परिवार ने खो दी थी आस, तीन दशक बाद मिली जिंदा होने की खबर

बात आज से करीब 33 साल पहले की है। किशनलाल एक दिन बवाना स्थित अपने घर से बिना बताए निकल पड़े। पहले भी उनका इसी तरह से आना-जाना था, इसीलिए परिवारवालों ने ज्यादा पूछताछ नहीं की। लेकिन हफ्ते भर बाद जब वह वापस नहीं आए तो उनके बाद में खोजबीन शुरू हुई। कोई पता-ठिकाना पता न होने से सारी कोशिशें नाकाम रहीं। थक हारकर उनकी पत्नी ने घर का जिम्मा उठाया। जबकि तब तक उन्होंने घर की दहलीज भी नहीं लांघी थी। तीन छोटे-छोटे बच्चों के पालन-पोषण के लिए मवेशियों का दूध बेचा। किसी तरह सबका गुजारा हो सका।

उधर, किशनलाल की कोई सूचना नहीं मिली। बैंक आदि दूसरे काम के लिए बाद में उनका डेथ सर्टिफिकेट बनवा लिया। बच्चों के बड़े होने से उनकी गृहस्थी पटरी पर आ गई थी। किशनलाल की यादें भी घरवालों के जेहन में धुंधली हो गई थीं। लेकिन पिछले महीने आई एक फोन काल पूरे परिवार को फ्लैशबैक में खींच ले गई। पता चला कि इसी नाम के एक बुजुर्ग शख्स गुजरात से अपने घर आना चाहता है। वीडियो काल से घरवालों ने उनको देखा और खुशी से सबकी आंखे चमक आईं। किशन लाल आज अपने परिवारवालों से दुबारा मिल गए हैं। हालांकि, अभी उनकी जिंदगी सामान्य नहीं हो सकी है।

पूरी कहानी कंझावला रोड बवाना निवासी 80 वर्षीय बुजुर्ग किशनलाल की है। किशनलाल के परिवार में उनकी दो बेटे प्रवीण कुमार और अनिल कुमार है। आज दोनों का अपना-अपना कारोबार है और भरा पूरा परिवार भी। लेकिन 33 साल पहले दोनों की उम्र दस और आठ थी। उस वक्त किशनलाल का बवाना में अपना वर्कशॉप था। वह पेट्रोल व डीजल के इंजन की मरम्मत करते थे। उससे पहले उन्होंने ब्रिटिश मोटर कंपनी में काम भी किया था।

प्रवीण बताते हैं कि उनको ठीक से याद भी नहीं है। मां जैसा बताती है कि पिताजी 1987 में अचानक घर छोड़कर कहीं चले गये। उसके बाद उनका कभी लौटना नहीं हुआ। पहले भी वह बाहर जाते थे और पांच दस दिन में वापस आ जाते थे। तभी किसी ने ज्यादा पूछताछ नहीं की। लेकिन इस बारी वह वापस नहीं लौटे।

बच्चों के छोटे होने से घर की सारी जिम्मेदारी मां राजवाला पर आ गयी थी। दोनों भाइयों व एक बहन का पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई आदि का इंतजाम उनको करना पड़ा। लेकिन वह कभी थकी नहीं। इसी बीच परिवार को घर के मुखिया के नाम को लेकर दिक्कत आने लगी। उनके नहीं आने की उम्मीद में बच्चों ने उनका डेथ सार्टिफिकेट बनवा लिया।

प्रवीण का कहना है कि पिता की याद तो बहुत आती थी लेकिन कोई कुछ कर सकता था। आज तो हमारे भी दो बच्चे हो गए हैं। कोरोना काल में जहां कई परिवार अपनों से बिछुड़ गये, दिसंबर माह किशनलाल व उसके परिवार के लिए खुशियां लेकर आया और अहमदाबाद से आये एक फोन ने 33 साल के बिछुड़े किशनलाल को उनके परिवार से मिलवा दिया।

