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देश लिए जान कुर्बान करने वाले शहीदों की विधवाओं में से कई को सेना में नौकरी नहीं मिल रही, जबकि उन्हें नौकरी देने का ऑफर है और वे रक्षा सेवाओं से लेकर स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड तक की कठिन परीक्षाएं पास कर चुकी हैं। यह खुलासा संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट से हुआ है।
पद खाली होने के बाद भी नौकरी न मिलना चौंकाने वाला
कहा जाता है कि वैकेंसी नहीं हैं। संसदीय समिति ने कहा कि सेना में अधिकारियों के स्तर पर कई पद खाली हैं और ऐसे में शहीदों की उन विधवाओं को नौकरी नहीं देना चौंकाने वाला है। वह भी तब जब उन्होंने परीक्षाएं पास कर ली हैं।
वैकेंसी नहीं तो परीक्षा क्यों?
समिति ने कहा कि देश के लिए शहादत दे चुके जवानों की पत्नियां पहले से ही जीवन की अग्निपरीक्षा से गुजर रही होती हैं। उसके साथ ऐसी नाइंसाफी कतई नहीं की जानी चाहिए। समिति ने पूछा कि वैकेंसी नहीं होती, तो शहीद की विधवा को परीक्षा में बैठने की पेशकश ही क्यों की जाती है? शहीद की पत्नी अगर ग्रेजुएट है और उम्र 35 साल से कम है तो उन्हें सेना में कमिशन देने की पेशकश की जाती है।
शहीद की पत्नी ने लिखा सेनाध्यक्ष की पत्नी को पत्र
सेना के एक शहीद अफसर की पत्नी ने सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की पत्नी वीणा नरवणे को इसी महीने पत्र लिखा है। इसमें शहीद की विधवा ने बताया है कि किस तरह उन्हें दर-दर भटकाया जा रहा है। पत्र में लिखा है कि मेरे पति को गए 100 दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन अब भी वे पेंशन के लिए दस्तावेजों की मांग पूरी नहीं कर पाई हैं।
महिला को PCDA/CDA/ MP-5, LPC जैसे दफ्तरों में कागज जमा कराने होते हैं। सैनिक जिला बोर्ड उसे फिजिकली बुलाता है और निशानी अंगूठा लगवाता है। इतना करने के बावजूद पता चलता है कि अभी कई पेपर बाकी रह गए हैं।साभार-दैनिक भास्कर
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