काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल, हर साल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। हालांकि, यहां की वीआईपी दर्शन प्रक्रिया को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। पंडों द्वारा अनौपचारिक रूप से शुल्क लेना और धन का मंदिर प्रशासन के बजाय व्यक्तिगत उपयोग में जाना एक बड़ी समस्या है। इस लेख में वीआईपी दर्शन प्रक्रिया में सुधार, धन के सही उपयोग, और हाल की सरकारी पहलों पर चर्चा की गई है।
वर्तमान व्यवस्था और चुनौतियाँ वीआईपी दर्शन व्यवस्था पंडों की भूमिका
श्रद्धालुओं को पंडों की मदद से विशेष दर्शन का अवसर मिलता है, जिसमें भारी शुल्क लिया जाता है। यह शुल्क 500 से 5000 रुपये तक हो सकता है, जो मंदिर प्रशासन को नहीं मिलता। अनियमितता और भेदभाव:
वीआईपी दर्शन में विशेषाधिकार मिलता है, जबकि आम श्रद्धालुओं को लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ता है। यह व्यवस्था आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के श्रद्धालुओं के लिए असमानता पैदा करती है। अपर्याप्त सुविधाएँ
अनुमानित 2 करोड़ श्रद्धालु हर साल मंदिर आते हैं, लेकिन शौचालय, पेयजल और विश्राम क्षेत्र जैसी सुविधाएँ पर्याप्त नहीं हैं। भीड़ प्रबंधन के अभाव में श्रद्धालुओं को अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा हाल में किए गए सुधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके परिसर का कायाकल्प किया गया है।
काशी विश्वनाथ धाम परियोजना विशाल परिसर का निर्माण
लगभग 5 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैले इस धाम को 800 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया गया। इस परियोजना के तहत 40 से अधिक पुराने मंदिरों को पुनः स्थापित किया गया। श्रद्धालु सुविधाएँ
मंदिर परिसर में 24 घंटे शुद्ध पेयजल, स्वच्छ शौचालय, और बैठने की जगह बनाई गई। घाट से सीधे मंदिर तक एक कॉरिडोर का निर्माण किया गया, जिससे दर्शन की प्रक्रिया सरल हो गई। भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा
सीसीटीवी कैमरे और आधुनिक सुरक्षा उपकरण लगाए गए। श्रद्धालुओं के लिए एक डिजिटल सूचना केंद्र और सहायता केंद्र की स्थापना की गई। ट्रांसपोर्ट सुविधाएँ
मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण और ई-रिक्शा सेवा की शुरुआत की गई। सुधार के लिए सुझाव और फैक्ट्स धन के उपयोग को मंदिर प्रशासन के अंतर्गत लाना:
यदि वीआईपी दर्शन शुल्क का 100% मंदिर प्रशासन को मिले, तो हर साल लगभग 50-100 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया जा सकता है। यह धन मंदिर की सुविधाओं और सामाजिक कल्याण परियोजनाओं में लगाया जा सकता है। ऑनलाइन बुकिंग और पारदर्शिता
वीआईपी दर्शन के लिए QR कोड और ऑनलाइन बुकिंग सिस्टम लागू किया जाए। यह प्रक्रिया श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक होगी और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी। श्रद्धालु परक सुधार
सीनियर सिटीजन और दिव्यांग श्रद्धालुओं के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था हो। मंदिर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए स्लॉट बुकिंग सिस्टम लागू किया जा सकता है। पंडों की भूमिका का पुनर्गठन
पंडों को मंदिर प्रशासन का हिस्सा बनाकर उनकी आजीविका को नियमित किया जा सकता है। उन्हें निश्चित वेतन और भत्ते दिए जा सकते हैं। धन के सही उपयोग से संभावित विकास श्रद्धालु सुविधाओं का विकास
अधिक स्वच्छ शौचालय, विश्राम कक्ष, और मुफ्त पेयजल की व्यवस्था की जा सकती है। विशेषकर गर्मी और भीड़ के दौरान छाया और वेंटिलेशन के प्रावधान। पर्यावरणीय सुधार
गंगा घाटों की सफाई के लिए विशेष अभियान। मंदिर परिसर में वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र का विकास। सामाजिक पहल
गरीब श्रद्धालुओं को मुफ्त दर्शन का अवसर। स्थानीय कारीगरों और दुकानदारों के लिए नए रोजगार अवसर। प्रगतिशील दृष्टिकोण सामाजिक समानता
वीआईपी और सामान्य दर्शन के बीच भेदभाव को समाप्त करना। सभी श्रद्धालुओं को एक समान अनुभव देने की दिशा में प्रयास। आधुनिक तकनीक का उपयोग
डिजिटल भुगतान और मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से दर्शन प्रक्रिया को तेज और सरल बनाना। पर्यटन और धर्म का संतुलन
काशी विश्वनाथ को एक धार्मिक केंद्र के साथ-साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना। विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष गाइड सेवाएँ।
काशी विश्वनाथ मंदिर में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था में सुधार न केवल श्रद्धालुओं के अनुभव को बेहतर बनाएगा, बल्कि इससे मंदिर प्रशासन को वित्तीय और सामाजिक लाभ भी होगा। सरकार ने काशी विश्वनाथ धाम परियोजना के तहत जो सुधार किए हैं, वे एक सराहनीय कदम हैं। अब समय है कि वीआईपी दर्शन व्यवस्था को पारदर्शी और श्रद्धालु परक बनाया जाए।
“काशी केवल शिव का धाम नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, सांस्कृतिक समृद्धि और प्रगतिशील सोच का प्रतीक भी है। इसे हर श्रद्धालु के लिए आनंददायक और पवित्र अनुभव बनाना हमारा कर्तव्य है।