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उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अभी अपने विवादित बयान की वजह से चर्चा में हैं। उन्होंने हाल ही में ‘फटी जींस’ पहनने को लेकर कॉमेंट किया था
कुछ दिनों पहले जब उत्तराखंड के भाजपा विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री के तौर पर तीरथ सिंह रावत का नाम सामने आया था, तब अच्छे-अच्छे राजनीतिक विश्लेषक भी चौंक गए थे। क्योंकि नए मुख्यमंत्री के लिए जिन लोगों के नाम चल रहे थे, उनमें तीरथ का नाम चर्चा में भी नहीं था। लेकिन, मुख्यमंत्री बनने के बाद महिलाओं के फटी जींस पहनने पर दिए गए विवादित बयान के बाद वह पूरे देश में चर्चा में है।
अपने बेतुके बोलों के लिए सोशल मीडिया पर निशाना बन रहे CM तीरथ पार्टी में बेहद संयमित और वफादार कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। तीरथ ने विद्यार्थी परिषद के दिनों की अपनी सहयोगी और मिस मेरठ रहीं रश्मी से इंटरकास्ट मैरेज की है। रश्मी के मुताबिक, ‘तीरथ जी बेहद सादगी पसंद और खुले विचार के इंसान हैं।’ मौजूदा विवाद के बारे में वे कहती हैं कि मीडिया उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है। तो इसी कंट्रोवर्सी के बहाने तीरथ सिंह रावत की पॉलिटिकल-सोशल और पर्सनल लाइफ पर एक नजर डालते हैं…
20 साल की उम्र में ही बन गए थे संघ के प्रांत प्रचारक
तीरथ सिंह रावत का जन्म पौड़ी के सीरों गांव में कलम सिंह रावत और गौरा देवी के घर 9 अप्रैल,1964 को हुआ। भाइयों में सबसे छोटे तीरथ किशोरावस्था में ही RSS से जुड़ गए थे। अपने कस्बे जहरीखाल में शाखा लगाते-लगाते वे महज 20 साल की उम्र में संघ के प्रांत प्रचारक बन गए। 1983 से 1988 तक संघ के प्रचारक के तौर पर काम करने के बाद उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में भेज दिया गया।
समाजशास्त्र से MA तीरथ सिंह रावत 1992 में हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल के छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद वह ABVP के प्रदेश उपाध्यक्ष बने और उनके कदम सक्रिय संसदीय राजनीति की ओर बढ़ गए। इस दौरान वह राम मंदिर से लेकर उत्तराखंड आंदोलन में भी सक्रिय रहे। राम मंदिर आंदोलन के दौरान तीरथ को दो महीने जेल में भी रहना पड़ा था।
1997 में MLC बने, 2000 में मंत्री
छात्र राजनीति से संसदीय राजनीति में आने के बाद तीरथ रावत ने भुवन चंद्र खूंडूरी को अपना गुरु माना। खंडूरी उस समय पौड़ी-गढ़वाल सीट से चुनाव लड़ते थे और तीरथ उनके चुनाव के संयोजक हुआ करते थे। तीरथ को जल्द ही इसका इनाम भी मिला। 1997 में अटल सरकार में मंत्री खंडूरी ने उन्हें उत्तर प्रदेश MLC का टिकट दिलाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। 1997 में तीरथ विधान परिषद पहुंचे और 2000 में जब उत्तराखंड अलग राज्य बना तो खंडूरी की पैरवी पर ही वे राज्य के पहले शिक्षा मंत्री बने।
धीरे-धीरे तीरथ खुद भी सियासत में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे। यहां तक कि 2012 के विधानसभा चुनाव में जब मुख्यमंत्री रहे खूंडूरी समेत भाजपा के कई बड़े नेता चुनाव हार गए थे, तब भी चौबट्टाखाल विधानसभा से तीरथ ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2013 में उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चुने गए, लेकिन 2015 में उन्हें हटा दिया गया।
2017 में टिकट नहीं मिला था, चार साल बाद पूरे राज्य की कमान मिली
चौबट्टाखाल विधानसभा से सिटिंग विधायक होने के बावजूद 2017 में उनका टिकट काट दिया गया क्योंकि उत्तरांखड के दिग्गज नेता सतपाल महाराज भाजपा में आ गए थे और इस सीट पर उनका दावा था। तीरथ की पत्नी रश्मि कहती हैं, ‘2017 में जब उनका टिकट काट दिया गया था तो परिवार को बहुत बुरा लगा था, पर तीरथ जी गंभीर व्यक्तित्व के हैं और वे कुछ नहीं बोले। उनकी क्षमताओं का ही नतीजा था कि दो साल बाद वे सांसदी का चुनाव लड़े और जीते।’
2019 के लोकसभा चुनाव में पौड़ी गढ़वाल से भाजपा का प्रत्याशी तीरथ का मुकाबला अपने गुरु और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी से था। इस चुनाव में तीरथ 2 लाख 85 हजार वोटों से जीते। 2017 में जिन तीरथ का पार्टी ने टिकट काट दिया था, 2021 में उसी को पूरे राज्य की कमान सौंप दी गई।
साधारण जीवन पसंद, दिखावे से दूर रहते हैं तीरथ
तीरथ की पत्नी रश्मी डीएवी कॉलेज देहरादून में साइकोलॉजी की टीचर हैं। वे कहती हैं, ‘उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी जी को गुरु और अटल जी को आदर्श मानते हैं। उन्हें साधारण सा जीवन जीना पसंद है। वह न तो कभी दिखावे में पड़ते हैं और न कभी पैसे के पीछे भागते हैं। जब वे शिक्षा मंत्री थे, तब भी मैं पांच हजार की नौकरी करने डोईवाला जाती थी। मुझे लगता था कि तीरथ जी का कॅरियर राजनीति में है और अप एंड डाउन लगे रहेंगे। इसलिए, मैं नौकरी करती रही।’
दिलचस्प है शादी का किस्सा
तीरथ की ससुराल यूपी के मेरठ शहर की है। उनकी शादी का किस्सा भी काफी मजेदार है। रश्मी मेरठ में ABVP से जुड़ी थी और तीरथ ने उन्हें गाजियाबाद की एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में देखा था। उस समय तीरथ विद्यार्थी परिषद में बड़े पद पर थे। बाद में तीरथ ने किसी के जरिए रश्मी के घर शादी का प्रस्ताव भिजवाया। लेकिन, रश्मी के घरवालों ने किसी राजनीतिक बैकग्राउंड वाले लड़के से शादी करने से इंकार कर दिया। काफी दिनों तक बात अटकी रही।
तीरथ 1997 में MLC बन गए। इसके बाद फिर उन्होंने रश्मी के परिवार के पास विवाह प्रस्ताव भेजा। इसके बाद रश्मी के परिवार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 1998 में तीरथ और रश्मी की शादी हो गई।साभार-दैनिक भास्कर
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