सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – एससी/एसटी एक्ट में गिरफ्तारी के लिए प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018 (SC/ST Act) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने अब साफ किया कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी अथॉरिटी से इजाजत लेना भी अनिवार्य नहीं होगा। वहीं, कोर्ट ने यह कहा कि अपने खिलाफ एफआईआर रद्द कराने के लिए आरोपी व्यक्ति कोर्ट में की शरण में जा सकता है।

दरअसल मोदी सरकार ने साल 2018 में एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस कानून में कई संशोधन किए थे। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने इन संशोधनों को बरकरार रखते हुए यह भी साफ किया कि इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी अथॉरिटी से इजाजत लेना भी अनिवार्य नहीं होगा।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 में अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। इस एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस कानून में कई संशोधन किए थे।

क्या है SC/ST एक्ट?

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के उद्देश्य से यह एक्ट लाया गया था। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हर संभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई, ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके।

हालांकि, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के प्रावधान में बदलाव किए थे, जिससे ये एक्ट थोड़ा कमजोर हो गया था। इसके बाद देश भर में इस कानून में बदलाव के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे।

पहले क्या था कानून?
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के इस फैसले पर असहमति जताते हुए पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी। जिस पर कोर्ट ने फैसला सुना दिया है।

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