मेरठ का अग्निकांड: धधकती आग में जलते लोग, कोई घुसा गोबर में तो कोई नहा रहा था रेत-मिट्टी से

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बताया जाता है कि मेला परिसर के पास पुलिस लाइन थी, जिसकी दूरी 200 मीटर से ज्यादा नहीं रही होगी. लेकिन वहां से मदद आने में इतना समय लग गया कि कई लोग तड़प-तड़प कर मर गए…

नई दिल्ली: बात 15 साल पहले की है. दिन था 10 अप्रैल 2006. मेरठ के विक्टोरिया पार्क में लगा कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स का भव्य मेला सफलतापूर्वक खत्म हो रहा था और सभी लोग स्टॉल्स से लोग अपना सामान समेटना शुरू कर चुके थे. तीन दिन तक लगे इस मेले में तीनों दिन बहुत भीड़ रही थी. मेले की सक्सेस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि अप्रैल की गर्मी में, मेले के समापन के 15 मिनट पहले भी वहां करीब 3000 लोग इकट्ठा थे. तभी उठती है एक चिंगारी और मंजर भयावह हो जाता है. और सुनाई देती है सिर्फ लोगों की चींखें…

एक चिंगारी ने ले ली थी कई जानें
अपना-अपना सामान समेट कर लोग घरों की तरफ निकलने ही वाले थे कि तभी वहां किसी वजह (शायद शॉर्ट सर्किट) से चिंगारी उठने लगी. लोहे के फ्रेम पर बड़ी-बड़ी चादरों से बने पंडालों में अचानक ही आग लग गई. चारों तरफ अफरा-तफरी मचने लगी. लोग चींखते-चिल्लाते इधर-उधर भागने लगे. इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, काले घने धुएं के साथ आग फैलती चली गई और इसके साथ ही एक शांति भरा दिन धरती पर नर्क के समान बन गया.

कई लोग आग के बीच में ही फंस गए
वहां मौजूद लोग, जो बच गए, वह बताते हैं कि प्लास्टिक का पंडाल ऊपर से पिघलता जा रहा था और लोगों के ऊपर आग गा गोला बन कर गिर रहा था. उसे बुझाने की वहां कोई भी सुविधा मौजूद नहीं थी. लोग अपनी जान बचाने मेन गेट की तरफ भाग रहे थे. कुछ खुशकिस्मती से निकल बाहर आ गए थे, लेकिन कई उस जगह ही फंस गए.

आग की लपटें शरीर पर लिए भागते रहे लोग
जो आग में लिपटे बाहर भाग आए थे, वह खुद को बचाने के लिए जमीन पर गिर गए, कुछ गोबर में घुस गए, कुछ बचने के लिए इधर-उधर गिरते फिर उठते भाग रहे थे. कोई शरीर पर आग की लपटें लिए कराहते हुए बस रेत और मिट्टी ढूंढने के लिए दौड़ रहा था. मेला परिसर के बाहर मौजूद लोग भी वहां इकट्ठा हुए. जिससे जितनी मदद हो सकती थी, सबने की. लेकिन कुछ के लिए बहुत देर हो चुकी थी.

मदद मिलने में हो बहुत देर हो गई
बताया जाता है कि मेला परिसर के पास पुलिस लाइन थी, जिसकी दूरी 200 मीटर से ज्यादा नहीं रही होगी. लेकिन वहां से मदद आने में इतना समय लग गया कि कई लोग तड़प-तड़प कर मर गए. जो बच पाए, उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. लेकिन उन अस्पतालों में भी बर्न मेडिकल सेंटर्स नहीं थे. जिन्हें बर्निंग में स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं दिया जा पा रहा था, उन्हें किसी और तरह से ट्रीट किया गया.

64 लोगों की गई थी जान
मेले की आग पर काबू पाया गया तो अंदर से कई जले हुए शव मिले. हालात ये थे कि अपनों को ही पहचान पाना नामुमकिन था. न जानें कितने परिवार उस दिन बर्बाद हो गए थे. इस वीभत्स आग में 64 लोगों की जान चली गई थी. 161 लोग घायल थे, जिनमें 81 लोगों की हालत बेहद गंभीर थी. कुछ दिन बातद गंभीर घायलों में से एक और ने दम तोड़ दिया और मौत का आंकड़ा 65 हो गया था.

सरकार और प्रशासन पर लोगों का फूटा था गुस्सा
घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी, लेकिन सरकार और प्रशासन की मदद से इसे रोका जा सकता था. पूरी तरह से नहीं तो इसे वीभत्स रूप लेने से ही सही, लेकिन रोका जा सकता था. उस समय जनता इतनी आक्रोशित थी कि तत्कालीन सरकार समाजवादी पार्टी, तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था. हर जगह विरोध शुरू हो गए थे. मलवा हटाने आए बुलडोजर से लोगों ने कलेक्ट्रेट में तोड़फोड़ कर दी थी. साभार-जी उत्तर प्रदेश उत्तराखंड

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