भारतीय अधिकारी चाहे आईपीएस हो, आईपीएस, पीसीएस, ऐसा लगता है कि उसे हर काम में नियम कानून बना कर स्थिति को हमेशा अपने कब्जे में रखने की ट्रेनिंग दी जाती है। यही हाल निचले स्तर पर तैनात अधिकारियों का भी है। काम चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, जब तक उसमें पचासों अड़ंगे डालने के बाद दसियों कागज न मांग लिए जाएं, सरकारी अधिकारियों को आत्म संतुष्टि नहीं होती है। हाँ उसी काम के लिए अगर कुछ दान-दक्षिणा का प्रबंध हो जाए या फिर किसी नेता का फोन आ जाए तो यही नियम प्रिय अधिकारी दुम हिलाते नज़र आते हैं।
कोरोना संक्रमितों की जरूरतों को देखते हुए प्रदेश में व्यावसायिक उपयोग के लिए ऑक्सिजन गैस सिलेंडरों की सप्लाई पर रोक लगा दी गई है। अब गाज़ियाबाद में भी ऑक्सिजन सिलेन्डर केवल अस्पतालों और कोरोना मरीजों को ही दिया जा रहा है। इस व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए जिला प्रशासन की ओर से गाज़ियाबाद के सभी ऑक्सिजन प्लांटों और डिस्ट्रीब्यूटरों के यहाँ अब ऐसे सरकारी बाबू बैठे हैं जिन्हें डिस्ट्रीब्यूशन का न तो कोई अनुभव है और न ही कोविद के मरीज के लिए ऑक्सिजन सिलेन्डर की जरूरत के बारे में कोई विशेष जानकारी।
इसका असर अब सिलेन्डर डिस्ट्रिब्यूशन के काम पर भी दिखाई देने लगा है। जो काम पहले कुछ मिनिट में हो जाता था अब उसके लिए घंटों का समय लग रहा है। सिलेन्डर भरवाने आ रहे अस्पतालों के प्रतिनिधियों और आम जनता इंतजार के साथ-साथ कई दस्तावेज़ भी दिखाने पड़ रहे हैं। डिस्ट्रिब्यूशन की निगरानी कर रहे सरकारी कर्मचारी इस काम को भी उसी गति से कर रहे हैं जिस गति से वे कोई दूसरा सरकारी काम कर रहे हैं। जिस तरह से खसरा-खतौनी ठीक करने लिए आए किसान को हर बार किसी-न-किसी कागज की वजह से लौटा दिया जाता है, उसकी प्रकार से ऑक्सिजन सिलेन्डर के लिए आने वालों को भी परेशान किया जा रहा है।
क्या है इलाज
बेहतर होगा की सत्ता में बैठे नेता और अधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीख लेकर जनता और व्यापारियों पर विश्वास करना सीखें। व्यापरियों को भी ऑक्सिजन व अन्य जीवन रक्षक दवाइयों का महत्व समझ कर और अधिक पारदर्शिता से काम करना होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब मरीज के परिजन फॉर्म भरने की औपचारिकता में लगे रहेंगे और मरीज ऑक्सिजन के अभाव में दम तोड़ देगा।
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