सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान इस कानून पर रोक लगाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है। अब इस मामले की सुनवाई 22 जनवरी को होगी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्या कांत की बेंच ने नागरिकता संशोधन कानून 2019 पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। बता दें कि नागरिकता कानून पर मचे बवाल के बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली करीब 60 याचिकाओं पर आज सुनवाई की।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस, त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन और असम गण परिषद समेत कईयों की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की। इससे पहले प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को कहा था कि वह अन्य लंबित याचिकाओं के साथ इन याचिकाओं पर 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सोमवार को दोनों याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की अपील करते हुए कहा था कि इन पर इस संबंध में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा दायर याचिका के साथ ही सुनवाई की जाए, जिसपर बुधवार को सुनवाई होनी है। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिकाओं सहित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं जिनमें नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा और कानून के कई छात्र शामिल हैं। जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर ”खुला हमला है। वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है।
जयराम रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है। मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है। उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है। आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है।
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