भारत में अंग्रेजी शासन केवल राजनीतिक और आर्थिक शोषण तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज की सांस्कृतिक और बौद्धिक नींव को कमजोर करने के लिए शिक्षा पद्धति का भी उपयोग किया। पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली, जो आत्मनिर्भरता, नैतिकता और सांस्कृतिक गौरव पर आधारित थी, को योजनाबद्ध तरीके से विकृत किया गया ताकि भारतीयों में आत्मसम्मान की भावना को समाप्त कर एक गुलाम मानसिकता विकसित की जा सके।
1. पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली का स्वरूप अंग्रेजों के आने से पहले, भारत में शिक्षा प्रणाली अत्यंत समृद्ध और सुव्यवस्थित थी:
गुरुकुल प्रणाली: शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं था, बल्कि व्यक्ति का नैतिक और सामाजिक विकास करना था। विविध विषय: धर्म, दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, कला, और शिल्प जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। सामुदायिक सहयोग: शिक्षा समाज और समुदायों के सहयोग से संचालित होती थी। 2. अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली को विकृत करने का षड्यंत्र
ब्रिटिश शासकों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को खत्म करने और अपने शासन को स्थायी बनाने के लिए कई कदम उठाए:
मैकाले की नीति और ‘मिनट्स ऑन एजुकेशन’ (1835)
लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को “बेकार” और “अप्रासंगिक” घोषित कर दिया। उसने कहा कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा भारतीयों को “आधुनिक और सभ्य” बनाएगी। इस नीति का उद्देश्य एक ऐसी “क्लर्क क्लास” तैयार करना था, जो अंग्रेजों की सेवा करे और मानसिक रूप से उनके अधीन रहे।
पारंपरिक संस्थानों का विनाश भारतीय पाठशालाओं और गुरुकुलों को आर्थिक सहायता बंद कर दी गई। तक्षशिला और नालंदा जैसे ऐतिहासिक शिक्षा केंद्र पहले ही नष्ट हो चुके थे, लेकिन अंग्रेजों ने बाकी बची संस्थाओं को भी हतोत्साहित किया।
अंग्रेजी भाषा का थोपना
भारतीय भाषाओं को “निम्न स्तरीय” और “असभ्य” बताया गया। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाया गया, जिससे भारतीयों को अपनी जड़ों से काट दिया गया।
भारतीय इतिहास का विकृतिकरण
भारतीय इतिहास को अंग्रेजों के नजरिए से पढ़ाया गया। भारतीय संस्कृति और परंपराओं को “पिछड़ा” और “अंधविश्वासी” बताया गया। आर्य आक्रमण जैसे सिद्धांत गढ़े गए ताकि भारतीय समाज को विभाजित किया जा सके।
गुलामी की मानसिकता का निर्माण
अंग्रेजों द्वारा शिक्षा में किए गए इन परिवर्तनों का उद्देश्य भारतीयों को मानसिक रूप से कमजोर करना था:
आत्मसम्मान की कमी: भारतीयों को उनकी संस्कृति और इतिहास के प्रति हीन भावना से भर दिया गया।
अंधभक्त वर्ग का निर्माण: एक ऐसा शिक्षित वर्ग तैयार किया गया जो अंग्रेजों के विचारों को श्रेष्ठ मानता था और भारतीय परंपराओं को तुच्छ समझता था।
वैचारिक गुलामी
भारतीयों को ऐसा महसूस कराया गया कि वे अंग्रेजी शासन के बिना प्रगति नहीं कर सकते।
स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय शिक्षा प्रणाली का पुनरुद्धार
महात्मा गांधी: गांधीजी ने “नई तालीम” के माध्यम से शिक्षा में स्वदेशी मॉडल की वकालत की।
स्वामी विवेकानंद: उन्होंने भारतीय संस्कृति और शिक्षा प्रणाली की महानता पर जोर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर शांतिनिकेतन के माध्यम से एक स्वतंत्र और रचनात्मक शिक्षा प्रणाली का उदाहरण प्रस्तुत किया।
आधुनिक भारत में शिक्षा प्रणाली की चुनौतियां
औपनिवेशिक मानसिकता का प्रभाव
आज भी, हमारी शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी सोच का अत्यधिक प्रभाव है। भारतीय संस्कृति की उपेक्षा: भारतीय इतिहास और संस्कृति को पाठ्यक्रम में उचित स्थान नहीं दिया गया है।
स्मृति आधारित शिक्षा: भारतीय शिक्षा प्रणाली रचनात्मकता और नैतिकता के बजाय अंकों और डिग्री पर केंद्रित हो गई है।
समाधान और आगे की राह
भारत को एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हो और समग्र विकास पर बल दे:
मातृभाषा आधारित शिक्षा: बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना।
भारतीय इतिहास का सही पाठ: पाठ्यक्रम में भारतीय परंपराओं और इतिहास का वास्तविक और गौरवपूर्ण चित्रण।
नैतिक और व्यावसायिक शिक्षा: शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार देना नहीं, बल्कि एक अच्छे नागरिक का निर्माण करना होना चाहिए।
अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को विकृत करके भारतीयों को मानसिक गुलाम बनाने का प्रयास किया। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद भी हमारी शिक्षा प्रणाली पर औपनिवेशिक छाया बनी हुई है। आवश्यकता है कि हम अपनी सांस्कृतिक और शैक्षिक विरासत को पुनः खोजें और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करें जो भारतीयों को आत्मनिर्भर, नैतिक और विश्वगुरु बनने के लिए प्रेरित करे।