“रुकिए मैं ऊपर के कमरे में जाकर आपसे बात करती हूं. यहां बच्चे हैं. उनके आगे इमोशनल नहीं होती हूं… अगर रोना छूट गया तो अच्छा नहीं लगेगा.”
तेज़ क़दमों की आहट मोबाइल पर साफ़ सुनाई दे रही थी. बमुश्किल दस पंद्रह सीढ़ियां चढ़ी होंगी उन्होंने फिर दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी.
“हां अब बताइए, कमरा बंद कर लिया है तो अब आराम से बात कर सकेंगे. बच्चों के आगे मज़बूत बने रहना पड़ता है. उनको पता है कि उनके पापा नहीं रहे लेकिन मुझे रोते देखें ये नहीं चाहती.”
दिल्ली दंगों में ड्यूटी के दौरान मारे गए हेड-कॉन्सटेबल रतन लाल की पत्नी पूनम फ़िलहाल अपने तीन बच्चों (परी, कनक और राम) के साथ जयपुर में रह रही हैं.बंद कमरे में अकेली बैठी पूनम बोलती है, “हां, अब बात कर सकते हैं. दो दिन हुए मेरी सालगिरह की तारीख़ बीती है और सोचिए मुझे मेरे पति के बारे में बात करनी है, वो जो अब नहीं रहे.”
“पिछले साल 22 फ़रवरी को हमने साथ में सालगिरह मनायी थी. उसके अगले दिन इतवार था. परी के पापा की छुट्टी थी तो हम लोग घर पर ही थे.”
पूनम ने बताया कि वो अपने पति रतनलाल को परी के पापा ही कहकर बुलाती थीं.
घटना वाले दिन को याद करते हुए वो कहती हैं, “उस समय बच्चों की परीक्षा चल रही थी तो बच्चे जल्दी उठकर तैयार हो गए थे. परी के पापा सो रहे थे तो उन्हें सोने ही दिया और ख़ुद बच्चों को स्कूल बस में बिठाकर आ गई. घर आकर नाश्ता बनाया और टीवी खोली और बस यही.. “
“…टीवी पर दिखा रहे थे कि दंगा बढ़ गया है. टीवी की आवाज़ से उनकी नींद खुल गई. वो नाराज़ भी हुए कि जगाया नहीं. फिर फ़टाफ़ट से उठे और बाथरूम चले गए.”
पूनम बताती है, “वो सोमवार का दिन था तो उनका व्रत भी था. सेब काटकर उनको दिये और वो सिर्फ़ सेब खाकर ही ड्यूटी पर चल गए.”
पूनम का कहना है कि रतनलाल को उस दिन उनके थाने से कोई फ़ोन नहीं आया था. जो रतनलाल रोज़ाना 11 बजे तक थाने जाते थे वो उस दिन क़रीब सवा आठ ही बजे यूनिफॉर्म पहनकर निकल गए थे.
पूनम बताती हैं, “बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि मामला इतना बड़ा है. इससे पहले भी सीएए के प्रदर्शन के दौरान उन्हें हाथ में चोट लगी थी लेकिन लगा था कि पुलिस में हैं तो ये बहुत मामूली है पर वो दिन मामूली नहीं था. दुनिया ही पलट गई उस दिन…”
पूनम को रतनलाल के मारे जाने की ख़बर पड़ोसियों से मिली थी.
वो कहती हैं, “यहीं बगल में एक परिवार हैं, उनके आदमी भी पुलिस में ही हैं. उनको शायद ख़बर लग गई थी लेकिन जब वो घर आईं तो कुछ कहा नहीं. बस बोलीं कि रतन को फ़ोन लगाओ. फिर थोड़ी देर बाद एक अंकल आए और टीवी देखने को कहा और बस…”
गोकुलपुरी थाने में तैनात रतनलाल की दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े में भड़के दंगों में 24 फरवरी को मौत हो गई थी.
उनकी पत्नी पूमन का कहना है कि शुरुआत में उन्हें बताया गया कि रतनलाल के सिर पर पत्थर लगे हैं और इस वजह से उन्हें काफ़ी चोट आई है तो वो बेहोश हो गए हैं और जीटीबी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. लेकिन 25 फ़रवरी यानी घटना के अगले दिन सुबह क़रीब दस-ग्यारह बजे के आस-पास डॉक्टरों ने पुलिस को बताया कि उन्हें गोली भी लगी है.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए वो कहती हैं कि उन्हें गोली लगी थी. गोली बाएं कंधे से होती हुई दाएं कंधे में फंस गई थी. इसी वजह से उनकी मौत हो गई.
पूनम कहती हैं उन्हें अभी तक वो वर्दी नहीं मिली है जो रतनलाल ने उस आख़िरी दिन पहनी थी.
पूनम कहती हैं “मैं किसी को कुछ बता तो नहीं सकती हूं लेकिन इतना ज़रूर है कि अब पहले जैसा कुछ नहीं. लोग फ़ोन करते हैं लेकिन हाल-चाल बाद में पूछते हैं पहले ये जानना चाहते हैं कि कितने पैसे मिले. कितने की आर्थिक सहायता मिली…लोगों को पैसे जानने होते हैं. हालचाल तो दूसरी बात.”
