मां ने गहने बेचे, पिता ने पैसे उधार लिए, तब जाकर पढ़ाई पूरी कर पाए; आज कई कंपनियों के मालिक हैं

सक्सेफुल बिजनेसमैन होने के साथ ही आज संजय लोढ़ा इंटरनेशनल स्पीकर भी हैं।

  • 20 साल US में बिताए, वहां रेस्टोरेंट में क्लीनिंग का काम भी किया, 2010 में भारत में खुद की कंपनी शुरू की

संजय लोढ़ा, मनमाड़ जैसी छोटी सी जगह से निकलकर US तक पहुंचे और आज कई कंपनियों के मालिक हैं और कई में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर। वे इंटरनेशनल स्पीकर भी हैं। संजय जिन कंपनियों में काम करते हैं, उनका टर्नओवर लाखों-करोड़ों में है। उन्होंने अपने गांव से US पहुंचने और फिर भारत आकर बिजनेस खड़ा करने की पूरी जर्नी भास्कर के साथ शेयर की है। आज की पॉजिटिव खबर में जानिए उनकी सफलता की कहानी।

पढ़ाई के लिए पैसों की किल्लत थी, लेकिन जुनून बहुत था

संजय कहते हैं,ये बात 1970-80 के दशक की है। मैं मनमाड़ (महाराष्ट्र) में रहता था। हमारी मिडिल क्लास फैमिली थी। पिताजी पढ़े-लिखे थे इसलिए घर में पढ़ाई का माहौल था। मेरे 10वीं में अच्छे नंबर आए तो लगा कि अच्छी पढ़ाई कर ली तो भविष्य में कुछ बड़ा जरूर कर सकूंगा।

दिक्कत ये थी कि उस समय पैसों की किल्लत थी। पहनने को दो जोड़ी कपड़े होते थे, लेकिन घर में वैल्यू सिस्टम बहुत मजबूत था। पिताजी ने 11वीं, 12वीं की पढ़ाई के लिए जैसे-तैसे पुणे भेज दिया, क्योंकि पुणे बड़ा शहर था और वहां पढ़ाई मनमाड़ के मुकाबले ज्यादा बेहतर थी। 12वीं में भी मेरे अच्छे नंबर आए तो मैं तय कर चुका था कि आगे की पढ़ाई बाहर से करूंगा। मैंने US की कई यूनिवर्सिटीज में अप्लाई किया। तीन-चार में मुझे एडमिशन मिल रहा था। पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिल रही थी।

संजय कहते हैं, जब मैं US गया था तो इंग्लिश भी नहीं जानता था, क्योंकि मराठी लैंग्वेज में ही पढ़ाई-लिखाई की थी। वहां जाकर इंग्लिश सीखी, जिससे करियर में तेजी से ग्रोथ मिली।

मां के गहने बेचे, पैसा उधार लिया

वे बताते हैं, ‘हमारे पास पैसे की तंगी थी और बाहर पढ़ने के लिए खर्च ज्यादा, लेकिन पिताजी ने हिम्मत नहीं हारी और रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए। मां के पास कुछ गहने थे, वो उन्होंने बेच दिए। इस तरह से मैं US पहुंच गया। वहां जाकर पढ़ाई के साथ ही पार्ट टाइम काम करने लगा। कभी रेस्टोरेंट में क्लीनिंग का काम करता तो कभी ग्रॉसरी शॉप में जॉब करता था। स्टोर पर साफ-सफाई का काम भी किया।’

इससे मुझे अर्निंग होने लगी थी। पढ़ाई के लिए स्कॉलरिशप मिल ही रही थी। लगन और मेहनत के दम पर मुझे कुछ समय बाद एक रिसर्च प्रोजेक्ट में भी शामिल कर लिया गया, फिर वहां से भी अर्निंग शुरू हो गई। मैंने US से BTech के बाद MTech किया। फिर बिजनेस की ट्रेनिंग भी ली। इस दौरान लगातार पार्ट टाइम जॉब चलती रही, जिससे गुजर-बसर होती रही।

बचपन में पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि फ्लाइट में सफर कर सकें, लेकिन संजय अपने सामने आने वाली हर चुनौती को पार करते गए और सफलता हासिल की।

20 साल US में बिताए, 2010 में खुद की कंपनी शुरू की

अच्छा एजुकेशन होने के चलते मुझे ऑयल, गैस और पेट्रोकेमिकल्स इंडस्ट्रीज में काम करने वाली कंपनियों में जॉब का मौका मिला, क्योंकि मेरी पढ़ाई इसी में हुई थी। US में रहने से इंग्लिश पर कमांड भी काफी अच्छी हो गई थी। मैंने करीब 20 साल वहां बिताए।

2005 में एक इंटरनेशनल ऑयल कंपनी में डायरेक्टर बनकर इंडिया आया। फिर लगा कि यदि मैं दूसरी कंपनियों को इतना कमा कर दे सकता हूं, तो क्यों न खुद की कंपनी शुरू की जाए। इसके बाद साल 2010 में ऑयल, पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में खुद का बिजनेस शुरू किया। अब कई कंपनियों में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर भी हूं। कई स्टार्टअप में भी इन्वेस्ट किया है, क्योंकि स्टार्टअप से रिटर्न भी अच्छा मिलता है और इससे कई युवाओं को नौकरी भी मिलती है।

जो युवा अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, उन्हें यही सलाह देना चाहता हूं कि आप जिस भी सेक्टर में काम करना चाहते हैं, या कर रहे हैं, उसमें आपकी मास्टरी होनी चाहिए। ये मायने नहीं रखता कि आपके पास डिग्री है या नहीं। यदि आप पूरे जुनून से काम करेंगे तो टॉप पर जरूर रहेंगे और यदि टॉप पर रहेंगे तो आपको रिटर्न भी वैसा ही मिलेगा।साभार-दैनिक भास्कर

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