डीएम अजय शंकर पांडेय-फाइल फोटो
गाजियाबाद। हिंदू-मुस्लिम की मिश्रित आबादी वाला डासना क्षेत्र अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। मुगल शासन काल में इस छोटे से क्षेत्र को बसाया गया और अंग्रेजी हुकूमत में डासना क्षेत्र सहारनपुर जिले की तहसील बना। यहीं से अंग्रेज पूरे क्षेत्र (वर्तमान गाजियाबाद) यानी जिले की प्रशासनिक व्यवस्था की देखरेख करते थे। डासना से सटे मसूरी में अंग्रेजों ने अपने रहने के लिए 1864 में पीली कोठी का निर्माण कराया।
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाई गई इस कोठी को 1977 में बेच दिया गया। इतना ही नहीं डासना में पांडवों के समय का देवी मंदिर है तो मकदूम साहब की पीर भी। इतिहास से जुड़े ऐसे ही किस्सों, धरोहर और पौराणिक महत्व से जुड़े भवनों को अब प्रशासन पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए हर गांव का इतिहास तैयार कराया जा रहा है।
प्रशासन की तरफ से गांव वार टीम लगाकर पूरा इतिहास निकलवाया गया है। उसके आधार पर अब ऐतिहासिक महत्व के स्थानों को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की कवायद शुरू की गई है। सभी तीनों तहसीलों की तरफ से डीएम को गांव वार इतिहास, उसमें खेल के स्तर और मुख्य कारोबार व अन्य बिंदुओं पर जानकारी मुहैया कराई गई है। प्रशासन की तरफ से जुटाई गई जानकारी में कई रोचक तथ्य भी सामने आए हैं।
सदर तहसील के कनौजा गांव में अंग्रेजों की तरफ से पूरे क्षेत्र का भू राजस्व एकत्र किया जाता था। जबकि मोदीनगर तहसील में सुहाना, भनैड़ा, ग्यासपुर, कु्म्हैड़ा समेत पांच गांव के लोगों ने अंग्रेजों का दांत खट्टे कर दिए थे। विरोध के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने इन पांचों गांवों को बागी गांव घोषित किया था। शाहपुर बम्हैटा गांव में 100 वर्ष पुराना बरगद का वृक्ष है। जबकि मोदीनगर के सीकरी खुर्द में महामाया मंदिर है। मंदिर परिसर में स्थित वट वृक्ष में 131 लोगों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया था। उन्हीं शहीदों की 70-75 विधवाओं ने महामाया मंदिर के समीप खेत में खुद को सती कर लिया था, जिसे वर्तमान में सती के खेत के तौर पर जाना जाता है।
इतिहास को संजोकर विकसित करेंगे पर्यटन स्थल
डीएम अजय शंकर पांडेय का कहना है कि तहसील वार हर गांव का इतिहास तैयार कराने के पीछे मुख्य उद्देश्य जिले को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना है। कई गांवों का अपना इतिहास है। पांडवों के समय से लेकर अंग्रेजों के शासन काल में कई गांवों ने अपना योगदान दिया लेकिन उन गांवों को उस तरह से पहचान नहीं मिली। अब शासन को प्रस्ताव भेजा जा रहा है। उसके बाद इन सभी गांवों को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा।साभार-अमर उजाला
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