए उनकी तैयारी पूरी हो.
गौतम कहते हैं कि वाक़ई ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने टेस्ट और असाइनमेंट को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन कोरोना के बीच पेपर देने जाने से तो यही विकल्प बेहतर है.
गौतम के पिता प्रदीप शर्मा भी इससे सहमति जताते हैं. वह कहते हैं, “बच्चों की पढ़ाई ज़रूरी है लेकिन अगर परीक्षा के बिना काम चल सकता है तो ज़रूर ये तरीक़ा अपनाएं. पेपर देने गए बच्चे को कोरोना हो गया तो कोई क्या कर पाएगा.”
हिमांशु बागड़ी दिल्ली के रोहिणी स्थित युवा शक्ति मॉडल स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ते हैं. वो भी परीक्षा देने के पक्ष में राय नहीं रखते.
हिमांशु का कहना है, “अगर हम पेपर देने स्कूल जाएंगे तो वहां दोस्तों से भी मिलेंगे. ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि वो हाथ मिलाएंगे और बातें करेंगे. इससे कोरोना फैल सकता है. हम पेपर तो दे देंगे लेकिन ख़ुद को सुरक्षित कैसे रखेंगे”
हिमांशु के पिता ने उन्हें क्लास के लिए स्कूल भेजने से भी मना कर दिया था. जब ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों विकल्प थे तब उन्होंने ऑनलाइन क्लास को प्राथमिकता दी थी.
उनकी मां पिंकी बागड़ी तो साफ़तौर पर कहती हैं कि वो अपने बेटे को पेपर देने नहीं भेजना चाहतीं. हालांकि, अगर फ़ैसला ले ही लिया जाएगा तो वो क्या कर सकती हैं.
कोरोना की दूसरी लहर में मची तबाही का डर लोगों में साफ़ दिखता है. वो ख़तरा उठाने की स्थिति में नहीं हैं.
स्कूल में अलग-अलग जगहों से आने वाले बच्चों का एक साथ आकर परीक्षाएं देना उनके डर को और बढ़ रहा है. हालांकि, सरकार भी इन सभी पक्षों को ध्यान में रखकर किसी नतीजे पर पहुँचने की कोशिश कर रही है. साभार-बी बी सी न्यूज़ हिंदी
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