वो कहती हैं “हमारी अरेंज मैरिज हुई थी. वो सीकर के रहने वाले थे और मैं जयपुर की. तीन भाइयों में सबसे बड़े थे वो. पहले भाई-बहनों को ठीक किया और बाद में मुझे भी पढ़ाया. उन्होंने ही मुझे बीएड करवाया. ख़ुद लेकर जाते थे परीक्षा दिलाने. जब तक परीक्षा लिखती थी वो बच्चों को लेकर बाहर खड़े रहते थे. बहुत साधारण से थे. दाल-रोटी खाने वाले आदमी.”
पूनम कहती हैं, “एक साल कैसे बीता पूछेंगी तो इतना कहूंगी कि जो आज आपको बता रही हूं वो हर समय दिमाग़ में चलता रहता है. कैसे चोट लगी. कैसे गोली लगी. क्यों लगी. कितना दर्द हुआ होगा. काश! कि ये सब नहीं होता. बस कुछ बातें हैं जो कभी दिमाग़ से नहीं निकलतीं.”
दिल्ली सरकार की ओर से रतनलाल के नाम पर परिवार को आर्थिक सहायता मिली है लेकिन केंद्र सरकार की ओर से अभी तक किसी तरह की सहायता नहीं मिली है.
पूनम बताती हैं कि उस वक़्त उन्हें नौकरी का आश्वासन भी दिया गया था लेकिन अभी तक उस सिलसिले में कुछ हुआ नहीं है. हालांकि उन्हें पेंशन मिल रही है.
पूनम बताती हैं कि रतनलाल को उनके गांव में बीते साल 26 फ़रवरी को शहीद का दर्जा देने की बात कही गई थी. सीकर के सांसद ने रतनलाल को शहीद का दर्जा मिलने की बात बतायी थी लेकिन अभी तक उन्हें कोई प्रमाण-पत्र नहीं मिला है.
पूनम को सिर्फ़ एक बात का अफ़सोस है कि अपने थाने के जिन आला अधिकारियों के साथ खड़े होने का सोचकर रतनलाल बिना बुलाये भी ड्यूटी पर चले गए थे उन्होंने उनके मरने के बाद उनकी पत्नी यानी पूनम को कभी फ़ोन नहीं किया.
पूनम कहती हैं, “वे मीडिया में इंटरव्यू तो देते हैं लेकिन मुझे एक सांत्वना का फ़ोन तक नहीं किया.
दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाक़े में भड़के दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी. इन्हीं 53 लोगों में से एक नाम अंकित शर्मा का भी था.
हो सकता है नाम से आप उन्हें याद ना कर पा रहे हों लेकिन जिस हालत में उनका शव 26 फरवरी को मिला, वो शायद दिल्ली दंगों की सबसे बुरी तस्वीर में से एक है.
आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा का शव 26 फ़रवरी को चांदबाग़ के नाले से मिला था. वो एक रात पहले से ही यानी 25 फ़रवरी से ही लापता थे. दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है, उसके मुताबिक़, शव पर 51 जख़्म थे. उन पर धारदार हथियार से वार किया गया था.
वहीं अंकित का परिवार अब छह महीने पहले खजूरी ख़ास से ग़ाज़ियाबाद के एक इलाक़े में शिफ़्ट कर चुका है.
अंकित के भाई अंकुर शर्मा बताते हैं, “कोई सोच भी नहीं सकता है कि कैसा लगता था जब हम घर से बाहर निकलते थे और वो नाला पार करते थे. हर बार अंकित याद आ जाता था.जिस नाले की ओर लोग घिन्न से देखें नहीं, जिसके आगे से नाक बंद करके निकलते हों, उसमें मेरे भाई को मारकर फेंक दिया.”
अंकुर बताते हैं, “हम लोग वहां रह नहीं पा रहे थे. सोचिए सालों से जिस घर में हों. जो हमारा घर हो, उसे छोड़ने की वजह ज़रूर बहुत बड़ी होगी. वो नाला और जिस तरह के वीडियो अंकित के आए, उसके बाद वहां रह पाना मुश्किल हो गया था. इसलिए हम यहां गए. किराए के मक़ान में.”
पुलिस जहां अंकित के शरीर पर 51 जख़्म की बात करती है वहीं बीते साल 11 मार्च को केंद्रीय गृह-मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अंकित शर्मा के शरीर पर 400 घावों के होने की बात कही थी.
अंकुर शर्मा घावों के साथ तेज़ाब से चेहरा ख़राब कर देने और छाती जला देने का भी आरोप लगाते हैं.
उस दिन को याद करते हुए अंकुर कहते हैं, “आपने वो वीडियो देखा जिसमें भाई को मारने के बाद नाले में डाल रहे हैं. हमने देखा है. पूरे परिवार ने देखा. उसे बहुत बुरे से मार डाला.”
22 साल की उम्र में नौकरी शुरू करने वाले अंकित तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे. उनकी बहन अभी पोस्ट-ग्रेजुएशन कर रही हैं और बड़ा भाई यानी अंकुर सरकारी नौकरी की तैयारी.