इस तरह हो सकी मुलाकात
बवाना थाना प्रभारी दर्शनलाल ने बताया कि पिछले महीने अहमदाबाद से मंगल मंदिर मानव सेवा परिवार नाम की स्वयंसेवी संस्था का फोन उनके पास आया है। उसकी संचालिका रीतू वर्मा ने बताया कि 80 साल के एक बुजुर्ग हैं। उनका कहना है कि वह 33 साल पहले घर से निकल गये थे। उनका परिवार बवाना के किसी डाकखाने के पास रहता है। एक-दो बार बात और भी हुई।

दर्शनलाल के मुताबिक, सिपाही दिनेश और सुरेश ने डाकखाने की तलाश शुरू की। लेकिन पता चला कि वहां कोई डाकखाना है ही नहीं। नरेला रोड पर एक डाकखाना जरूर है। विभाग से पता चला कि 40 साल पहले बवाना में एक डाकघर जरूर था लेकिन उसे बंद कर दिया। उसके बाद से डाकखाना कई बार स्थानांतरित हो चुका है। काफी खोजबीन के बाद पुलिस ने उस इलाके का पता लगा लिया जहां डाकखाना हुआ करता था। पुलिसकर्मियों ने डोर टू डोर जाकर किशनलाल के बारे में जानकारी हासिल करने लगे और फिर पुलिस उसके बेटे तक पहुंच गयी।

पिता के जीवित होने का नहीं हुआ यकीन, बेटे ने वीडियो कॉल पर बात की
प्रवीण बताते हैं कि पुलिस कर्मियों ने जब पिता के बारे में बताया कि वह अहमदाबाद हैं तो उसे उनके जीवित होने पर यकीन नहीं हुआ। उसने अपने चाचा को यह बात बतायी और पुलिसकर्मियों को वीडियो कॉल पर पिता से बात करवाने के लिए कहा। वीडियो कॉल के दौरान किशनलाल और उनका परिवार सिर्फ एक दूसरे को देखता रहा। फिर उसके चाचा ने कहा कि यह उनके भाई ही हैं। प्रवीण ने रीतू वर्मा से उनके कुछ फोटोग्राफ भेजने के लिए कहा। प्रवीण बताते हैं कि स्वयंसेवी संस्था वाले उनके लिए भगवान साबित हुए। उन्होंने ऐसा पुण्य काम किया है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है।

बढ़ी हुई दाढ़ी और फटे हुए हाल में मिले थे किशनलाल
रीतू वर्मा का कहना है कि बीते 19 नवंबर उनको अहमदाबाद में हमारे सहयोगी कल्पेश की किशनलाल की मुलाकात हुई थी। उस वक्त उनकी दाढ़ी व बाल बढ़े हुए थे। कपड़े भी फटे थे। कई दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं बताया। इस बीच हम लोग उनका विश्वास जीतते रहे। दस दिन बाद 40 साल पहले वह जयपुर के सुभाष चौक पर एक सेठ के यहां काम करते थे। हम लोगों ने वहां के पुलिस से संपर्क किया, लेकिन वहां कुछ पता नहीं चला। दिसंबर में एक दिन किशनलाल ने कहा कि उनका परिवार बवाना इलाके में रहता है। रीतू ने गूगल के जरिए ट्रैफिक विभाग का नंबर लेकर संपर्क किया, जहां से उन्हें बवाना थाना प्रभारी का नंबर मिला। रीतू कहती है कि वाकई दिल्ली पुलिस काबिले तारीफ काम करती है। उन्हें दिल्ली पुलिस से बहतरीन सहयोग मिला और उनलोगों ने किशनलाल के परिवार को खोज निकाला।

बीते दिनों के बारे में कुछ नहीं बताया
प्रवीण बताते हैं कि पिता के आने के बाद से वह काफी खुश हैं। लेकिन पिता ने अब तक बीते दिनों के बारे में कुछ नहीं बताया है। वह कहां रहे और क्या करते थे, इसके बारे में कुछ नहीं कहा है। किशनलाल ने रीतू को बताया था कि यह जयपुर में इंजन मरम्मत का काम करते थे, लेकिन वह जयपुर से गुजरात कैसे पहुंचे, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।साभार-अमर उजाला

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