दिल्ली दंगों का एक साल:’मेरी दुकान में कभी दस लड़के काम किया करते थे, आज ये हालात हैं कि मैं खुद उधार मांग-मांग कर किसी तरह गुजारा कर रहा हूं’

दिल्ली के भजनपुरा चौक पर स्थित इस मजार में दिल्ली दंगों के दौरान तोड़फोड़ हुई थी। दंगे शांत होने के कुछ समय बाद मरम्मत का काम शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसे स्थानीय प्रशासन ने रोक दिया। फिलहाल लोग टूटी हुई दीवारों और उजड़ी हुई छत वाली मजार पर ही चादर चढ़ाने पहुंचते हैं।

  • एक साल पहले हुए दिल्ली दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे
  • दंगों के आरोप में पुलिस ने 755 मुकदमे दर्ज किए और 1753 लोगों को गिरफ्तार किया था

दंगों की आग में झुलसे हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली को भले एक साल पूरा हो चुका है, लेकिन इसके निशान आज भी लोगों की यादों और जिंदगियों में ही नहीं बल्कि इस इलाके की इमारतों और सड़कों पर भी साफ देखे जा सकते हैं। भजनपुरा चौक के बीचों-बीच स्थित जिस मजार को दंगाइयों ने जलाकर खंडहर बना दिया था, वह कमोबेश आज भी वैसी ही है। दंगों के कुछ समय बाद इसकी मरम्मत का काम शुरू तो हुआ था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने बीच में ही इसे रुकवा दिया। इसकी क्या वजह रही, इसका सटीक जवाब किसी के पास नहीं है। तब से टूटी हुई दीवारों और उजड़ी हुई छत के नीचे ही लोग इस मजार पर चादर चढ़ाने पहुंचते हैं।

पिछले साल 24 फरवरी को इस इलाके में तनाव शुरू हुआ और अगले सात दिनों तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा होती रही। दंगों को एक साल बीत चुका है, लेकिन इस इलाके में रह रहे लोगों की जिंदगी अभी तक पटरी पर नहीं लौटी है।

इस मजार के ठीक सामने ही भजनपुरा चौक पर ‘आजाद चिकन कॉर्नर’ हुआ करता था। इसके मालिक मोहम्मद आजाद कहते हैं, ‘मेरी दुकान में कभी दस लड़के काम किया करते थे। आज स्थिति ये आ गई है कि मैं खुद ही उधार मांग-मांग कर किसी तरह गुजारा कर रहा हूं। मेरी पूरी दुकान और घर जलकर राख हो गए। एक कार और एक बाइक भी उन दंगों में जल गई। करीब 40 लाख का नुकसान हुआ, लेकिन सरकार की तरफ से सिर्फ 1.5 लाख का मुआवजा मिला। एक साल बीत चुका है, मैं आज तक अपनी दुकान दोबारा शुरू नहीं कर सका हूं।’

दिल्ली दंगों में मारे गए आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा का फाइल फोटो। उनके बड़े भाई कहते हैं, ‘वादा किया गया था कि घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलेगी, लेकिन आज तक यह वादा पूरा नहीं हुआ।’

मोहम्मद आजाद की दुकान से करावल नगर की तरफ बढ़ने पर अंकित शर्मा का घर पड़ता है। पिछले साल हुए दंगों में अंकित की मौत सबसे ज्यादा चर्चित हुई थी। आईबी में काम करने वाले अंकित शर्मा का क्षत-विक्षत शव 26 फरवरी के दिन एक नाले से बरामद हुआ था। उनकी मौत का जिक्र करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा था कि अंकित के शरीर पर चार सौ घाव किए गए थे। दिल्ली पुलिस के अनुसार अंकित पर धारदार हथियार से हमला किया गया था और उनके शरीर पर कुल 51 घाव थे।

अंकित अपने परिवार के साथ खजूरी खास में रहा करते थे। करीब सात महीने पहले अंकित का परिवार यह घर छोड़कर जा चुका है। अंकित के बड़े भाई अंकुर शर्मा बताते हैं, ‘वहां रहना आसान नहीं रह गया था। जितनी बार उस नाले के पास से निकलते थे; वही भयानक दृश्य याद आता था, जब भाई का शव उस गंदे नाले से निकाला गया था। इसीलिए हमने वहां रहना छोड़ दिया। अब हम लोग गाजियाबाद में एक किराए के घर में रहते हैं।’

अंकित तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे और परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर थी। उनकी बहन अभी पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं और भाई अंकुर शर्मा सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। अंकुर कहते हैं, ‘भाई की मौत के बाद ये वादा तो कई लोगों ने किया कि परिवार में किसी को सरकारी नौकरी दी जाएगी, लेकिन ये वादा पूरा किसी ने भी नहीं किया। हमने आईबी को पत्र लिखकर भी नौकरी की मांग की है, लेकिन उस पर अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। केंद्र सरकार की तरफ से भी परिवार की कोई मदद नहीं हुई है। हां, दिल्ली सरकार की ओर से कुछ वित्तीय मदद मिली है।’

