एक गांव ऐसा भी:तमिलनाडु के इस गांव में 3 पीढ़ियों से नहीं है किसी कैंडिडेट को प्रचार की इजाजत, किसी घर में झंडा, पोस्टर- बैनर या लाउडस्पीकर भी नहीं लगता

पढ़िए दैनिक भास्कर की ये खबर…

मदुरै से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है ओथावीडू, जहां किसी भी प्रत्याशी को चुनाव प्रचार की इजाजत नहीं है।

तमिलनाडु में चुनाव प्रचार स्टारडम से भरपूर अपनी तड़क-भड़क के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इसी राज्य में मदुरै से सटा एक ऐसा गांव भी है, जहां की तीन पीढ़ियों ने देश के पहले चुनाव से लेकर अब तक किसी प्रत्याशी को गांव के अंदर प्रचार की इजाजत नहीं दी है। न तो किसी नेता को गांव-घर में झंडे ,बैनर, पोस्टर और कटआउट्स लगाने की इजाजत है, न ही तमिलनाडु की चुनाव संस्कृति का हिस्सा बन चुके कैश फॉर वोट के लिए यहां कोई जगह है। प्रत्याशी कोई भी हो, उसे गांव की सीमा से ही रवाना कर दिया जाता है।

ओथावीडू के दोनों तरफ पास के दूसरे गांवों में चुनावी प्रचार का शोर है, लेकिन यहां माहौल बिल्कुल शांत दिखता है।

मदुरै से लगभग 20 किलोमीटर दूर 200 घरों और गरीब 600 मतदाताओं वाला का छोटा सा गांव है ओथावीडू। गांव के ज्यादातर रहवासी 100 साल पहले तिरुमंगलम से आकर बसे 3 परिवारों के वंशज हैं। इस गांव के दोनों तरफ 1 किलोमीटर के दायरे में दूसरे गांव भी हैं। दोनों तरफ प्रचार का शोर भी है और पार्टियों के पोस्टर्स-बैनर्स और चुनाव चिह्नों से सजी दीवारें भी। प्रचार के दौरान जमकर ढोल-नगाड़े और पटाखे फोड़ने की परंपरा भी जारी है, लेकिन ओथावीडू गांव में घुसते ही माहौल बिल्कुल शांत नजर जाता है। गांव की सीमा पर बने मंदिर के पास थाली में हल्दी-पानी और पान पर कपूर जलाए महिलाएं खड़ी हैं।

गांव में बाहर ही प्रचार के लिए आने वाले नेताओं का स्वागत किया जाता है और वहीं से उन्हें वापस लौटा दिया जाता है।

आज यहां दिनाकरन की पार्टी एएमएमके के प्रत्याशी के पारंपरिक स्वागत की तैयारी है। प्रचार वाहन के गांव में घुसते ही लाउडस्पीकर बंद कर दिए गए हैं। रहवासी पांडी कहते हैं कि यह परंपरा यहां आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से चली आ रही है। तमिलनाडु में दाह संस्कार भी जश्न की तरह ढोल धमाकों और पटाखों के साथ करने की परंपरा है, लेकिन ओथावीडू में इसकी इजाजत नहीं है। फिल्म स्टार्स को लेकर दीवानगी तो यहां भी है, लेकिन फिल्मों के पोस्टर नहीं लगते। प्रचार से दूरी का कारण पूछने पर रंगनाथन कहते हैं- पार्टियों के प्रचार, भाषणबाजी से आपसी मनमुटाव बढ़ता है। गांव की एकता और सौहार्द हमारे लिए पहले स्थान पर है।

ओथावीडू एक छोटा सा गांव है जहां करीब 600 लोगों की आबादी रहती है।

इसलिए हम हर दल के प्रत्याशी का एक जैसा पारंपरिक ढंग से स्वागत करते हैं। गांव की सीमा पर ही अपनी समस्याएं बताते हैं, उनको सुनते हैं। हमारी यह परंपरा राजनीतिक दल भी जानते हैं और वे इसका सम्मान भी करते हैं। मुरुगन के घर में झांकने पर ‘कलाइगनर ( करुणानिधि) टीवी’ भी नजर आता है तो ‘अम्मा फेन’ भी। मुरुगन कहते हैं- हमें चुनाव से दिक्कत नहीं है। हम सब किसी न किसी पार्टी से भी जुड़े हैं, लेकिन प्रदर्शन नहीं करते, वोट के बदले पैसा की भी यहां इजाजत नहीं है। ऐसे ही कुछ गांव मदुरै सहित तेनी और विरुधुनगर जिले में भी हैं। जहां चुनाव के बाद हुए झगड़ों के चलते ग्रामीणों ने 80 के दशक से ऐसे ही प्रतिबंध लगाने का निर्णय ले रखा है।  साभार-दैनिक भास्कर

आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad

 हमारा गाजियाबाद के व्हाट्सअप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक करें

Exit mobile version