उत्तर बंगाल में भाजपा ने अपने ‘सोनार बांग्ला’ और टीएमसी ने ‘मां-माटी-मानुष’ विजन की कामयाबी के लिए चुनाव को ‘हिंदू बनाम मुसलमान’ का फुल मोड दे दिया है। इलाके में, इस मोड का यह बेसिक सूत्र है- पाकिस्तान+बांग्लादेश+घुसपैठ+सीएए+एनआरसी+जाति+उपजाति+लोकल प्राइड+संस्कृति+भाषा+गाली= 54 सीटें। पब्लिक को बहुत सहूलियत से चार्ज कर देने वाली इन्हीं सारी इमोशनल बातों की गूंज में बुनियादी दरकार की हवा भी है। पब्लिक तालियां बजा रही है। जाति से जाति को काटा जा रहा है, घुसपैठ को हिंदुत्व से बैलेंस किया जा रहा है। इसकी कामयाबी, टीएमसी से ज्यादा भाजपा के लिए फायदेमंद रहने वाली है।
पिछले लोकसभा चुनाव में कमोबेश यही हुआ था। यहां लोकसभा की 8 सीटें हैं। पिछले चुनाव में यहां टीएमसी का खाता नहीं खुला। भाजपा 7 और कांग्रेस 1 सीट जीती। तब उत्तर बंगाल की 54 विधानसभा सीटों में से 34 पर भाजपा की बढ़त रही थी। यह इलाका, टीएमसी के लिए शुरू से मुश्किल रहा है। उसे पिछले विधानसभा चुनाव (2016) में 26 और 2011 में 16 सीटें मिलीं थीं। फिलहाल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे से भाजपा उत्साहित हैं। यह जानते हुए भी कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न अलग-अलग होता है, टीएमसी ने इसलिए पूरी ताकत झोंक रखी है कि भाजपा को करारी शिकस्त दी जाए। बीते 3 चरणों के चुनाव का अच्छा-कड़वा अनुभव भी इन 54 सीटों पर बहुत तल्ख मुकाबला कराएगा। इसलिए उन सभी तरीकों को झोंका जा रहा है, जो वोटर को फौरन मोह ले।
भाजपा हो या टीएमसी कोई किसी से कम नहीं
भाजपा ने ममता बनर्जी के मुसलमानों को टीएमसी के लिए एकजुट होने की बात को, हिंदुओं की गोलबंदी का आधार बना लिया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहने लगे हैं, ‘अगर मैंने भाजपा के लिए हिंदुओं के एकजुट होने की बात कही होती, तो चुनाव आयोग मुझे नहीं बख्शता।’ भाजपा ने चुनाव आयोग से ममता की शिकायत की है। हालांकि ममता के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले शुभेंदु अधिकारी और भाजपा के कई दूसरे नेता बहुत पहले से कहते रहे हैं कि ‘अगर ममता जीतीं, तो बंगाल पाकिस्तान बन जाएगा; वह नया बांग्लादेश बनाना चाहती हैं।’
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने गोरखा समुदाय को गोरखपुर और महान संत गोरखनाथ से जोड़ा। भाजपाई, वोटरों को आगे की भरपूर सुरक्षा का भरोसा देने लगे हैं। यह सब श्री राम, श्रीकृष्ण, मां काली, श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर हत्यारी, अन्यायी, तोलाबाजी, सिंडिकेट, भाईपो (भतीजा) सर्विस टैक्स, गुंडा, दुर्योधन, दु:शासन, गुंडा, ठग, मक्कार, झूठा, कोबरा, बाघ जैसों विशेषणों के बाद का चरण है।
दरअसल, इस इलाके के मिजाज के हिसाब से इसकी दरकार भी थी। यह देश का इकलौता इलाका है, जहां बमुश्किल 250 किलोमीटर के दायरे में, एक राज्य (पश्चिम बंगाल) के भीतर दो अलग राज्यों की मांग गूंजी रही है। पहाड़ पर ‘गोरखालैंड’ और मैदान में ‘ग्रेटर कूचबिहार स्टेट’। यह मिजाज वस्तुत: जाति, संस्कृति, भाषा और स्थानीयता की प्राइड है। ऐसे दूसरे और भी मसलों, मनोभावों को संवेदनशीलता का पिक देकर पार्टियां, जीत के मोर्चे को फतह करने में जुटी हैं।
इमोशनल मुद्दों पर पार्टियों का फोकस
चाहे कूचबिहार का राजवंशी समुदाय हो, उनकी राजवंशी भाषा व यहां की कामतापुरी भाषा, मतुआ समुदाय व नाश्य शेख समुदाय या पहाड़ पर गोरखालैंड और 11 जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की बात, चौतरफा सिर्फ इमोशनल मुद्दे ही हैं। मुस्लिम बहुल मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी दिनाजपुर में सीएए, एनआरसी-सीएए बड़ा मुद्दा है। इसके केंद्र में बांग्लादेशी घुसपैठ है। भाजपाई, इसके विरोध के बूते अपने फायदे के ध्रुवीकरण पर सफल हैं। इसकी प्रतिक्रिया में टीएमसी भी कामयाब है। सिलीगुड़ी के लोगों की भावना है कि सिलीगुड़ी जिला बने। इसके लिए भरोसे की दोतरफा बौछार है। जीत का यह उपाय जानवरों सा जीवन जी रहे चाय बागान के मजदूरों पर भी असरदार है।साभार दैनिक भास्कर
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