दिल्ली सरकार ने अंकित के परिवार को एक करोड़ का मुआवजा दिया है। अंकुर बताते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से उनके गांव में अंकित के नाम से तीन किलोमीटर लंबी एक सड़क का निर्माण किया जा रहा है। वो कहते हैं, ‘हमारी दो ही मुख्य मांग हैं। पहली तो ये कि अंकित के केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए ताकि उसके हत्यारों को जल्द से जल्द फांसी हो और दूसरी ये कि केंद्र सरकार परिवार के लिए कुछ करे।’

अंकुर शर्मा की ही तरह दिल्ली दंगों में अपनों को खोने वाले सैकड़ों लोग न्याय की उम्मीद लगाए कोर्ट की तरफ बीते एक साल से देख रहे हैं। इन दंगों में कुल 53 लोगों की मौत हुई थी। जिनमें से 40 लोग मुस्लिम समुदाय के थे और 13 हिंदू। इन 53 लोगों की मौत के मामलों में से अब तक 38 में ही पुलिस आरोप पत्र दाखिल कर सकी है। पिछले साल हुए इन दंगों में करीब 500 लोग घायल हुए थे और करोड़ों की संपत्ति जलकर राख हो गई थी। दंगों के आरोप में दिल्ली पुलिस ने 11 अलग-अलग थानों में कुल 755 मुकदमे दर्ज किए और 1753 लोगों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार हुए लोगों में 933 मुस्लिम समुदाय के थे और 820 हिंदू समुदाय के।

दिल्ली के बृजपुरी इलाके के रहने वाले संजीव कुमार। वे पुलिस पर दंगों की निष्पक्ष जांच न करने का आरोप लगाते हैं। उनका बेटा और भतीजा दंगों के आरोप में जेल में है।

इन सभी मामलों की जांच अलग-अलग एजेंसी कर रही हैं। हत्या के मामलों सहित कुल 60 मामलों की जांच क्राइम ब्रांच की एसआईटी कर रही है। 690 मामलों की जांच स्थानीय पुलिस कर रही है। दंगों के पीछे की बड़ी साजिश की पड़ताल के लिए अलग से मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसकी जांच स्पेशल सेल के जिम्मे है।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए लोगों की पहचान सीसीटीवी फुटेज, फेशियल रिकग्निशन सिस्टम, मौके से मिले वीडियो, लोगों के फोन से बरामद हुई घटना की तस्वीरों, मोबाइल कॉल रिकॉर्ड और फोन की लोकेशन के आधार पर की गई है। लेकिन, पुलिस कार्रवाई पर कई तरह के सवाल भी लगातार उठते रहे हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पार्टियों का आरोप है कि दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस एकतरफा कार्रवाई कर रही है। इन लोगों का कहना है कि दंगों से पहले भड़काऊ भाषण देने वाले कई भाजपा के नेताओं को पुलिस ने आरोपी नहीं बनाया है, जबकि कई छात्र नेताओं को CAA-NRC का विरोध करने के चलते दंगों की साजिश में आरोपी बना दिया गया है।

दिल्ली पुलिस पर ऐसे ही भेदभाव के आरोप वो लोग भी लगा रहे हैं, जिनके रिश्तेदार दंगों के आरोप में जेलों में हैं। बृजपुरी के रहने वाले संजीव कुमार कहते हैं, ‘मेरे बेटे और भतीजे को पुलिस सिर्फ पूछताछ के लिए थाने ले गई थी, लेकिन उन्हें ही आरोपी बनाकर जेल भेज दिया गया। एक साल हो गया उन्हें जेल में बंद हुए और कोई हमारी सुनने वाला नहीं है। अगर मेरे बच्चे दोषी हैं तो उन्हें सजा जरूर मिले, लेकिन कम से कम जांच और सुनवाई तो निष्पक्ष हो।’

उत्तर-पूर्वी दिल्ली का यह इलाका जो पिछले साल भीषण दंगों का गवाह बना, वह देश के सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों में से एक है। यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग सालों से रहते आ रहे हैं। लेकिन, इनके बीच नफरत की जो लकीर पिछले साल खिंची थी, वह अब भी पूरी तरह से नहीं मिट सकी है। दंगों से प्रभावित कई लोग अब यह जगह छोड़ चुके हैं और जो पीछे रह गए हैं, उन्हें आज भी पिछली फरवरी की यादें चैन से सोने नहीं देती।साभार-दैनिक भास्कर

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